अभिव्यक्ति का गला घोटती मारी रचना ।
जाति धर्म पर, यौन कर्म पर हारी रचना ।
देवदासियां रही हकीकत, दुनिया जाने -
कब से भारी जुल्म सह रही नारी रचना ।
यौन-कर्म सी समलैंगिकता यहाँ हकीकत-
खुद ईश्वर पर भारी है अय्यारी रचना ।
हिन्दू मुश्लिम सिक्ख इसाई जैन पारसी
बौद्धों पर भी आज पड़ रही भारी रचना ।
शास्त्र तर्क से जीत न पाए खम्भा नोचे-
हथियारों की धमकी देती हारी रचना ।
आंसू नहीं पोंछने वाले इस दुनियां में-
बड़ी बड़ी तब देने लगती गारी रचना ।
श्रैन्गारिकता सुन्दरता पर छंद लिखो न
हास्य व्यंग उपहास कला पर सारी रचना ।।
रक्षाबंधन आने वाला है सावन में-
कृष्ण कन्हैया की भी आये बारी रचना ।।
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