लड़ कर हारा योद्धा भी सुंदर दिखता है

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  • फ़ज़ल इमाम मल्ल्कि
    कल भी वक्Þत तेज़-तेज़ भाग रहा था। आज भी वक्Þत उतना ही तेज़ भाग रहा है। कल हमारे चेहरे पर उदासी, नाउम्मीदी और मैच न जीत पाने का मलाल पसरा था। लेकिन आज चेहरे ख़ुशी से दपदपा रहे थे। भागते वक्Þत को मुट्ठियों में न तो सहेजने की कोशिश की और न ही समेटने की। लेकिन जीत के इस पल को ज़रूर अपने भीतर कहीं उतार कर उसे सहेजने में लग गया। जीत का यह पल अरसे बाद देखने को मिला था। ऐसा नहीं था कि हाकी टीम को मिली यह कोई पहली जीत थी, लेकिन जिस भारतीय हाकी की चमक देखने को हम तरस-से गए थे। लेकिन उस रात दिल्ली के ध्यानचंद स्टेडियम पर वह चमक भी दिखी और रंगत भी। यह जीत इसलिए भी चमकदार रही क्योंकि उसी रात क्रिकेट में हम आस्ट्रेलिया से बुरी तरह पिटे थे। तीन देशों के क्रिकेट मुकाबले में आस्ट्रेलिया से सत्तासी रनों से हार कर भारत फाइनल खेलने से चूक गया था। भारतीय क्रिकेट टीम की लगातार हार के बीच ही कप्तान महेंद्र सिंह धोनी और उपकप्तान वीरेंद्र सहवाग के मतभेद भी खुल कर सामने आए। ज़ाहिर है इससे भारतीय क्रिकेट टीम ख़ेमों में बंट गई और आस्ट्रेलिया में उसकी बुरी गत बनी। हमारे सारे सूरमा वहां ढेर हो गए। यह बात दीगर है कि इस हार के बावजूद उनकी कमाई पर कोई असर नहीं पड़ा। लेकिन इसी हार के बीच भारत के लिए हाकी टीम की जीत बड़ी राहत लेकर आई। लंदन ओलंपिक में खेलने का हक़ पाने के लिए उसे फाइनल में फ्रांस को फ़तह करना था और भारतीय खिलाड़ियों ने एक टीम की तरह खेला। न तो कप्तान और उपकप्तान के बीच किसी तरह के मतभेद उभरे और न ही खिलाड़ियों-कोच के बीच रस्साकशी हुई। नतीजा बेहतर निकलना ही था, निकला भी। फ्रांस पर चमकदार जीत दर्ज कर भारत लंदन ओलंपिक का टिकट पा गया। चार साल पहले भारतीय पुरुष हाकी टीम ओलंपिक में क्वालीफाई करने से चूक गई थी। ज़ाहिर है कि भारतीय हाकी के लिए इससे बड़ी शर्मिंदगी और नहीं हो सकती थी। जो देश कभी हाकी में सबसे ऊपर की पायदान पर था और अट्ठाइस साल तक लगातार ओलंपिक चैंपियन रहा हो, वह अगर ओलंपिक में खेलने का हक़ नहीं पाए तो इससे ज्Þयादा शर्मिंदगी की बात और क्या हो सकती है। इसलिए चार साल पहले ओलंपिक में खेलने से हम चूके थे और भारतीय हाकी के सामने कई सवाल खड़े हो गए थे।
    खिलाड़ियों और अधिकारियों की रस्साकशी फिर हाकी संघ में दबदबे को लेकर ज़ोरआज़माइश ने भी हाकी की छवि को धूमिल किया और हाकी में फिसलन जारी रही। लेकिन पहले विश्व कप और फिर राष्ट्रमंडल खेलों में भारतीय हाकी पटरी पर लौटती दिखाई दी थी। चमकदार और रंगत में दिखे थे भारतीय खिलाड़ी। ओलंपकि क्वालीफ़ाइंग के फ़ाइनल में भारतीय खिलाड़ी पूरी रंगत में दिखे। खिलाड़ियों ने विरासत में मिले इस खेल को ऊंचाई दी और ध्यानचंद के नाम को सार्थक किया। अगर ऐसा नहीं हो पाता को शायद बरसों भारतीय हाकी इस सदमे से उबर नहीं पाती। लेकिन खिलाड़ियों ने देश और हाकी दोनों को ही इस शर्मिंदगी से बचा लिया। ध्यानचंद स्टेडियम पर उस रात दूधिया रोशनी में भारतीय हाकी अपने उठान पर थी। क़रीब साल भर पहले इसी स्टेडियम से भारतीय हाकी ने बेहतर भविष्य के संकेत दिए थे। पहले विश्व कप हाकी मुक़ाबले में भारतीय हाकी ने जिस तरह का प्रदर्शन किया, उसने भारतीय हाकी प्रेमियों को नई ऊर्जा मिली थी। फिर कामनवेल्थ खेलों में भी भारत का प्रदर्शन बेहतर रहा था। हालांकि विश्व कप में जिस प्रदर्शन की उम्मीद बतौर मेज़बान भारत से की जा रही थी, उसने वैसा चमकदार प्रदर्शन नहीं किया। उसने शुरुआती मुक़ाबले में ज़रूर दम दिखाया और पाकिस्तान को 4-1 से हराया था। लेकिन आस्ट्रेलिया, स्पेन और इंग्लैंड के ख़िलाफ़ उसका प्रदर्शन तो अच्छा रहा लेकिन मैच गंवाने की वजह से सातवें और आठवें स्थान के लिए हुए मुकाबले में अर्जेंटीना से हम पिट गए थे। इस मैच में हमारे खिलाड़ियों ने काफी मायूस किया था। कामनवेल्थ खेलों में इंग्लैंड, पाकिस्तान, दक्षिण अफ्रीका, मलेशिया और न्यूज़ीलैंड सरीखी टीमों के रहते हुए भारत ने फ़ाइनल में जगह बनाई थी लेकिन फ़ाइनल में आस्ट्रेलिया से पिट कर उसे रजत पदक से ही संतोष करना पड़ा। ज़ाहिर है कि इस प्रदर्शन से भारतीय हाकी को लेकर हमारी उम्मीदों को पंख लग गए थे और यह ग़लत भी नहीं था।
    उन उम्मीदों को उसने अब पूरा कर दिखाया है। इससे पहले भारत ने एशियन हाकी चैंपियनशिप के पहले संस्करण के फ़ाइनल में पाकिस्तान को फ़तह कर एक बड़ी कामयाबी हासिल की। नए खिलाड़ियों के साथ खेलते हुए उसने छह देशों के इस टूर्नामेंट को जीत कर हाकी के पुराने दिनों की याद दिला दी थी। अब जबकि भारतीय टीम क्वालीफाइंग मुकाबले में चमकदार प्रदर्शन की बदौलत ओलंपिक के लिए क्वालीफाई कर गई है तो हमारी आंखों में पदक का सपना कौंधने लगा है। यह सही है कि ओलंपिक में दुनिया की दिग्गज टीमें हिस्सा लेती रही हैं। लेकिन कुछ कर गुज़रने का जनून और पदक पाने की ललक किसी भी टीम को विजेता बना सकती है। फिÞलहाल भारतीय हाकी टीम इसी जनून और ललक के साथ मैदान पर उतर कर मैदान मार रही है।
     क्वालीफाइंग मुक़बाले में भारत ने एक टीम की तरह खेला और फ्रांस को 8-1 गोलों के बड़े अंतर से हरा कर ओलंपिक में   खेलने का हक पाया। इस जीत में यों तो पूरी टीम की भूमिका महत्त्वपूर्ण रही लेकिन संदीप सिंह नायक बन कर उभरे। इस युवा खिलाड़ी ने हाल के दिनों में पेनल्टी कारनर पर गोल बनाने में जो महारत दिखाई है उससे भारतीय उम्मीदें और भी परवान चढ़ी हैं। इस मैच में अकेले संदीप ने टीम के लिए पांच गोल दागे। बाकी के तीन गोल वीरेंद्र लाकड़ा, वीआर रघुनाथ और एसवी सुनील ने किए। भारतीय टीम का दबदबा पूरे मैच पर बना रहा था और उसने मनमर्जी से गोल ठोके। इस मैच को देखने के लिए हाकी के पूर्व खिलाड़ियों का जमावड़ा मेजर ध्यानचंद स्टेडियम पर मौजूद था, दर्शकों की भी अच्छी ख़ासी तादाद थी। चार साल पहले बेजिंग ओलंपिक में ब्रिटेन से दो गोलों से पिट कर भारत ओलंपिक खेलने से वंचति रह गई थी। ओलंपिक के अस्सी साल के इतिहास में पहली बार भारतीय हाकी टीम ओलंपिक में खेलने से चूक गई थी। लेकिन उस दिन अपनी धरती पर खेलते हुए भारतीय टीम ने चमकदार प्रदर्शन से पिछली बार ओलंपिक में न खेल पाने के मलाल को कुछ कम किया। भारतीय टीम इस मैच में पूरी रंगत और लय में दिखी और फ्रांस के डिफेंस को बार-बार छकाया और मिले मौकों को गोल में बदला। ओलंपिक में खेलने का हक पाने के बाद टीम के खिलाड़ियों की आंखों में आंसू थे और चेहरे पर जीत की चमक।
    अब लंदन ओलंपिक में उन्हें अपना बेहतरीन प्रदर्शन करना है। लेकिन जीत हार से ज्Þयादा ज़रूरी है मैदान पर संघर्ष करना, लड़ना, जीत के लिए जूझना। हमारी हाकी टीम मैदान पर संघर्ष करना भूल गई थी इसलिए हम बराबर हार रहे थे। लेकिन इस टीम में जीतने का जज्Þबा भी है और कुछ कर गुज़रने का जनून भी। लड़ कर हारना, जीत से कम नहीं होता है। जो जीतता है वह हारता भी है और जो हारता है वह जीत के लिए पूरी ताक़त के साथ उठ खड़ा होता है। जीवन और खेल दोनों में ऐसा चलता रहता है। खेल हो या जीवन लड़ कर, संघर्ष कर हारा हुआ योद्धा भी सुंदर दिखता है। ओलंपिक में भारतीय हाकी टीम को हम एक योद्धा की तरह लड़ते देखना चाहते हैं। लड़ कर हारना भी किसी तमग़े से कम नहीं होता है। क्या हम ऐसा कर पाएंगे।

    5 टिप्‍पणियां:

    1. उत्कृष्ट प्रस्तुति बुधवार के चर्चा मंच पर ।।

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    2. बहुत सुंदर लिखा है!

      लड़ना अगर आ जायेगा
      फिर कहाँ हार पायेगा
      जीतेगा नहीं भी अगर
      लड़ना तो सीख जायेगा !

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    3. कोई माला पहनता, कोई पहने हार।
      द्वार जीत के खोलती, रही हमेशा हार।।

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    4. हार ही है जीत का सच्‍चा उपहार

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    5. जज्बा दिल में है तो इंसान हार से भी सबक लेता है और जीत के रस्ते प्रशस्त करता है

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    आपके आने के लिए धन्यवाद
    लिखें सदा बेबाकी से है फरियाद

     
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