पुस्तक कैसे पहुंचे उसतक
उसतक ही सच्चा पाठक है
यह उस कौन है
जो पुस्तक खरीदते वक्त
नहीं करता है उफ ....
आप पुस्तक खरीदते
वक्त खुश होते हैं
और पढ़ते समय महाखुश
आप हैं सच्चे पुस
जो पुस्तक को
करते हैं पुश।
यह पुश करना
धकेलना नहीं है
धकेलना है भी
भीतर दिमाग के तंदूर में
जहां सिंकते हैं विचार
आपको पकाते नहीं
पकते हैं विचार।
पुस्तक कैसे पहुंचती है उसतक
आप बतलाएंगे, बतलाना चाहेंगे
या कायम रखेंगे
पीएम की तरह मौन।
उसतक ही सच्चा पाठक है
यह उस कौन है
जो पुस्तक खरीदते वक्त
नहीं करता है उफ ....
आप पुस्तक खरीदते
वक्त खुश होते हैं
और पढ़ते समय महाखुश
आप हैं सच्चे पुस
जो पुस्तक को
करते हैं पुश।
यह पुश करना
धकेलना नहीं है
धकेलना है भी
भीतर दिमाग के तंदूर में
जहां सिंकते हैं विचार
आपको पकाते नहीं
पकते हैं विचार।
पुस्तक कैसे पहुंचती है उसतक
आप बतलाएंगे, बतलाना चाहेंगे
या कायम रखेंगे
पीएम की तरह मौन।
सर जी , एक प्रति तो भिजवाईये . कब से कह रहे है ...
जवाब देंहटाएंआपके चेले पर थोड़ी कृपा तो बरसाए.
पुश्तैनी *पुस परंपरा, पीती छुपकर दुग्ध |*बिल्ली
जवाब देंहटाएंपाठक पुस्तक पी रहे, होकर के अति मुग्ध |
होकर के अति मुग्ध, समय यह शून्य काल का ||
गूढ़ व्यंग से दंग, मोल है बहुत माल का |
वाचस्पति आभार, धार है तीखी पैनी |
पूरा है अधिकार, व्यंग बाढ़े पुश्तैनी ||
जहां सिंकते हैं विचार
जवाब देंहटाएंआपको पकाते नहीं
पकते हैं विचार....
लाजवाब !