मैंगो मैन यानी
आम आदमी के लिए दो जून की रोटी तक मयस्सर नहीं होने देने में क्या मीडिया की कोई
भूमिका है? क्या महंगाई बढ़ाने में मीडिया और खासतौर पर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया खलनायक
की भूमिका निभा रहा है ? या फिर दिल्ली की समस्याओं के देशव्यापी विस्तार में
मीडिया की भूमिका है? दरअसल ऐसे कई प्रश्न हैं जिन पर विचार आवश्यक हो गया है.
फौरी तौर पर तो यही नजर आता है कि मीडिया आम आदमी के दुःख दर्द का सच्चा साथी है
और वह देश में आम जनता की समस्याओं से लेकर भ्रष्टाचार और महा-घोटालों को सामने
लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है. यह बात काफी हद तक सही भी है लेकिन
मीडिया का उत्साह कभी कभी समस्याएं भी पैदा कर देता है. यदि इस मामले में उदाहरणों
की बात करे तो शायद हर एक व्यक्ति के पास एक-न-एक उदाहरण जरुर मिल जायेगा जिसमें
मीडिया ने अपनी अति-सक्रियता से समस्याएं सुलझाने की बजाए परेशानियां बढ़ाई होंगी.
खैर अभी बात सिर्फ महंगाई की क्योंकि यह ऐसी समस्या है जिसने हर खासो-आम का जीना मुश्किल
कर दिया है. यदि हम
प्रिंट मीडिया के वर्चस्व वाले दौर की बात करें तो तब मीडिया की अति-सक्रियता से
होने वाली परेशानी उतनी विकट नहीं थी. इसका एक प्रमुख कारण यह था कि दिल्ली से
प्रकाशित होने वाले कथित राष्ट्रीय समाचार...
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मीडिया ही नहीं मुझे तो महसूस होता है
जवाब देंहटाएंहर प्रोफेशन में कुछ ऎसा ही होता है
हर शाख पर अब एक ही नहीं
बोरा भर भर कर उल्लू होता है !
sarthak post, abhar.
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी जानकारी.हमेशा की तरह अच्छी पोस्ट की है आपने.
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