पिछले दिनों राष्ट्रपिता
महात्मा गाँधी के खून से सनी मिट्टी की नीलामी और इसके लिए लगे लाखों रुपये के
दामों ने एक बार फिर यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि माटी की महिमा भी अपरम्पार है.
कभी यह ‘माटी मोल’ होकर हम इंसानों को कमतरी का अहसास करा जाती है तो कभी ‘देश की
अनमोल माटी’ बनकर हमारे माथे का तिलक बन जाती है. जब यही माटी देश के लिए मर मिटने
वाले अमर शहीदों और महात्मा गाँधी जैसे महान व्यक्तित्व से जुड़ती है तो इतनी
बेशकीमती हो जाती है कि वह घर-घर में पूजनीय बन जाती है. वास्तव में माटी का
अस्तित्व महज मिट्टी के रूप में भर नहीं है बल्कि यह हमारी संस्कृति,जीवन
शैली,आचार-विचार और परम्पराओं का अटूट हिस्सा है तभी तो जीवन की शुरुआत से लेकर
अंत तक माटी हमारे साथ जुडी रहती है.जीवन के साथ माटी के इसी जुड़ाव ने ऐसे तमाम
मुहावरों,लोकोक्तियों और सामाजिक शिष्टाचारों को जन्म दिया है जो अपने अर्थों में
जीवन का सार छिपाएँ हुए हैं. सोचिए ‘माटी के लाल’ में जिस बड़प्पन,सम्मान और
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प्रेरणास्पद आलेख! आभार!
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