परिंदों,
तुम् आज़ाद हो,
उड़ो,
ऊँचे
और ऊँचे,
जहाँ
सफलता का दृश्य,
बाट जोहता है।जहाँ से कोई योगी,
पहले पहल सोचता है ?
इस आव्हान का असर,
एक पाखी ने फड़फड़ाए पर,
टकराकर, जाने किस से -गिर गया -!विस्तृत बयाबान में....!,
तब
से अब तक
हम,आप और !!
ताड़ के पत्तों से,
तुम् आज़ाद हो,
उड़ो,
ऊँचे
और ऊँचे,
जहाँ
सफलता का दृश्य,
बाट जोहता है।जहाँ से कोई योगी,
पहले पहल सोचता है ?
इस आव्हान का असर,
एक पाखी ने फड़फड़ाए पर,
टकराकर, जाने किस से -गिर गया -!विस्तृत बयाबान में....!,
तब
से अब तक
हम,आप और !!
ताड़ के पत्तों से,
कविता अच्छी लगी। आभार!
जवाब देंहटाएंआभार सर जी
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