हिन्‍दी चिट्ठाकारी में 'कोयल शास्‍त्र' की कोई जगह क्‍यों नहीं हैं ???

मेरी मांग आपको नाजायज लग सकती है लेकिन नाजायज शब्‍द में ही जायज शब्‍द संपृक्‍त है। क्‍या यह भेद भाव नहीं है कि एक पुरुष ने तो कोक शास्‍त्र लिखकर प्रसिद्धि पा ली लेकिन लेकिन किसी महिला को कोयल शास्‍त्री बनने का अवसर क्‍यों नहीं मिला। आप हिंदी चिट्ठाकारी संसार में सबसे अधिक पीड़ा महिलाओं की पुरुषों के समान अधिकारों को लेकर ही है। मैं भी इनका समर्थक ही हूं। आखिर मैं इनका समर्थन क्‍यों न करूं, जब यह मेरे कहने पर एक्‍शन ले सकती हैं तो मेरा भी कर्तव्‍य हो जाता है कि इनकी अतिरिक्‍त ख्‍याति के लिए कुछ कदम उठाने के मौलिक आइडिए प्रदान करूं। वैसे भी महिलाएं इस बात से खूब खुश हैं कि उनकी तुलना पुष्‍पों से की जा रही है। और हों भी क्‍यों न हो, आखिर पुष्‍प सुगंध ही फैलाते हैं। वह बात दीगर है कि उसमें कांटे भी छिपे रहते हैं। पर ऐसे छिपे भी नहीं होते कि किसी को उनका इल्‍म तक न हो। वे खामोश रहते हैं और खामोशी ...नारी एवं प्रकृति का स्‍वभाव है। उनको स्‍वर के लिए सहारा चाहिए। तैरने पर बचने के लिए किनारा चाहिए। सुगंध फैलाने के लिए संसार सारा चाहिए। फिर हिंदी चिट्ठाकारिता संसार उनकी रचना के लिए वर्जित क्‍यों हो। 
जिसने भी कोकशास्‍त्र का पाठ्य एवं चित्रीय अध्‍ययन किया हो, उन सबसे विनम्र निवेदन है कि कृपया बतलाएं कि क्‍या 'हिंदी चिट्ठाकारी का कोयल शास्‍त्र' लिखे जाने की जरूरत है, अगर जरूरत महसूस करते हैं तो यह भी बतला ही दें कि इसकी जिम्‍मेदारी किसे उठानी चाहिए। अगर पुरुष इस जिम्‍मेदारी को उठाना चाहेंगे तब भी वह इतनी असलियत जाहिर नहीं कर पाएंगे, जितनी वास्‍तविकता एवं अनुभव लिखकर महिलाएं इस क्षेत्र में अपना योगदान दे सकती हैं। 
अगर आप मेरे आइडिए से सहमत नहीं हैं तो क्‍यों और अगर हैं तो उनके नाम बतलाएं, जिन्‍हें यह जिम्‍मेदारी सौंप दी जाए।

11 टिप्‍पणियां:

  1. मैं महज यह बता सकता हूँ यह चित्र नर कोयल का है !

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  2. कोयल सुना था
    अपने अंडे
    कौऎ के घोंसले में
    रख के आती है
    इसलिये पहली बारी
    तो कौऎ की ही
    इस तरह आ पाती है ।

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  3. AAP LIKHO KOYAL SHASTRA .........HA HA HA LEKIN BHASHAGAT TRUTIYAN MAT KARNA VARNA AISA COMMENT KAR DOONGA

    http://albelakhari.blogspot.in/2012/05/blog-post_06.html

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  4. जिसने भी कोकशास्‍त्र का पाठ्य एवं चित्रीय अध्‍ययन किया हो, उन सबसे विनम्र निवेदन है कि कृपया बतलाएं कि क्‍या 'हिंदी चिट्ठाकारी का कोयल शास्‍त्र' लिखे जाने की जरूरत है, अगर जरूरत महसूस करते हैं तो यह भी बतला ही दें कि इसकी जिम्‍मेदारी किसे उठानी चाहिए। .......

    अविनाश भाई कुल छ : सौ तो इस सामूहिक ब्लॉग के अनुसरक हैं । जाने कितने ही लेखक और पाठक भी हैं , सोच रहा हूं कि कितने किंकर्तव्यविमूढ होंगे जब ब्लॉग मॉडरेटर खुदही जिम्मा संभाले हुए ....भांति भांति के शास्त्र पर शास्त्रार्थ चल रहे हैं ..एक हमारे जैसे निपट ..भावार्थ पाने में भी एकदम्मे फ़ेल हैं ..आप तो जारी रखिए ..आजकल स्वामी जी का वैसे ही बहुत शोर है फ़िर आप तो ..मुन्ना भाई से मुन्ना स्वामी हो गए हैं

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  5. @अजय कुमार झा
    अगर जरूरत महसूस करते हैं तो यह भी बतला ही दें कि इसकी जिम्‍मेदारी किसे उठानी चाहिए। .......|

    आखिर कब तक भागू--
    एक टिप्पणी-
    कोयल तो मर्मज्ञ है, सिक्स सेन्स संसेक्स |
    ग्राफ सदा स्थिर रखे, खुद भी रहे रिलेक्स |

    खुद भी रहे रिलेक्स, शास्त्र पर जायज चर्चा |
    लेकिन पुरुष विचार, लगेगा कडुआ मिर्चा |

    रविकर यह प्रस्ताव, करे जो सेक्सी-सिम्बल |
    बने शास्त्र दमदार, लसे कौवे से कोयल ||

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    1. रविकर ने तो लेखन पारायण यज्ञ आरंभ कर दिया।
      बाबा की किरपा बनी रहेगी।

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  6. @रविकर फ़ैजाबादी
    अगर जरूरत महसूस करते हैं तो यह भी बतला ही दें कि इसकी जिम्‍मेदारी किसे उठानी चाहिए। .......|

    हे पार्थ
    ई प्रश्न आप चाहे पास करिए कि साल्व करिए , लेकिन उत्तर पुस्तिका में माननीय प्राचार्य महोदय को संबोधित किया जाए गुरूवर । हम तो बस लंबर चार पर आए पाठक हैं ..बकिया कविता तो पोस्ट में चांद लगा दिहिस है ..समझिए कि चांद आज धरती के करीब सचमुच में ही आ रहा है

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    1. अजय भाई, चांद तो सदैव से धरती वासियों के मन के करीब ही रहा है। बस यह हम इंसानों की ही खामी है जो इसे अपने मन में उसकी पूरी धवलता, स्‍वच्‍छता और उज्‍ज्‍वलता के साथ संजो नहीं पाए हैं।

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  7. हम तो इत्ता ही जानते हैं कि आम के मौसम में जिस अम्बिया को कोयलिया ने डस लिया,उसे चूसने में हम लोगों को बड़ा मजा आता था.अब कोयल कैसी है,ई तो आपै जाने स्वामीजी !

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    1. कोयलिया तो वही है
      परंतु काले रंग का
      काले धन से जुड़ना
      फिर काले मन मचलना
      कहर ढा रहा है।

      हटाएं

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