अलग तरह का यात्रा संस्मरण

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  • फ़ज़ल इमाम मल्लिक

    बिनय कुमार मुखोपाध्याय यानी जाजाबोर की ताज़ा कृति ‘विन्येट एन रूट’ यों तो यात्रा संस्मरण की पुस्तक है, लेकिन अपनी शैली और कहन के ढंग की वजह से यह एक अलग तरह की किताब है। यात्रा संस्मरण लिखने की रिवायत हिंदी में तो कम से कम ख़त्म ही होती जा रही है, इसलिए अंग्रेज़ी में इस तरह की किताब पढ़ने का अलग ही लुत्फ़ है। दरअसल किताब का नाम ही अलग तरह का आकर्षण पैदा करता है ‘विन्येट एन रूट’ यानी रास्ते में चलते हुए शब्दचित्रों को गढ़ना। रास्ते में चलते हुए बेलबूटे बनाना या शब्दों के ज़रिए एक नई दुनिया का सृजन करना दिक्क़त भरा तो है लेकिन इस दिक्कÞत में एक अलग तरह का रोमांच है और जाजाबोर ने इस रोमांच को अपने शब्दों के ज़रिए पाठकों तक पहुंचाया है। यह जानना भी कम दिलचस्प नहीं है कि यह कृति मूल रूप से बांग्ला में प्रकाशित हुई थी और यह किताब बांग्ला का अनुवाद है। हिंदी में जब यात्रा संस्मरण लिखना लगभग ख़त्म-सा हो गया है तब मूल बांग्ला से अनूदित यह कृति हमसे एक अलग तरह से सरोकार बनाती है। जाजाबोर का यह यात्रा संस्मरण बांग्ला में ‘दृष्टिपात’ नाम से काफी पहले प्रकाशित हुआ था और अपने शिल्प, कथ्य और प्रयोग की वजह से बांग्ला पाठकों में काफी लोकप्रिय भी हुआ था। आलोकोज्जल बनर्जी ने अब इसका अंग्रेजी अनुवाद हमारे सामने पेश किया है।
    दिलचस्प बात यह है कि इस यात्रा संस्मरण में लेखक महज़ सूत्रधार की भूमिका में ही है। इस यात्रा संस्मरण में वह कहीं नहीं है लेकिन अपनी मौजूदगी का अहसास वह बराबर कराता है। दरअसल पूरी किताब उन पत्रों को आधार बना कर लिखी गई है, जिसे एक युवक ने अपनी महिला मित्र को गाहे-बगाहे लिखा था। उन पत्रों में तबकी दिल्ली का ज़िक्र है, जब दिल्ली में इतनी भीड़भाड़ नहीं होती थी। दूसरे विश्व युद्ध से पहले 1936 में बंगाल का एक युवक क़ानून की पढ़ाई पढ़ने के लिए लंदन गया था। लेकिन विश्व युद्ध की वजह से उसे स्वदेश लौटना पड़ा। दिल्ली प्रवास के दौरान ही इंग्लैंड के एक समाचारपत्र ने उन्हें यहां मुख्य संवाददाता बना डाला। लंदन प्रवास के दौरान ही वह युवक उस अख़बार में कभी-कभार लिखा करता थाा। दिल्ली में रहते हुए उस युवक ने अपनी महिला मित्र को कुछ पत्र लिखे थे। उन्हीं पत्रों को आधार बना कर यह पुस्तक लिखी गई है। युवक की कुछ बहुत ही निजी और पारिवारिक बातों को छोड़ कर उन पत्रों को पुस्तक में जस का तस रखा गया है। लेखक ने कुछ नाम और जगहों को लेकर ज़रूर कुछ बदलाव किया है ताकि इनकी विश्वसनीयता पर किसी तरह का सवाल नहीं खड़ा हो।
    किताब में कोलकाता की झलक भी मिलती है। दमदम हवाई अड्डे का ज़िक्र है तो चौरंगी की भीड़भाड़ भी है। और संदेस की मिठास तो किताब के पन्नों पर बिखरी हुई है। तब की दिल्ली ती हर पन्ने पर दिखाती देती है। कनाट प्लेस को कोलकाता के चौरंगी से तुलना करते हुए लेखक ने यहां की इमारतों के वास्तुशास्त्र को बेहतर ढंग से समझाया है। यह यात्रा पुस्तक दिल्ली के पुराने दिनों को हमारे सामने ला खड़ी करता है। पुस्तक में काली मंदिर, बिड़ला मंदिर और लक्ष्मीनारायण मंदिरों का ब्योरा भी मिलता है। लक्ष्मीनारायण मंदिर के निर्माण से जुड़ी बातें कुछ नई जानकारी देती हैं। किताब में इस बात का ज़िक्र भी है कि मंदिर का उद््घाटन गांधी जी ने किया था। हज़रत निज़ामुद्दीन की दरगाह से जुड़ी बातें किताब में मिलती हैं तो अंग्रेजी शासकों के साथ-साथ मुगल शाहज़ादी जहांआरा और ज़ेबुंनिसां की चर्चा भी की गई है। ज़ाहिर है कि इतिाहस के पन्ने को भी खंगाला गया है। और यही इतिाहस किताब को विश्वसनीय बनाता है।
    वीन्येट एन रूट (यात्रा संस्मरण), लेखख: जाजाबोर, प्रकाशक: नियोगी बुक्स, डी-78, ओखला इंडस्ट्रियल एरिया फेज-1, नई दिल्ली-110020, मूल्य: 295 रुपया।

    2 टिप्‍पणियां:

    1. सटीक एवं पुस्‍तक के संबंध में उपयोगी जानकारी। यात्रा संस्‍मरणों का एक अलग पाठकवर्ग है, जो इनमें विशेष रुचि रखता है। जीवन और स्‍थान के बारे में जानने का सहज अवसर।

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