इंडिया टुडे तलाश रहा है 'हिंदी ब्‍लॉगिंग के दुश्‍मन ? : अगर आप हैं तो पढ़ने के बाद भी टिप्‍पणी देने नहीं आएंगे

जिससे डर लगता है, उसके ही दुश्‍मन बनते हैं, उसकी ताकत से सब डरते हैं और भय को ऐसे जाहिर करते हैं। मानो वे सबसे बड़े निडर हैं, उन्‍हें नहीं किसी का डर है।  - अविनाश वाचस्‍पति 


इंडिया टुडे हिंदी के 22 फरवरी 2012 के अंक में प्रकाशित मनीषा पांडेय के लेख को पढि़ए और अपने विचार जाहिर कीजिए। नीचे इमेज पर क्लिक करे आप इसे पढ़ सकते हैं। घबराइए मत कंट्रोल के साथ दो या तीन बार प्‍लस दबाइए और पढ़ लीजिए।  और इस पोस्‍ट को सबसे शेयर कीजिए।


सबके दुश्‍मन होते हैं
सरकार के भी होते हैं
अपनों के भी होते हैं
दूसरों के तो होते ही हैं

हिंदी ब्‍लॉगिंग के क्‍यों नहीं होंगे
जो भी हो, दुश्‍मन तो उसके बनेंगे ही
अब अगर कोई सवाल उठा दे
इंडिया टुडे के दुश्‍मन कौन ?

तो कौन जवाब देने आएगा
वे तो दे देंगे
पूंजीपति हैं
उनके चैनल चलते हैं
प्रिंट मीडिया उनका है
मीडिया में उनका वर्चस्‍व है

पर आपकी ताकत भी कम नहीं है
कहिए उन्‍हें, पूछिए उनसे
हिंदी ब्‍लॉगिंग को कम मत आंकिए
क्‍या उन्‍होंने रबर की गेंद नहीं देखी है
जिसे जितनी तेज जमीन पर मारो
उससे दूनी तेजी से उछलती है
बाद में धीरे धीरे धरा पर चिपक जाती है

लेकिन एक दिन आसमान में
पाई जाती है
तो हिंदी ब्‍लॉगिंग भी रबर की गेंद है
इसे इसके सिर्फ आठ साल में
सोशल साइटों का डर मत दिखलाइए

हिन्‍दी ब्‍लॉगिंग यानी
चिट्ठी से बनी है
चिठ्ठा है
जब चिट्ठी नहीं खत्‍म हुई
ई मेल बनकर छा गई
तो चिट्ठा कैसे खत्‍म होगा
आपने यह कैसे सोच लिया है

अभी तो आप देखते जाइए
आप तो शुरूआत के सफर में ही
चाहने लगे हैं कि
हिन्‍दी चिट्ठाकारी दादा सिंह बन जाए
अमिताभ बच्‍चन बन जाए
और नहीं तो
सचिन तेंदुलकर बन जाए

ऐसा ही आप अपने बच्‍चों से चाहते हैं
जो आप इच्‍छा आप अपनी नहीं पूरी कर पाते
उन्‍हें बच्‍चों में पूरा करना चाहते हैं
नहीं कर पाएं
तो देते हैं व्‍यवस्‍था को दोष
शोर मचाते हैं
परंतु अपनी अति चाहना को
नहीं देखते, और नहीं देते दोष
इसलिए हिन्‍दी चिट्ठाकारों
अपनी टिप्‍पणियों में बतला दो
कि हम आज भी मजबूत हैं
हम कल भी मजबूत होंगे
पर आप तो देखते रहिए
आज तक
कल हमारा है
वह हम ही दिखाएंगे
आप ही देखने आएंगे।

1 टिप्पणी:

  1. ब्लॉगिंग हिंदी की बंद नहीं होने जा रही। इस लेखिका के विचार कुछ महीने पहले राजस्थान पत्रिका में पढ़ा था। राजस्थाने के किसी मीटिंग में कहा गया था।
    दरअसल मीडिया (प्रिंट और इएलेक्ट्रोनिक)को इस माध्यम से कुछ हानि तो हो ही रही है। होगी भी। वहां की मोनोपॉली से लोग आजिज थे।

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