पहचानने का करते हैं प्रयास, चाहे न हो कोई बिल्‍कुल खास

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  • अविनाश वाचस्पति
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  • क्‍या सिर्फ कविता की व्‍याख्‍या की जा सकती है
    मुझे तो ऐसा नहीं लगता है
    और कहा भी गया है
    एक चित्र दस शब्‍द हजार शब्‍दों से अधिक
    स्‍वरों को मुखर करता है
    तो कहिए खरी खरी
    सामने बिठाकर बैठ जाइए दरी
    देखिए भांपिए, अपनी निगाहों से आंकिए
    और शब्‍दों में ढालिए कि इसमें ढाल नहीं है
    तलवार यह दोधारी है
    इसमें दूसरी ओर कलम निकाली है
    अब कहने-लिखने की आपकी बारी है।

    4 टिप्‍पणियां:

    आपके आने के लिए धन्यवाद
    लिखें सदा बेबाकी से है फरियाद

     
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