चिट्ठाजगत के दो दिग्गज रवीन्द्र प्रभात और अविनाश वाचस्पति विचार-विमर्श के दौरान
मेरी राय तो यही है कि जितना नुकसान फेसबुक ने हिन्दी चिट्ठाकारी (ब्लॉगिंग) को पहुंचाया है, उतना तो नहीं परंतु कुछ नुकसान तो अविनाश वाचस्पति जी की बीमारी से हिन्दी चिट्ठाजगत को पहुंच रहा है। फेसबुक से विवेकी चिट्ठाकारों को नुकसान कम ही हुआ है क्योंकि उन्होंने फेसबुक की नेटवर्किंग के माध्यम से फेसबुक को चिट्ठाकारी के फायदों की ओर मोड़ दिया है। आज जबकि चिट्ठाजगत और ब्लॉगवाणी ए्ग्रीगेटरों के चिट्ठाकारी के मैदान को छोड़ देने के कारण काफी हानि हुई है। इस माध्यम की व्यापकता में कमी आई है। जितने पाठक इन ए्ग्रीगेटरों के जरिए हिन्दी चिट्ठों तक पहुंचते थे, उतने अब नहीं पहुंच रहे हैं। बल्कि यह कहना समीचीन होगा कि आधे भी नहीं पहुंच रहे हैं जिसके कारण नए नए हिन्दी चिट्ठों के बनने में कमी आई है। इस दिशा में अनेक प्रयास किए गए हैं। इनमें रवीन्द्र प्रभात जी के परिकल्पना समूह के योगदान की अनदेखी नहीं की जा सकती है।
चिट्ठाजगत के दो दिग्गज रवीन्द्र प्रभात और अविनाश वाचस्पति जी के द्वारा चिट्ठों के माध्यम से हिन्दी के प्रचार प्रसार के लिए किए गए कार्य अपनी एक अलग पहचान रखते हैं। उनके सम्मिलित प्रयास के फलस्वरूप चिट्ठाकारी पर हिन्दी में पहली प्रामाणिक पुस्तक के संपादन और प्रकाशन का श्रेय भी उन्हें ही जाता है। भला 'हिन्दी ब्लॉगिंग : अभिव्यक्ति की नई क्रांति' पहली पुस्तक और 'हिन्दी ब्लॉगिंग का इतिहास' दूसरी पुस्तक ने बेहतर मिसाल कायम की है। कम साथी ही परिचित हैं कि मुंबई ने हाल ही में प्रकाशित हिन्दी ब्लॉंगिग की तीसरी पुस्तक भी इन्हीं की प्रेरणा का सुफल है। पुस्तक का नाम 'हिन्दी ब्लॉंगिंग : स्वरुप, व्याप्ति एवं संभावनाएं' है जो कि पीडीएफ फार्म में उपलब्ध है और जल्द ही प्रकाशित होकर भी मिल जाएगी।
हिन्दी चिट्ठाकारी पर संदर्भ और शोध के लिए विभिन्न पुस्तकों की महत्ता को पहचानते हुए अविनाश वाचस्पति और डॉ. हरीश अरोड़ा जी के संपादन में एक और पुस्तक का कार्य चल रहा है। इस संबंध में हिन्दी चिट्ठों और फेसबुक पर विभिन्न समूहों में लेख आमंत्रित किए गए हैं। इससे जाहिर होता है कि अविनाश वाचस्पति जी सदैव सभी को साथ लेकर चलने का जज्बा रखते हैं। उनके लिए कोई भी पराया नहीं है। देश-विदेश के हिन्दी चिट्ठाकारों को सम्मेलनों, संगोष्ठियों, मिलन समारोहों के जरिए जोड़ने के उनके कार्य का तो कोई मुकाबला ही नहीं है। उनके एक आवाह्न पर चिट्ठाकार इकट्ठे होकर विचार विमर्श के लिए सदा तैयार मिलते हैं।
आज यह सब लिखने की जरूरत इसलिए महसूस हुई है क्योंकि अविनाश जी पिछले लगभग डेढ़ वर्ष से हैपिटाइटिस सी बीमारी से पीडि़त हैं परंतु उन्होंने अपनी सक्रियता में कभी कमी नहीं आने दी है लेकिन पिछले सप्ताह भर से ऐसा अहसास हो रहा है कि अब बीमारी उन पर हावी होने लगी है। उनसे मिलने पर मैंने जाना है कि चिकित्सा शुरू होने पर लगाए जाने वाले पहले इंजेक्शन से ही उन पर शारीरिक अक्षमता दिखने लगी है। वह अब पहले की तरह जाग कर लंबे समय तक कार्य नहीं कर पा रहे हैं। इसी इंजेक्शन के कारण उनकी आंखों में दर्द, धुंधलापन, ज्वर, थकान, अधिक नींद अपना असर दिखलाने लगी है। फिर भी आशा है कि चिकित्सा की यह ऐलोपैथी पद्धति उनके शरीर से हैपिटाइटिस सी रूपी बीमारी को निकाल कर बाहर करेगी और उन्हें फिर से चुस्त-दरुस्त और सक्रिय कर देगी।
इन्हीं शुभ कामनाओं और विश्वास के साथ हम सब मिलकर उनकी शीघ्र पूरे निरोग होने की कामना करते हैं। मैं यह भी चाहूंगा कि उनके द्वारा संचालित नुक्कड़ सहित जिन चिट्ठों पर भी हम साथी उनसे जुड़े हुए हैं, उसमें पोस्टें लगाएं जिससे उनके द्वारा संचालित और शुरू किए गए चिट्ठों पर उदासीनता का वातावरण न बने। ऐसा करना मुझे तो आज समय की सबसे बड़ी जरूरत महसूस हो रहा है।
उनकी हालिया पोस्ट में उनका दर्द बहुत ही सहजता से मुखर हुआ है :-
भगवान् अविनाश जी को जल्दी ही इस बीमारी से निजात दिलाये इन्ही प्रार्थनाओं के साथ
जवाब देंहटाएंEshwat se prarthna hai ki voh Shri Avinash ji ko jald swasth kare..
जवाब देंहटाएंDeepak Shukla...
अविनाश जी हैपिटाइटिस सी बीमारी से पीडि़त हैं .
जवाब देंहटाएंShubhkamnayen .
ईश्वर उन्हे जल्द से जल्द स्वस्थ करें ।
जवाब देंहटाएंbhagwan kare aap jaldi se theek ho jayen
जवाब देंहटाएंsaader
rachana
सुंदर अभिव्यक्ति,.....
जवाब देंहटाएंनया साल सुखद एवं मंगलमय हो,....
मेरी नई पोस्ट --"नये साल की खुशी मनाएं"--