वास्तव में फिल्म में लगातार मर्दवादी और भूखे चेहरों पर 'सिल्क' दनादन तमाचे जड़ रही थी और उसका कृत्य कहीं से भी मुँह-छिपाऊ नहीं लगा.हम पुरुषों की मानसिकता और सोच अपने तईं और स्त्री के तईं बिलकुल अलग होती है.हम अपने व्यक्तिगत जीवन में उसे बतौर आदर्श कल्पित करते हैं और मौज,मज़े के लिए दूसरे हैं न.क्या मनोरंजन करने वाले ऐसे लोग दूसरी दुनिया से आयेंगे ? हमने उसके तमाचे को कई बार महसूस किया और फिल्म के अंत में वह सारा जोश,कुत्सित भावना हवा हो चुकी थी,हम जी भरकर रो भी नहीं पा रहे थे क्योंकि 'सिल्क' जैसी स्त्रियों के लिए झूठी,दोहरी मर्दवादी सोच ज़िम्मेदार जो है. हमें अपने से ही 'घिन' सी आने लगी.क्या ऐसा ही हमारा मर्द-समाज है जो सोचता कुछ है,लिखता कुछ है,दीखता कुछ है,करता कुछ है ?
मेरे लिए 'डर्टी पिक्चर' गन्दी और मनोरंजक नहीं रही,इस फिल्म ने हमारा,आपका बहुत कुछ उघाड़ दिया है !
पूरा पढ़ने के लिए यहाँ देखें और बताएँ !
मेरे लिए 'डर्टी पिक्चर' गन्दी और मनोरंजक नहीं रही,इस फिल्म ने हमारा,आपका बहुत कुछ उघाड़ दिया है !
पूरा पढ़ने के लिए यहाँ देखें और बताएँ !
0 comments:
एक टिप्पणी भेजें
आपके आने के लिए धन्यवाद
लिखें सदा बेबाकी से है फरियाद