जब से एप्पल का आईपैड आया है तब से लोगों को पता चलने लगा कि उसमें
फ़्लैश नहीं चलता. वर्ना लोगों को तो इंटरनैट पर फ़लैश ठीक ऐसे ही लगता था जैसे विंडो
के साथ एक्सप्लोरर. अडोब का फ़्लैश प्लेयर इंटरनेट पर वीडियो दिखाने का काम करता है.
इंटरनेट पर अधिकांश वीडियो फ़्लैश प्लेयर में ही दिखाई देने के हिसाब से बनाए जाते
रहे हैं.
इसके अलावा कई दूसरे फ़ार्मेट में भी वीडियो फ़ाइलें इंटनेट पर मिलती
हैं जो कि एप्पल के Quicktime बगैहरा पर ही चलती हैं. हालांकि K-Lite सरीखे कोडेक से कई अलग-अलग प्लेटफ़ार्म वाली
फ़ाइलें भी एक ही साफ़्टवेयर में चलाई जा सकती हैं. Java और HTML दूसरे विकल्प सामने आने से अडोब फ़्लैश
का हिस्सा कम होने लगा था.
वहीं दूसरी ओर एंड्रायड
ने रही सही क़सर निकाल दी. एंड्रायड के शुरूआती
संस्करणों में तो फ़लैश फ़ाइलें चलती ही नहीं थीं और जिन फ़्लैश संस्करणों को एंड्रायड
में चलने लायक बनाया भी गया, वे बेअसर साबित होते रहे, कभी क्रैश हो कर तो कभी उपकरण
की बैटरी की खपत बढ़ा कर.
एक अन्य बात जो सामने आई वह ये कि अडोब का फ़्लैश विभिन्न प्रकार
के आपरेटिंग सिस्टम के साथ पांव से पांव मिलाकर चलने में पिछड़ने लगा. इस तरह अंत में,
अडोब ने अपने हथियार डालते हुए फ़ैसला किया कि फ़्लैश के दिन लद गए.
यूं भी अब कंप्यूटर की दुनिया के लोगों को मान ही लेना चाहिये कि
अब इस क्षेत्र में एकाधिकार के दिन बीत गए हैं. यह ख़बर wired.com के साभार है.
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-काजल कुमार
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