हिन्दी दिवसः हिन्दी के नाम का अब मकबरा बनाइए

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  • पुष्कर पुष्प
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  • हिन्दी दिवसः हिन्दी के नाम का अब मकबरा बनाइए: इस तरह टुकड़ों-टुकड़ों में,अलग-अलग जगहों पर हिन्दी को मरी हुई क्यों करार देते हैं? हिन्दी के विकास के नाम पर ऐश करने का काम जब सामूहिक तौर पर होता आया है तो उसके नाम की मर्सिया पढ़ने का काम क्यों न सामूहिक हो? इस प्रोजोक्ट में बेहतर हो कि एक नीयत जगह पर उसके नाम का मकबरा बनाया जाए जहां 14 सितंबर के नाम पर लोग आकर अपनी-अपनी पद्धति से मातम मनाने,कैंडिल जलाने का काम करें। कोशिश ये रहे कि इसे अयोध्या-बाबरी मस्जिद की तरह सांप्रदायिक मामला न बनाकर मातम मनाने की सामूहिक जगह के तौर पर पहचान दिलाने की कोशिश हो। वैसे भी पूजा या इबादत की जगह सांप्रदायिक करार दी जा सकती है, मातम मनाने के लिए इसे सांप्रदायिक रंग-रोगन देने की क्या जरुरत? बेहतर होगा कि इसे कबीर की तरह अपने-अपने हिस्से का पक्ष नोचकर मंदिर या मस्जिदों में घुसा लेने के बजाय खुला छोड़ दिया जाए। देश में कोई तो एक जगह हो जो कि शोक के लिए ही सही सेकुलर( प्रैक्टिस के स्तर पर ये भी अपने-आप में विवादास्पद अवधारणा है लेकिन संवैधानिक है इसलिए) करार दी जाए। बस मूल भावना ये रहे कि ये जगह उन तमाम लोगों के लिए उतनी ही निजी है जितनी कि किसी के सगे-संबंधी के गुजर जाने पर उसके कमरे की चौखट,तिपाई,चश्मा,घाघरा जिसे पकड़कर वो लगातार रोते हैं।

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    2 टिप्‍पणियां:

    1. वंदना गुप्ता जी की तरफ से सूचना

      आज 14- 09 - 2011 को आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....


      ...आज के कुछ खास चिट्ठे ...आपकी नज़र .तेताला पर
      ____________________________________

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    2. हिंदी की जय बोल |
      मन की गांठे खोल ||

      विश्व-हाट में शीघ्र-
      बाजे बम-बम ढोल |

      सरस-सरलतम-मधुरिम
      जैसे चाहे तोल |

      जो भी सीखे हिंदी-
      घूमे वो भू-गोल |

      उन्नति गर चाहे बन्दा-
      ले जाये बिन मोल ||

      हिंदी की जय बोल |
      हिंदी की जय बोल

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