- (डॉ.) कविता वाचक्नवी
वर्ष 2002 में जब "विश्वम्भरा" की स्थापना की थी तब जो कारक मन में रहे थे, उनकी अपनी एक पृष्ठभूमि थी। 1995 में नॉर्वे में रहते हुए, बचपन से रक्त में हिन्दी साहित्य, भाषा और संस्कृति के प्रति जड़ों में पोसा हुआ संस्कार बेकल होकर अंधाधुंध किसी खोज में डूबा रहता, उसके परिणाम स्वरूप एक स्वप्न रूपाकार ले रहा था, जिसमें मूलतः संस्कार के उस ऋण से उऋण होने के लिए छटपटाहट भरती जा रही थी। उऋण तो यद्यपि कभी हुआ नहीं जा सकता किन्तु उऋण होने का यत्न करना तो अवश्य चाहिए था। जिन-जिन से कुछ भी सीखा-पाया है, उन-उन के दाय को अधिकाधिक लोगों व अधिकाधिक समय में (भविष्य) , अधिकाधिक माध्यमों से जितना संभव हो उतना प्रचारित प्रसारित कर देना उसकी एक प्रमाणित विधि हो सकती थी।
उसी का परिणाम था " विश्वम्भरा : भारतीय जीवनमूल्यों के प्रसार की संकल्पना " का गठन । संस्था का उद्घाटन कर्नाटक के तत्कालीन राज्यपाल महामहिम त्रिलोकी नाथ चतुर्वेदी ने किया। ज्ञानपीठ गृहीता डॉ. सी नारायण रेड्डी ने अपनी ओर से संस्था के मुख्य संरक्षक होना स्वीकार किया। संस्था ने मूलतः `फील्डवर्क' को प्रमुखता देते हुए बिना शोर शराबे के, बड़े कार्य किए ; यद्यपि अनेक महत्वपूर्ण कार्यक्रम भी संस्था ने आयोजित किए जिनमें विष्णु प्रभाकर जी, प्रभाकर श्रोत्रिय जी प्रभृति अनेकानेक भाषा, साहित्य व संस्कृति के ख्यातनाम वरिष्ठ व्यक्तित्वों ने स्वयं उपस्थित होकर संस्था के विशद उद्देश्यों के प्रति अपना समर्थन व सहयोग दिया। उस पर फिर कभी विस्तार से लिखा जा सकेगा तो लिखूँगी।
उस समय उद्घाटन अवसर छापे गए आमंत्रण पत्र में संस्था के उद्देश्यों आदि की जानकारी देता कार्ड का एक पन्ना
पश्चात जैसे जैसे संसाधनों की सार्वभौमिकता के माध्यम, ऊर्जा, श्रम व शक्ति, परिणाम, परिणामों की व्यापकता, दीर्घकालिकता और गति का गणित समझ आता चला गया तैसे तैसे "विश्वंभरा" का वह अभियान सर्च इंजिनों, आधुनिक समाज और संसाधनों के प्रयोक्ताओं की मानसिकता को समझ कर गत 5 वर्ष की नेट रँगाई के विविध पक्षों सहित 23 अक्तूबर 2007 को हिन्दी भारत + हिन्दी-भारत की काया में आ गया।
इन सब बीती बातों को आज स्मरण करने का एक अन्य बड़ा कारण है। भारतीय भाषाओं के इतिहास में आज का दिन महत्वपूर्ण है। अतः गत कुछ समय से संकल्पित अनुष्ठान को आज उद्घाटित करने से अच्छा अवसर और क्या हो सकता है ?
विदेशों में बसे, जन्मे, या नागरिकता ले चुके भारतवंशियों के एक बृहत अंतरराष्ट्रीय सामूहिक मंच की योजना कई दिन से मन में थी। अभी तो यही स्वप्न है कि यह एक ऐसा साझा मंच बने, जो भारत से बाहर किसी भी देश में रहने वाले भारतवंशी लेखकों, भाषाचिंतकों, भाषा टेक्नोलॉजी से जुड़े मुद्दों पर काम करने वालों का अपना मंच हो। अब तक कहीं कोई ऐसा सामूहिक संयुक्त उपक्रम नहीं हुआ है, जिसमें एक स्थान पर सभी आप्रवासी भारतीय जो भाषा, लिपि, साहित्य इत्यादि विषयों माध्यमों से जुड़े मुद्दों पर काम करते हैं, उनको संयुक्त स्वर/रूप दे। भूमंडलीकरण से उपजे बाजार के खतरे में भारतीय भाषाओं और लिपियों पर मंडरा रहा खतरा वस्तुतः भारतीयता पर मंडरा रहा खतरा है। भाषा और साहित्य ही में वह शक्ति होती है कि संस्कृति को विरासत के रूप में सँजो कर आने वाली पीढ़ियों के लिए सुरक्षित कर पाए। आधुनिक संचार माध्यमों में भारतीय भाषाओं का सिमटता स्वरूप और शक्ति हमें इस बाज़ार के खतरों से परिचित करवाने के लिए पर्याप्त हैं। जिस भाषा का व्यवहार आधुनिक संचार माध्यम करते हैं, उसकी बड़ी स्वीकार्यता और प्रचलन भी एक अन्य संकेत देते हैं। ऐसे में अपनी भाषाओं, लिपियों को इन माध्यमों की शक्ति के प्रयोग से विश्वबाजार में स्थापित कर देने की चुनौती भी बड़ी है; क्योंकि आने वाली पीढ़ियों के भाषाकोशों में वही भाषा सुरक्षित रहेगी, जो भाषा उनके माध्यमों द्वारा उनके पास पहुँची होगी। ऐसे में भारतीयता किस रूप में व कितनी पहुँचेगी यह अनुमान लगाना कठिन नहीं है।
"विश्वम्भरा" के ऊपर उद्धृत उद्देश्योंकी भांति संस्था अधुनातन माध्यमों का प्रयोग अपने कार्य-विस्तार हेतु तो करेगी ही अपितु साथ ही इन माध्यमों में साहित्य व भाषा के विविध स्वरूपों की पड़ताल, प्रयोजनमूलक व समाज-भाषिक पक्षों, अनुवाद, समाजभाषिक संदर्भ में वैश्विक हिंदी/भारतीय भाषाओं की स्थिति का आकलन, विविध स्तरों व क्षेत्रों की भाषा के बदलते स्वरूप आदि को समझने - समझाने व उनके अध्ययन अध्यापन आदि से जुड़े सरोकारों पर भी बल देगी। ताकि भारतीय भाषाओं विशेषतः हिन्दी को उसके सभी स्तरों, सभी रूपों व सभी माध्यमों में उसकी यात्रा के सही व सार्थक परिप्रेक्ष्य में देखा समझा जा सके, उसके साहियिक व साहित्येतर पक्षों से संबन्धित व्यक्तियों, रचनाकारों को जोड़ा जा सके, उनके अवदान को एक स्थान पर एकत्रित कर उनके कार्यों में सहभागिता व मूल्यांकन में आवश्यक सहयोग हेतु वातावरण निर्मित किया जा सके।
आज तो सूत्रपात मात्र है, धीरे धीरे विस्तार देते हुए आप्रवासी लेखकों के एक लेखक-कोश और डाटाबेस बनाने की भी योजना मन में है। इस कोश में प्रारम्भ में मुख्यतः हिन्दी में किसी भी विषय अथवा विधा में लेखन करने वालों को जोड़ा जाएगा। पश्चात विषयवार, विधावार, क्षेत्रवार, भाषावार अलग अलग और भी विस्तार जोड़े जाएँगे। संभव है, आगे चल कर अन्य भारतीय भाषाओं के लेखकों और भाषाकर्मियों को भी सम्मिलित करना हो; साथ ही भारतीय मूल के उन लेखकों, भाषाकर्मियों को भी जो किसी भी अन्यभाषा द्वारा भारतीयता को किसी भी रूप में आगे सिंचित कर रहे हैं।
इसी प्रकार एक योजना आप्रवासियों द्वारा हिन्दी में प्रकाशित की जा रही पत्र-पत्रिकाओं के कोश निर्माण / डाटाबेस की भी है। वह भले ही नेट पत्रिका हो या प्रिंट की, मासिक हो अथवा छमाही, किसी भी संगठन, संस्था, व्यक्ति अथवा विषय से जुड़ी हो ; सबका स्वागत है।
आज मुख्यतः इस संस्था / मंच ("विश्वम्भरा" : अंतरराष्ट्रीय आप्रवासी-भाषा-लेखक-संघ ) के गठन व स्थापना की औपचारिक घोषणा करने के उद्देश्य से लिखना प्रारम्भ किया था। यह एक खुला मंच है, कोई भी आप्रवासी भारतीय, भले ही वे किसी भी देश में रहते हों, संस्था से जुड़ें और उसकी योजनाओं की सिद्धि में अपनी सहभागिता दें। जिन-जिन के पास उनके परिचय क्षेत्र के उपर्युक्त विषय से सम्बद्ध ऐसे व्यक्तियों के पते, परिचय, चित्र व संपर्क सूत्र आदि हों, वे उन सब को इस से जोड़ें। किसी पत्रिका के विषय में जानकारी है तो उसे जोड़ें। ध्यान रहे आपका जरा-सा भी सहयोग इतिहास- निर्माण की इस प्रक्रिया में बड़े काम का हो सकता है। जिन्हें अपने-अपने अथवा दूसरे किसी देश के ऐसे व्यक्तियों की कोई भी जानकारी हो, भले उनका काल कोई भी रहा हो, उसे भी बताएँ, जुड़वाएँ | संस्था गत 100 वर्ष या उस से भी अधिक के जितने भी ज्ञात- अज्ञात ऐसे व्यक्ति हैं, उन सब को उस कोश में जोड़ने का विचार रखती है । इसी प्रकार पुरानी से पुरानी पत्र- पत्रिकाओं और उनके इतिहास से संबन्धित हर वस्तु को भी।
अलग अलग देशों में रहने वाले कुछ मित्रों- परिचितों को क्रमश: उस-उस देश के प्रतिनिधि के रूप में जोड़ा जाएगा। शुभचिंतकों व सलाहकारों के सहयोग की भी सदा आवश्यकता पड़ेगी, वे अपना सहयोग व आशीर्वाद सदा संस्था को देते रहें। प्रतिनिधियों व सलाहकारों के अतिरिक्त और भी सभी लोग जो भी इसे पढ़ें, जानें, वे सब खुले मन व भावना से इस के उद्देश्यों की पूर्ति में सहयोग करें। यह एक प्रयास है ताकि भाषा, लेखन व भाषा टेक्नालॉजी के किसी भी क्षेत्र से जुड़े आप्रवासी भारतवंशियों को समीप लाया जा सके। मैं केवल जोड़ने वाला सूत्र-भर हूँ। आगे किस रूप में क्या कार्य-योजनाएँ कैसे रूपाकार लेंगी, यह तो समय बताइएगा।
हिन्दी ( भारतीय भाषाओं) और भारत से प्रेम करने वालों के मध्य परस्पर विचारों के आदान-प्रदान के निमित्त इसे गठित किया जा रहा है। भाषा, साहित्य, कला एवं ज्ञान-विज्ञान के विविध अधुनातन विषयों / क्षेत्रों ( उनकी समस्याओं, समाधान आदि से जुड़े पक्षों ) पर संवाद व पारस्परिकता का वातावरण बना कर उन्हें एक सामूहिक मंच प्रदान करना, सम्पूर्ण विश्व में उन्हें प्रचारित प्रसारित कर विकास का वातावरण और पृष्ठभूमि बनाने का यत्न करना, उन्हें भारतीयता की पहचान के रूप में स्थापित करना, भावी पीढ़ियों के लिए तथ्यों व सामग्री को समायोजित कर के सँजोने, शोधार्थियों के लिए भारत से बाहर हुए साहित्य व भाषा विषयक कार्यों की सामग्री व उसके मूल्यांकन में सहयोग देना जैसे अनेकानेक कार्य संस्था की परिधि में आते हैं। उन पर धीरे धीरे समयानुसार संसाधनों की उपलब्धता व सामाजिकों के सहयोगानुसार विचार किया जाएगा।
आपके सुझाव भी आमंत्रित हैं। सहयोग भी अपेक्षित, वांछित है। विचार आपको करना है कि इस बड़े यज्ञ में आपकी आहुति कैसे व कब पहुँचेगी।
"विश्वम्भरा" अर्थात् "यत्र विश्वम् भवत्येक नीडम्"
प्रतिक्रियाओं व सहयोग की प्रतीक्षा में ......
सादर
क. वा.
वंदना गुप्ता जी की तरफ से सूचना
जवाब देंहटाएंआज 14- 09 - 2011 को आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....
...आज के कुछ खास चिट्ठे ...आपकी नज़र .तेताला पर
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अच्छा कदम।
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