प्रत्यावर्तन

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  • बदलती घटनाओं से
    कभी चमत्कृत होती
    तो कभी संशय में आजाती हूँ|
    दरअसल घटनाएँ जिस रूप में
    मोड लेरही हैं आजकल
    उसे क्या नाम दूं |
    बरसों के भटके रिश्ते
    बड़ी आत्मीयता जता रहे हैं
    और वे नाते जिन्हें
    इतने यत्नों से पाला पोषा
    आज नज़रों से ओझल
    होते जा रहे है|
    मानो अब उनका टर्म
    समाप्त होरहा हो |
    आदतन सहज विशवास
    कर ही लेती हूँ
    बड़ी से बड़ी घटना पर|
    पर रिश्तों का ये प्रत्यावर्तन
    मुझे उलझन में
    उलझा रहा है |
    और मै अवश सी सब कुछ
    ऐसे स्वीकारती हूँ
    मानो ये सब नियति का हिस्सा है |
    औरमुझे अब ये ही रोल अदा
    करना है |

    1 टिप्पणी:

    आपके आने के लिए धन्यवाद
    लिखें सदा बेबाकी से है फरियाद

     
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