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हर दिन होने वाले दर्ज़नों बलात्कार,तार-तार होते रिश्ते,बस से सड़क तक और घर से बाज़ार तक महिला की इज्ज़त से होता खिलवाड़,बढ़ती छेड़छाड़,दहेज के नाम पर प्रताड़ना,प्रेम के नाम पर यौन शोषण,अपनी नाक की खातिर माँ-बहन-बेटी की हत्या,कन्या जन्म के नाम पर पूरे परिवार में मातम और बूढी माँ को दर-दर की ठोकरे खाने के लिए छोड़ देना और यहाँ तक की आम बोलचाल में भी बात-बात पर महिलाओं के अंगों की लानत-मलानत हमारे रोजमर्रा के व्यवहार का हिस्सा है तो फिर एक दिन के लिए महिला दिवस मनाकर महिलाओं के प्रति आदर का दिखावा क्यों?इसे अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस कहने की बजाए ‘राष्ट्रीय शर्म दिवस’ कहना ज़्यादा उचित होगा....क्योंकि हमें इस दिन को गर्व की बजाए “राष्ट्रीय शर्म” दिवस के रूप में मनाना चाहिए.आखिर हम गर्व किस बात पर करें? क्या यह गर्व की बात है कि
हर दिन होने वाले दर्ज़नों बलात्कार,तार-तार होते रिश्ते,बस से सड़क तक और घर से बाज़ार तक महिला की इज्ज़त से होता खिलवाड़,बढ़ती छेड़छाड़,दहेज के नाम पर प्रताड़ना,प्रेम के नाम पर यौन शोषण,अपनी नाक की खातिर माँ-बहन-बेटी की हत्या,कन्या जन्म के नाम पर पूरे परिवार में मातम और बूढी माँ को दर-दर की ठोकरे खाने के लिए छोड़ देना और यहाँ तक की आम बोलचाल में भी बात-बात पर महिलाओं के अंगों की लानत-मलानत हमारे रोजमर्रा के व्यवहार का हिस्सा है तो फिर एक दिन के लिए महिला दिवस मनाकर महिलाओं के प्रति आदर का दिखावा क्यों?इसे अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस कहने की बजाए ‘राष्ट्रीय शर्म दिवस’ कहना ज़्यादा उचित होगा....क्योंकि हमें इस दिन को गर्व की बजाए “राष्ट्रीय शर्म” दिवस के रूप में मनाना चाहिए.आखिर हम गर्व किस बात पर करें? क्या यह गर्व की बात है कि