पहले जरा blogging को जवां होने दीजीए हुज्रूर .....

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  • अजय कुमार झा
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  • ये नई फ़ोटो मिली हमें , मगर है नुक्कड ही देखिए




    अभी अभी नुक्कड की इस पोस्ट पर सुशील जी द्वारा उठाए गए प्रश्नों का जैसा और जो उत्तर मैं उस पोस्ट में दे पाया ...वही जस का तस यहां रख रहा हूं ..वैसे विमर्श जारी है







    नेट पर साहित्य ..ओह विषय ही भयंकर है ...क्योंकि साहित्य कहता है कि नेट कुछ नहीं और नेट जो कहता है वो नेट पर ही कहता है ...और कमाल की बात देखिए कि जो साहित्य अपने वजूद के आगे नेट का वजूदहीन या गैर मौलिक मानता साबित करता है वही हर बार खुद ये अतिक्रमण करके ..नेट पर ये बात कहने आ जाता है । हालांकि कुछ बेहद संपादक प्रकाशक अपनी भडास को अपने समाचार पत्रों में छाप चुके हैं मगर वही प्रबुद्ध लोग जवाब में लिखी गई पोस्ट को पढने का ताव भी न ला सके ।

    अब अगली बात - भाई अविनाश वाचस्पति जी ने मुगालता पाल रखा है ............अब ये तो पाठक खुद तय कर लें कि मुगालता किसने पाल रखा है ..तो उन्हें ही करने भी देना चाहिए ..वे कर भी लेंगे बखूबी ....उन्हें कौन सा यहां साहित्यकार , ज्ञानी पुरूष ,या एलीट क्लास का तमगा मिलने वाला है । अभी सरकार ने कोई पुरूस्कार भी शुरू नहीं किया कि अगला ..जो ब्लॉगर ही कहलाएगा ..ब्लॉग शिरोमणि या फ़िर ब्लॉग केसरी की उपाधि लिए हुए ...सर की उपाधि सा फ़ील करे ..तो हर बार फ़िर ये जहमत साहित्य के जिम्मे ही क्यों आ जाता है कि वो तय करने लगता है कि साहित्य कौन है कहां है और किनके दम पे है


    वैसे भी ये तय करने का हक साहित्यकारों ने ही suo motto अपने पास रख लिया है कि ...हम लिखें तो कालजयी और दूसरा तो मस्तराम ही होगा ...यकीन जानिए उन मस्तरामों की नज़र में ..हमारा सभ्य साहित्य भी उतना ही कचरा है जितना कि हमारी नज़र में वे ..मगर उसका प्रसार और आकार ..इतना दैत्याकार है कि ....जाने क्या क्या लीले बैठा है .....




    दुनिया नेट पर संकुचित हो गयी है.................

    ऐसा निष्कर्ष आपने निकाला हो सकता है हमें तो लगता है कि नेट से दुनिया का विस्तार हुआ है ...बेशक भौतिक दुनिया का न सही आभासी का ही सही .....कादम्बिनी , हंस सरीखी साहित्यिक पत्रिकाएं आप उतनी सहजता से और उतना ही शीघ और संप्रेष्य बना कर ..पेश करने कोई बेहतर जुगत हो तो बताएं । वैसे भी हिंदी ब्लॉगिंग के सिर्फ़ पांच साल के अल्प इतिहास में आप लोग ..उसे पिछले सौ साल के हो चुके साहित्य से जबरन ही मुर्गा लडान कराने पर क्यों तुले हैं ये फ़िलहाल समझ से परे है ..या शायद इसलिए कि कम से कम अंतर्जाल पर भी कुछ लोगों को याद तो रहे कि ..इसके परे भी कोई साहित्य है .....










    19 टिप्‍पणियां:

    1. .यहाँ हम कुछ अच्छा लिखने और पढने आते है और हमारा वो शौक पूरा होता है

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    2. Hi
      Sir
      Kaafi achha post likha hai , Achha lag raha hai ki bloging duniya badi hoti jaa rahi hai . Hum sabhi log ek sath hai .

      Sushil Gangwar
      www.sakshatkar.com
      www.bollywoodkhabar.com

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    3. अजय भाई, .
      आपने तो पोस्ट के विरुद्ध पूरी भड़ास निकाल ली , कुछ छोड़ा ही नहीं किसी और के लिए , वैसे आप से पूरी तरह सहमत हूँ और अविनाश जी से भी !

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    4. जो घंटो नेट पर बैठते हैं उन्‍हें तो सब कुछ नेट ही लगना है। धन्‍य है वो आबादी बढ़ाने वाले जि‍न्‍होंने इसे 5 अरब तक पहुंचाया और नेट अब से दशकों बाद भी बस कुछ करोड़ों तक ही पहुंचेगा है जो इस पर लि‍खेंगे पढ़ेंगे। सब धीरे धीरे जान ही जायेंगे कि‍ देर तक स्‍क्रीन पर आंखें गढ़ाने और की बोर्ड पर अंगुलि‍या चटखाने के नतीजे कि‍स कदर खतरनाक हो सकत हैं।

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    5. सही फरमाया ...............
      शुद्ध साहित्य पर तो कोई टिप्पणी भी नही आएगी ....उटपटांग पर जरूर लोग ध्यान देते हैं ...अब लगता हैं साहित्य मैं उटपटांग मिलाकर पिलाना होगा ...........

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    6. अजय भाई ऐसा लगता है कि जरूर इन जनाब की कोई ऐसी पुस्‍तक लोकार्पित होने वाली होगी, जो हिन्‍दी ही नहीं अपितु विश्‍व साहित्‍य जगत में तहलका मचा देगी और साहित्‍य में अगर कोई दादा साहेब फाल्‍के अथवा नोबल पुरस्‍कार टाइप का कुछ होता है तो उसे भी अवश्‍य उपकृत कर देगी। हमारी अग्रिम बधाईयां प्रिय भाई सुशील कुमार जी को।

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    7. rajey shah ,
      आगाह करने का शुक्रिया मित्र । आपने दुरूस्त फ़रमाया , और इस बात में बहस की कोई गुंजाईश भी नहीं है किंतु, अब से दशकों बाद का आकलन इत्ती जल्दी वो भी इतना सटीक ...शायद कुछ वर्षों पहले ऐसे ही किसी ने कहा था रिक्शे वालों के पास मोबाईल फ़ोन .....और आज भिखारी के पास भी ड्युएल सिम वाला होगा कईयों के पास ..आखिर अब उन्हें विदेशी भाषा बोलने की ट्रेनिंग सरकार खुद दे जो रही है । आप चाहे मोहब्बत करें या नफ़रत ...मगर किसी भी सूरत में इसे दरकिनार नहीं कर सकते ये तय है ...

      रविंद्र भाई ,
      काहे की भडास , हम कौन सा साहित्यकार हैं कि बडे तोपची ब्लॉगर हैं ..जो मन में आया लिख धरा ..साहित्यकार विश्लेषण करते रहें ..कि क्या लिखा ??

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    8. भड़ास अपनी अपनी ....चलो इसी बहाने कुछ न कुछ नेट पर हलचल तो बनी रहती है ... बहस करने वालों के लिए बहस भी जरुरी है.... कभी कभी बहस में भी आनंद आता है .. बढ़िया है चलने दो ....

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    9. वैसे जो अविनाश वाचस्‍पति अपने स्‍वास्‍थ्‍य को तो सही से पाल नहीं सकता। जब देखो तब बीमार पड़ा रहता है, वो मुगालता पाले हुए है। जरूर वो मुगालता सुशील कुमार जी जैसे महान साहित्‍यकार का होगा और उसे अविनाश वाचस्‍पति ले उड़े हैं, मुझे तो इस पूरे घटनाक्रम से यही समझ में आ रहा है।

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    10. अजय जी आपने तो हम सबके मन की बात कह दी…………सिर्फ़ चंद लोगो ने साहित्य साहित्य गाकर शोर मचा रखा है वरना सही बात है वहाँ लिखी हर बात साहित्य नही है…………अभी तो हमारा बच्चा शैशवावस्था मे है उसे सच मे जवान होने दीजिए फिर देखियेगा कमाल्…………लोग साहित्य भूल जायेगे और नेट की माला जपेंगे और वो ही जो इसकी आलोचना कर रहे हैं……………ब्लोगर दोस्तो लगे रहो। मज़िल दूर नही।

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    11. एक कहावत है कि अगर पत्थर फेंके जाने लगें तो समझो पेड़ में फल आने लगे हैं, लगता है वेब पर हिंदी साहित्य का काम करनेवालों की मेहनत में फल आ गए हैं। बात तो ठीक है... भारतीय लेखकों को वेब की अद्यतन जानकारी नहीं होती और हमें भारतीय लेखन की। यह स्वाभाविक है, इसमें आलोचना की कोई बात नहीं है। एक दूसरे के साथ सहयोग कर के ही हम हिंदी का विकास कर सकते हैं पत्थर फेंक कर नहीं। वैसे सुशीलकुमार जी हैं कौन? कृपया वेब पर यह जानकारी अद्यतन करें। जो आप्रवासी को अप्रवासी लिखते हैं, जिनको सही हिंदी तक लिखना नहीं आता वे साहित्य की बात करते हैं, पहले भाषा तो सीखें....

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    12. किसी भी बिन्दु पर असहमती की गुंजाईश नहीं.

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    13. वैसे अविनाश भाई को अपने स्वास्थय का ध्यान देते हुए पत्र पत्रिकाओं के लिए भी लिखना चाहिये. :)


      -पत्र पत्रिकाओं के लिए लिखना स्वास्थयवर्धक है-

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    14. अविनाश जी आपकी सेहत तो माशाल्लाह शानदार दिखती हैं और काम भी बढ़िया. जहां तक सवाल है ब्लॉगजगत का अभी बड़ा होने मैं समय लगेगा .

      कुछ इधर की कुछ उधर की
      शारीरिक संबंधों को सहमती देनी
      जौनपुर शिराज़ ए हिंद भाग १

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    15. साहित्यकार भी दौड़े चले आ रहे हैं टिप्पणी कमाने के फ़ेर में :)

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    16. मेरा सुझाव है कि इस प्रकरण को बन्द कर देना चाहिए!
      अधक उछालने से किसी को महिमामंडित करने से अतिरिक्त कुछ नहीं होगा!

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    17. ajay ji , main apni ek purani tippani jo maine us post par ki thi yaha phir se likha raha hoon..

      आदरणीय गुरुजनों और मित्रो ,
      मैं तो इतना जानता हूँ की , आज जितनी हिंदी नेट पर पढ़ी जाती है , उतनी कही भी किसी भी किताब या magazine में नहीं पढ़ी जाती [ मैं ट्रेन में पढने वालो की बात नहीं कर रहा हूँ , मैं गंभीर रूप से पढने वालो की बात कर रहा हूँ ] ..जिसे भी थोडा भी हिंदी साहित्य में रूचि है आज वो नेट पर है ...और नेट से ज्यादा अच्छे और स्वतंत्र और स्वस्थ अभिव्यक्ति कहीं नहीं है , और देखा जाए तो पिछले ५ वर्षो में जितने अच्छे लेखक और कवी हिंदी साहित्य को , नेट के कारण मिले है वो पिछले २५ सालो में magazines को नहीं मिल पाए है और ये संभव हुआ है सिर्फ नेट पर हिंदी साहित्य की असीमित संभावनाओ के कारण. मुझे अपना ही उदहारण याद आ रहा है की , पहले मेरी कविताये नेट पर /ब्लॉग पर छपी और पढ़ी गयी , और फिर हंस और दूसरी सारी पत्रिकाओ में छपी . आज के हिंदी लेखक या कवी को इससे पहले ये ख़ुशी कभी हासिल नहीं हुई , क्योंकि पहले तथाकथित हिंदी साहित्य के ठेकेदारों ने अपना दबदबा बन रखा था साहित्य जगत पर. .. और सुशील जी आप inferiority complex के शिकार है , पहले बहुत से नवजात कवी और लेखको पर अपना निशाना साधा [ जैसे की मैं .. याद है आपको , मैं आज तक नहीं भूला हूँ. वो तो धन्यवाद समीर जी की की उन्होंने एक अपने एक लेख में मेरे बारे में लिखकर मुझे फिर से लिखने की प्रेरणा दी, वो तो धन्यवाद प्राण शर्मा जी का और दुसरे सारे साहित्यकारों का जिन्होंने मुझे हमेशा पसंद किया और मुझे प्रेरित किया ] , लेकिन आज तो आप बहुत आगे निकल गए , आदरणीय पूर्णिमा जी के बारे में कह डाला , गुरु जी अविनाश जी के बारे में कह डाला [ वो जरुर कहते होंगे ... you too brutaas ] ...... आप अपने हिंदी साहित्य से जुड़े रहिये , किसी के बारे में मत कहिये ... हिंदी साहित्य को जहाँ जाना है , वहां वो जा रहा है और अगर आप आनेवाले १० साल जीवित रहे तो देखियेंगा की प्रिंट के अलावा नेट पर भी हिंदी साहित्य को बोलबाला होंगा . और मैं तो यही कहूँगा की हिंदी साहित्य अब सिर्फ नेट पर ही ज्यादा उपलब्ध होंगा . आज ब्लॉग्गिंग बहुत ही सशक्त माध्यम है और भारत को हिंदी ब्लोग्गेर्स की बहुत जरुरत है .. आप अपनी सुधि देखिये , बाकी , हम तो भारत के हिंदी ब्लोग्गेर्स है , हिंदी साहित्य को जहाँ ले जाना है , वहां तो ले ही जायेंगे .. मुझे तो शक होता है की आप सही में हिंदी को प्रेम करते है , क्योंकि अगर ऐसा होता तो आप अविनाश जी को कभी कुछ नहीं कहते .. आज हिंदी ब्लॉग्गिंग में और हिंदी साहित्य में उनका योगदान , बहुत ही ज्यादा है ...बाकी तो मुझे कुछ नहीं कहना है क्योंकि , हिंदी ब्लॉग्गिंग करना है हिंदी साहित्य को आगे ले जाना है .. प्राणाम !!!

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    18. गायब नहीं हुए हैं सुशील कुमार सर, अपना कविता संग्रह लेकर आ रहे हैं तुम्‍हारे शब्‍दों से अलग। तब सब के मुंह और कलम दोनों बंद हो जाएंगे। मैं उनकी कविताओं की फैन हूं!

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    आपके आने के लिए धन्यवाद
    लिखें सदा बेबाकी से है फरियाद

     
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