सुख पाने के लिए अमेरिका गए हैं, गहना पहनना सुख ही है, सुख मिल रहा है फिर भी दुखी, या सिर्फ दुखी दिखने की मानसिकता का प्रभाव है। वैसे भी अगर सारे सुख विदेश में ही मिलने लगेंगे तो फिर देश में कोई क्यों रहेगा। जाएगा तो कभी लौटेगा नहीं। ऐसे दुखदायी इंतजाम ही तो देश से जोड़े रखते हैं। अपने देश के गुण गाते नहीं अघाते हैं। प्रवासी चाहे शिक्षा पूरा पढ़ने और अपनी बात कहने के लिए क्लिक कीजिए
रेडियो कॉलर की अमेरिकी कविता
Posted on by अविनाश वाचस्पति in
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कविता,
व्यंग्य
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