मित्र, अनिल अत्री ने पोस्ट लिखी है कि देश की रास्ट्रीय राजधानी दिल्ली मैं अनाज खुले मैं भीग रहा है ,सड़ रहा है
इसके जवाब में मेरा तो बस यही कहना है कि,
कोई बात नहीं .
नाराज़ न हों.
अनाज होता ही सड़ाने के लिए है. क्योंकि सड़ाएंगे नहीं तो बाबू और नेता लोग सरकारी किताबों में करोड़ों का अच्छा अनाज भी सड़े की आड़ में कैसे बेच पाएंगे...
क्या आपको पता है कि इस तथाकथित सड़े अनाज की बिक्री के बहुत बड़े-बड़े टेंडर निकलते हैं ? इस सड़े अनाज को मुर्गी-दाने के रूप में प्रयोग किये जाने की बात लिखी होती है लालाओं की बहियों में.
यह बात अलग है कि इस तरह टेंडर से उठा सड़ा अनाज तो वापिस आम लोगों के लिए राशन की दुकानों में भिजवा दिया जाता है और बढ़िया अनाज विदेश, या फिर आटामिलों को. क्या आपको अंदाज़ा भी है कि इस अनाज भंडारण व वितरण से जुड़े लोगों की ऊपर की कमाई कितनी है (?) यह काम यूं ही नहीं हो जाता, बहुत बड़ा क़रीने से बुना हुआ नेटवर्क काम करता है इस सबके पीछे. और आप चाहते हैं कि अनाज सड़ना बंद हो जाए ? क्यों किसी के पेट पर लात मारने पर आमादा हैं आप भाई लोग.
सुप्रीम कोर्ट तक तो जाकर देख लिया लोगों ने कि, भले आदमी सड़ाते क्यों हो अनाज को ग़रीबों में बांट दो न. उस पर सरकार की तर्कशक्ति देश ने देख ही ली न !
आप अब और क्या उम्मीद लगाए बैठे हैं...
इस गुलिस्तां की हर शाख पे उल्लू बैठा है.
0----------0
वाह काजल जी क्या बात कही आपने! इस घोटाले का तो हमे भी पता नहीं था। सारे काम बड़े योजनाबद्ध(?) होते हैं।
जवाब देंहटाएंकरारा व्यंग्य
जवाब देंहटाएंएक सार्थक पोस्ट।
http://vriksharopan.blogspot.com/
http://pathkesathi.blogspot.com/
इस गुलिस्तां की हर शाख पे उल्लू बैठा है
जवाब देंहटाएंसार्थक बात कही आपने!
ठीक कहा!
जवाब देंहटाएंबरबाद चमन को करने को एक ही उल्लू काफी है!
अंजामेगुलिस्तां क्या होगा,
हर शाख़ पे उल्लू बैठा है!
करारा व्यंग्य!सार्थक पोस्ट।
जवाब देंहटाएंअंजामें गुलिस्तां क्या होगा????
जवाब देंहटाएंहमने सुना है कि जो अनाज की कद्र नहीं करता, उपरवाला उनकी कद्र नहीं करता... इस तरह अनाज को सडाने के अंजाम बहुत बुरे भी हो सकते हैं....
बेहद अफसोसजनक वाकया ...गिरने की कोई हद बची ही नहीं है.
जवाब देंहटाएं