(शहीद दिवस पर विशेष )
!! न आना इस देश बापू !!
शान्ति का उपदेशक
सत्य-अहिंसा में आस्था रखना छोड़ दिया है
और जम्हूरियत
बन गयी है खानदानी वसीयत का पर्चा
सिपहसलार-
कर गया है सरकारी खजाना
सगे-संवंधियों के नाम......
संसद के केन्द्रीय कक्ष में
व्हिस्की के पैग के साथ
होती रहती है कभी राम राज्य तो कभी भ्रष्टाचार पर चर्चा
बापू !
वह स्थान भी सुरक्षित नहीं बचा
जहां बैठकर गा सको -
वैष्णव जन.............पीर पराई जाने रे......!
तुम्हारे समय से काफी आगे निकल चुका है यह देश
इस देश के लिए सत्य-अहिंसा कोई मायने नहीं रखता अब
टूटने लगे हैं मिथक
चटखने लगी है आस्थाएं
और दरकने लगी है-
हमारी बची-खुची तहजीब
इसलिए लौटकर फिर -
न आना इस देश बापू !
() रवीन्द्र प्रभात
इस कविता के माध्यम से सच्ची पीड़ा को सामने रखा है.आज लोग नमन-नमन का राग तो अलापते हैं,परन्तु बापू के क़दमों का ,विचारों का अनुसरण करना नहीं चाहते.इसी लिए उन्हें पूजनीय बता कर चलता कर देते हैं.फिर वही होना है जिसका खाका आपने खींच दिया.
जवाब देंहटाएंबापू अगर इस देश में फिर आना तो यह सवाल मत पूछना की क्या यह मेरा देश है |जिसे मैं तुम्हारे भरोसे छोड़ गया था |
जवाब देंहटाएंbapu khud bhi nahi ana chahenge vapis
जवाब देंहटाएंइस अभिव्यक्ति में एक पीड़ा है आम भारतीय की, सुन्दर अभिव्यक्ति !
जवाब देंहटाएंसच , हालात तो कुछ ऐसे ही हैं ।
जवाब देंहटाएंलेकिन किसे सुनाएँ ?
जो सुनते हैं वे कुछ कर नहीं सकते ।
जो कर सकते हैं वे सुनते नहीं ।
न आना इस देश बापू ...
जवाब देंहटाएंइस देश को एक ऐसे चमत्कारी व्यक्तित्व की ही आवश्यकता है !
लाजवाब अभिव्यक्ति !
जवाब देंहटाएंaam admi ki peeda ko swar de rahi hai aapki marmik rachna..
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