कब टूटेगा ये भ्रम
मुझे लोगों से मिलना अच्छा लगता है सो मैं अपनी तरफ से कोई भी ऐसा अवसर छोड़ना नहीं चाहती |जहां भी मौक़ा मिलता है आज की युवा पीढ़ी से बात करने का कोई ना कोई बहाना तलाश लेती हूँ |
बेरोजगार युवाओं को रोजगार केलिए प्रशिक्षितकरने के लिए एक संस्था में मुझे जाने का अवसर मिला |वहाँ मुझे मानव मनोविज्ञान विषय पर बातचीत करनी थी | जब मैंने वहाँ का पाठ्यक्रम देखा ,उनकी माध्यम भाषा के विषय में जानकारी ली तो पता चला कि सब कुछ अंगरेजी में था पर जब मैं कक्षा में प्रत्याशियों से मिली तब मालूम चला कि वहाँ तो बहुत कम लोग अंगरेजी जानते थे | उन्होंने अपनी पढाई हिन्दी माध्यम से की थी ,अंगरेजी एक विषय के रूप में पढ़ी जरूर थी पर उस को बोलने ,सुनने और लिखने में महारथ हासिल न थी |कक्षा में दिए जाने वाले हर व्याख्यान को वे सुनते तो थे पर उनकी समझ में १०प्रतिशत ही आता था कारण था माध्यम भाषा |
कहीं भी कोई कोशिश उन छात्रों से जुडने की नहीं थी बल्कि हर स्तर पर उनमें यह अहसास भरा जा रहा था कि तुम बहुत कमतर हो क्योंकि तुम अंगरेजी नहीं जानते और दुनिया का पूरा ज्ञान केवल इसी भाषा में ही ह्रदयंगम किया जा सकता है, यदि तुम अंगरेजी नहीं जानते तो तुम कुछ भी नहीं हो ,कही स्टेंड नहीं करते और आज के युग में बिना अंगरेजी जाने जॉब का मिलना तो बहुत मुश्किल है | इन सब धारणाओं का परिणाम कमोबेश यही होता है कि हर माता-पिता अपने उस बच्चे को जिसे अभी अपनी मातृभाषा पर भी दक्षता हासिल नहीं हुई होती उसे अन्य भाषा के भंवर में भटकने के लिए छोड़ देते है फल स्वरूप वह न तो अपनी भाषा कों ही जान पाता है और न अन्य भाषा में कुशल होपाता है| |परिणाम यह कि न वह घर का रहता है और न घाट का |हिन्दी कों तो उसने कुछ माना ही नहीं सोच यह लिया कि येतो अपने घर की बात है आ ही जाए गी |बस अंगरेजी सीखना बहुत जरूरी ह| हाँ किसी भी भाषा को जानना बहुत जरूरी है पर आधा -अधूरा नहीं ,चारों भाषाई कौशलों (सुनना ,बोलना ,लिखना और पढना )के साथ| सारी शक्ति उसमें लगा देते तो भी अच्छा था पर यहाँ तो किसी भी भाषा पर दक्षता नहीं हो पाती |इसलिए आजकल अध्यापक और छात्र के मध्य एक नई भाषा प्रचालन में आ रही है जिसे आप खिचड़ी भाषा कह सकते है जिसमें हिन्दी और अंगरेजी का मिला-जुला रूप है| पढाने वाले ने तो पढ़ा दिया और माँ ले कि पढाने वाले ने समझ भी लिया पर जब परीक्षा में आपको किसी एक माह्यम भाषा का चुनाव करानाहोता है और आप अपने उत्तर्किसी एक भाषा में लिखना चाहते है तब सारी समस्या शुरू होती है| मेरे पास अक्सर छात्र आते रहते हैं और अपनी समस्या का हल पूछते हैं|
और एक नजर आज के माहौल पर ,हर व्यक्ति इंग्लिश मीडियम में अपने बच्चे का प्रवेश कराना चाहता है बिना ये जाने कि जिस प्राथमिक स्तर पर उसे अपनी भाषा की सबसे अधिक आवश्यकता होती है वहीं उसका सबसे बड़ा दुर्भाग्य है कि उसे ज्ञान प्राप्ति के लिए एक ऐसी भाषा पर निर्भर रहना पढ़ता है जिसे वह केवल रट कर ही सीखता है |कुछ सूचनाओं को केवल हम फीड कर देते है पर उस भाषा में वह अपने विचारों को व्यक्त करने में असमर्थ होता है | किसी विषय पर निबंध लिखना हो ,अपने अनुभवों को लिखना हो तो एक मात्र सहारा टूशन वाले सर रह जाते है जिनकी संकल्पना ही स्कूल में दिये जाने वाले ग्रह कार्य को पूरा करवाने में सहायक के रूप में की जाती है |
और आज के समय में कक्षा के अतिरिक्त किसी अध्यापक से पढना भी चलन बनाता जा रहा है |अरे जब ये अध्यापक आपको सबकुछ अतिरिक्त समय में सिखा ही देते हैं तो कक्षा में जाकर सीखने की आवश्यकता ही क्या है?
सच है सब कुछ्चल रहा है और हमसब आँख बंद कर देखने के आदि हो गए हैं | खासकर प्राथमिक स्तर पर तो अन्य भाषा की बात हीनहीं की जानी चाहिए कम से कम माध्यम भाषा के रूप में |मेरी संस्था में अभी कुछ दिनों पूर्व एक बच्ची आई जो किसीस्थानीय विद्यालय में दूसरी कक्षा में पढती थी ,उसके पिता वहाँ की शुल्क देने में असमर्थ थे तो मेरे पास अपने तीनो बच्चों को लेकर आये | सच में मुझे बहुत आश्चर्य हुआ जब मैंने उस बच्ची का बेग खो कर देखा तो उस बेग में हिन्दे,नैतिक शिक्षा,गणित,अंगरेजी,सामान्यज्ञान और विज्ञान की कापी थी जिसमें टूटे फूटे अक्षरों में गलत सलत कुछ सूचनाए फीड थी पर सब्कुच्च गलत था वह बच्ची हिन्दी की वर्णमाला भी नाही जानती थी उसे वर्ण ओ की पहचान भी नहीं है कि
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बहुत ही सार्थक रही आपकी पोस्ट!
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