गौतम घोष की फिल्म ‘मोनेर मानुष’ को सर्वश्रेष्ठ फिल्म का पुरस्कार प्रदान किया गया है। उन्हें इस फिल्म के लिए भारत के 41वें अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह में स्वर्ण मयूर, प्रशस्ति पत्र और 20 लाख रुपये तथा इस फिल्म के निर्माता को भी 20 लाख रुपये प्रदान किये गये। इसके साथ ही कौशिक गांगुली की बांगला फिल्म ‘जस्ट एनादर लव स्टोरी’ को 15 लाख रुपये का विशेष ज्यूरी अवार्ड प्रदान किया गया है। यह अवार्ड इस फिल्म के साथ संयुक्त रूप से न्यूजीलैंड के निर्देशक टायका वैटिटी की फिल्म ‘बॉय’ को दिया गया।
पुरस्कार पाने के बाद सुपरिचित फिल्मकार गौतम घोष ने खुशी जाहिर करते हुए कहा यह पुरस्कार धार्मिक कट्टरता, असहनशीलता और हिंसा से घिरे हुए हमारे समाज में शांति, सह-अस्तित्व और धर्म निरपेक्षता की स्वीकृति है।
भारत के अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह में 10 साल बाद किसी भारतीय फिल्म को पुरस्कार मिला है। इससे पहले वर्ष 2000 में जयराज की फिल्म ‘करूणम’ को पुरस्कृत किया गया था। सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का पुरस्कार डेनमार्क की फिल्म ‘इन ए बैटर वर्ल्ड’ के लिए सुसैन बीयर को दिया गया है। सुसैन बीयर डेनमार्क की चर्चित महिला फिल्मकार हैं। उनकी इसी फिल्म को आने वाले 83वें ऑस्कर पुरस्कारों के लिए डेनमार्क से नामांकित किया गया है। इसी साल शुरू हुआ सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार तुर्की की फिल्म ‘द क्रॉसिंग’ में अविस्मरणीय अभिनय के लिए गुवेन किराक को दिया गया है। इस फिल्म के निर्देशक सेमिर डेमिरडेलेन हैं। सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार पोलैंड की फिल्म ‘लिटल रोज’ की अभिनेत्री मैकडेलेना बोजरस्का को मिला है।
जब से गोवा में भारत का अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह होना शुरू हुआ है, तब से पहली बार इसमें किसी भारतीय फिल्म को पुरस्कार मिला है। यह एक सुखद बात है क्योंकि पिछले 41 सालों के भारतीय फिल्म समारोह के इतिहास में बहुत कम भारतीय फिल्मों को पुरस्कृत किया गया है। कौशिक गांगुली की बांगला फिल्म ‘जस्ट एनादर लव स्टोरी’ को ज्यूरी का विशेष अवार्ड दिया गया है। अंतरराष्ट्रीय ज्यूरी के अध्यक्ष पौलेंड के सुप्रसिद्ध फिल्मकार जर्जी अंजैक ने समापन समारोह में इन पुरस्कारों की घोषणा की। रेवती मेनन (भारत), ओलिविएर पेरे (फ्रांस), मिकी मौलोय (आस्ट्रेलिया) और स्तुर्ला गुनरसन ज्यूरी के अन्य सदस्य हैं।
फ्रेंच फिल्म ‘द प्रिंसेस ऑफ मोंटपेंसियर’ (निर्देशक बर्टेंड टेवरनियर) के प्रदर्शन के साथ आज भारत का 41 वां अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह संपन्न हो गया। यह फिल्म इसी वर्ष मोंट्रियल अंतरराष्ट्रीय फिल्मोत्सव की समापन फिल्म थी। यह फिल्म 1562 ईस्वी के फ्रांस की पृष्ठभूमि में ईसाई धर्म के कैथोलिक और प्रोटेस्टेंट अनुनायियों के बीच हुये भीषण गृहयुद्ध के दौरान एक राजकुमारी की प्रेमकथा है। जिसके पिता ने उसकी शादी मोंटपेंसियर के राजकुमार से तय कर दी।
‘जस्ट एनादर लव स्टोरी’ पुरुष देह में स्त्री मन
बांगला के बहुचर्चित फिल्मकार ऋतुपर्णो घोष ने इसी फिल्म से अभिनय में शानदार शुरूआत की है। ऊपर से देखने पर यह फिल्म समलैंगिकता के विषय को कई कोणों से उठाती है। लेकिन हकीकत यह है कि यह फिल्म इससे आगे जाकर प्रेम, विवाह, सैक्स, कला और घरेलू जीवन के कई पक्षों के साथ-साथ मनुष्य मात्र की आजादी और सीमाओं के बारे में बात करती है। उस व्यक्ति का क्या किया जाये जिसका सब कुछ – मन, आत्मा, स्वभाव और संस्कार – स्त्री का है और शरीर पुरुष का। हमारा समाज आज भी इस जटिल स्थिति का सामना विवेकपूर्ण ढंग से नहीं कर पा रहा है। ऐसे व्यक्तियों को या तो अपमान मिलता है या पुरुष वेश्या की गाली।
‘जस्ट एनादर लव स्टोरी’ बांगला रंगमंच के पहले समलैंगिक कलाकार चपल भादुड़ी के अतीत और वर्तमान की मार्मिक गाथा है जो अब 70 साल के हो चुके हैं। उन्हें कोलकाता में लगभग भुला दिया गया है और उनके जीने का सहारा केवल उनकी यादें हैं। अपने जमाने में वे स्त्री पात्रों की भूमिका निभाने वाले अकेले सबसे बड़े कलाकार थे। मंच पर उनका स्त्री का अभिनय जादू पैदा करने वाला था। आज का एक सफल फिल्मकार अभिरूप सेन उनके जीवन पर एक वृत्तचित्रनुमा फीचर फिल्म बनाना चाहता है। अभिरूप सेन घोषित रूप से खुद एक समलैंगिक व्यक्ति है। चूंकि वह बहुत अमीर और प्रभावशाली है इसलिए उसको वह सब कुछ नहीं झेलना पड़ता है जिसे चपल भादुड़ी ने झेला था। फिल्म में चपल भादुड़ी ने खुद अभिनय किया है और उनके अतीत का चरित्र ऋतुपर्णो घोष ने निभाया है। ऋतुपर्णो घोष ने इस चरित्र के साथ-साथ समलैंगिक फिल्मकार का चरित्र भी निभाया है। वे दोहरी भूमिका में हैं और उनकी दोनों भूमिकाएं अतीत और वर्तमान के बीच एक पुल का काम करती हैं।
इस फिल्म में ऋतुपर्णो घोष ने दोनों भूमिकाओं में विलक्षण काम किया है। एक निर्देशक के रूप में अपनी कई फिल्मों – उनीशै एप्रिल, चोखेरबाली, दोसोर आदि – से विशिष्ट पहचान बनाने वाले ऋतुपर्णो घोष की स्पष्ट छाप इस फिल्म पर दिखाई देती है। फिल्म का एक-एक फ्रेम एक-एक एक्शन, एक-एक संवाद और एक-एक कट ऋतुपर्णो घोष का लगता है। चपल भादुड़ी और ऋतुपर्णो घोष के चरित्रों की टकराहट उनके बीच एक अद्भुत बहनापा पैदा करती हैं, जो उनकी अमीरी और छद्म आजादी के कवच को तोड़ती हुई उन्हें उनकी नियति तक ले जाती है। उनकी नियति है समाज में हाशिये की जिंदगी जीना और जीवन भर भावनात्मक संघर्ष झेलना। चपल भादुड़ी अपने जमाने में अपना अधिकतर समय अपने पुरुष प्रेमी की पत्नी के साथ सह-अस्तित्व की खोज में गंवा देता है, तो अभिरूप सेन को आज के उत्तर आधुनिक समाज में भी वही सब दोहराना पड़ता है।
फिल्म के अंतिम दृश्यों में अभिरूप सेन (ऋतुपर्णो घोष) के पुरुष प्रेमी की पत्नी गर्भवती है और वह अपने हक के लिए उनसे एक आत्मीय बातचीत करती है। एक मार्मिक संवाद है जिसमें अभिरूप पूछता है कि यदि वह शरीर से औरत होता तो भी क्या उसे यही प्रतिक्रिया झेलनी पड़ती। जाहिर है तब इस प्रेम त्रिकोण का एक दूसरा ही रूप होता। फिल्म बिना कोई फुटेज बर्बाद किये इस प्रेम त्रिकोण के एक-एक सामाजिक और भावनात्मक पक्षों पर दार्शनिक अंदाज में विचार करती है। ऋतुपर्णो घोष की यह फिल्म अपने अनोखे विषय के कारण नहीं, अपनी सिनेमाई कलात्मकता और समझ के कारण महत्वपूर्ण है।
आश्चर्य है कि बंगाल के इस जीनियस फिल्मकार की नई फिल्म ‘नौकाडूबी’ को इस फिल्मोत्सव में बहुत अच्छी प्रतिक्रिया नहीं मिली है। सुभाष घई की कंपनी मुक्ता आर्ट्स ने इसे प्रोड्यूस किया है। बांगला फिल्मों के सुपर स्टार माने जा रहे प्रसेनजीत चटर्जी और राइमा सेन जैसे कलाकारों ने इसमें मुख्य भूमिका निभाई है। यह फिल्म रवीन्द्रनाथ टैगोर की एक प्रेम कहानी पर आधारित है। जो 1920 के बंगाल में घटित होती है। उसी दौरान इस पर एक मूक फिल्म भी बनी थी। बाद में सुनील दत्त और तनूजा अभिनीत ‘मिलन’ फिल्म में इसी कहानी को दोहराया गया था।
बधाई के पात्र हैं साथ ही विषय तो अछूता है ही।
जवाब देंहटाएंप्रणाम !
जवाब देंहटाएंइस कार्यक्रम का कल शाम सीधा प्रसारण भी देखने का अवसर मिला , आप कि सम्पूर्ण रिपोर्ट से लगा हम भी वहा मौजूद थे , साधुवाद .
सादर !
Very nformative post. Plz. visit my post.i
जवाब देंहटाएंJaankaari ke liye dhanywaad !
जवाब देंहटाएंgood post