दिल्ली मैं है अब काम नहीं, काम न वेल्थ

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  • गुड्डा गुडिया
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  • सर पर गठरी |
    हाथ में छोटे से बच्चे की छोटी छोटी उंगलियाँ, और एक बच्चा गोद में |
    सूखा पड़ा गाँव मैं, जीने की कोई गारंटी नहीं |
    खचाखच भरा प्लेटफार्म, दिल्ली जाने की होड़ |
    पारा 40 पार, स्टेशन पर पानी नहीं |
    असमंजस में माँ, कि पानी ढूंढे या रेल |
    मैली, कुचैली सी एक थैली में एक छोटी सी पोटली |
    पोटली में छिपा है एक खजाना |
    40 रूपये के बंधे नोट और कुछेक सिक्के |
    और साथ में है बासी रोटियों का खजाना |
    जब जब बिलखेंगे बच्चे, देखेंगे माँ की और बड़ी ही आस से,
    दे दी जाएगी चूसने को यही रोटी, लोलीपॉप की तरह |
    रेल आई, वह कब चढ़ी, पता नहीं , भीड़ जो बहुत थी |
    कहने को तो रेल बहुत बड़ी थी, 20 डिब्बे रहे होंगे
    पर उसके और उसके जैसों के लिए तो 2 ही डिब्बे थे, एक इंजन से लगा और एक पीछे को |
    जब झपकी खुली तो मथुरा में गिनती चल रही थी, लोगो की, सबको उतारा जा रहा है वहीँ पर
    दिल्ली में अब काम नहीं है, वहां काम न वेल्थ है |
    वह अब खड़ी है प्लेटफार्म पर
    और सोच रही है कि, जाये तो जाये कहाँ ??????

    प्रशांत कुमार दुबे

    2 टिप्‍पणियां:

    1. लो जी , आज की पहली चोरी ......
      आप की रचना चोरी हो गयी है ...... यहाँ पर देख लीजिये
      http://chorikablog.blogspot.com/2010/10/blog-post.html

      जवाब देंहटाएं
    2. जिन्होने इन्हे निकाला हे दिल्ली से उन्हे यह खुब बद्द दुयाए तो दे सकते है , सुना है गरीब की बद्ददुया भगवान जल्द सुनता है, बहुत दुखद

      जवाब देंहटाएं

    आपके आने के लिए धन्यवाद
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