जब इतना रख लिया है तो तनिक सा और रख लो और यकीन मानो जितना रखोगे उससे मिलने वाला फल अद्भुत मिठास लिए हुए होगा । जिसने भी रखा है, इस मिठास को मन से चखा है, उसने इस का महत्व जाना-माना है। आप रखोगे तो आप भी मान जाओगे, इसके मुरीद हो जाओगे। जबकि आपको मनाने के लिए कोई नहीं आएगा। आपके भीतर से ही इसको मानने की इच्छाशक्ति जागृत होगी। जब मिठास मिलेगी तो आप भी मिठास ही दोगे न, वह मिठास आपकी बोली में इस कदर रची-घुली होगी कि लेने वाला दिव्य-मिठास से ओत-प्रोत हो जाएगा।
आप सोच रहे होंगे, बल्कि कईयों ने तो फैसला भी ले लिया होगा कि मैं क्या रखने की भूमिका बना रहा है और वे भी गलत नहीं हैं क्योंकि आजकल माहौल ही ऐसा है कि कोई भी धन से दीगर सोच ही नहीं पाता है। धन के होने को ही सब अच्छाईयों की वजह पाता है। मैं मानता हूं कि धन की ताकत अपरंपार है। पर अपरंपार होते हुए भी पार नहीं पहुंचा पाता है, जबकि किनारा नजर आ रहा है। जिसका किनारा दिखलाई दे रहा हो, उसे मालूम नहीं, मानव क्यों अपरंपार मान लेता है। जबकि मानव जहां पहुंच जाता है, उसे अपरंपार नहीं कहा जाना चाहिए। अपरंपार तक तो मानव की पहुंच ही संभव नहीं है। जहां मानव पहुंच ही गया तो वो अपरंपार नहीं रहा।
जीवन में जिनके पास पैसा नहीं होता है और न आने की उम्मीदें भी होती हैं। उनके पास इतनी मिठास होती है कि कई धनवान भी अचरज में पड़ जाते हैं और ईर्ष्या कर बैठते हैं, जबकि ईर्ष्या भाव मन में स्वयं ही पैदा हो जाता है। ईर्ष्या कभी रखने-सहेजने की चीज नहीं रही है पर फिर भी बहुतायत में सहेजी जाती है। होना तो यह चाहिए कि इसे मन में आने से पहले ही निकालकर बाहर कर देना चाहिए।
मैंने सब्र रखने की बात की है। आप मानेंगे कि सब्र से बड़ी ताकत, इस कायनात में कुछ भी नहीं है। जिसने सब्र रख लिया, उसने सकल जग पा लिया। धैर्य के बल पर कठिन से कठिन संकटों को काटा जाता है। सहनशक्ति धारण करने के लिए पैसा मददगार नहीं हुआ है। पैसा कभी इतना ताकतवर न तो हुआ है और न कभी होगा कि वो सब्र का मुकाबला कर सके। आप एक बार रखकर तो देखिए, सभी फल मीठे मिठास भरे ही मिलेंगे और इस मिठास से न शरीर को, न दिल को, न जिगर को, न रक्तवाहिनियों को और अन्य किसी अंग को या विचारों को नुकसान पहुंचता है। तो आज जो भी फैसला आये, उसे हौसले से सुनिये, सहन करिये। जान लीजिए कि हौसला ही सबके वजूद का सबब बनता है। तो आप फैसला सुनने के बाद भी सब्र रख रहे हैं न ? घड़ी इम्तहान की है।
:)
जवाब देंहटाएंव्यर्थ में माहौल खड़ा किया जा रहा है
सब्र तो रखना ही चाहिए !!
जवाब देंहटाएं" जिसने सब्र रख लिया, उसने सकल जग पा लिया। "
जवाब देंहटाएंसच कहते हैं आप !
इसीलिए मेरा सबसे विनम्र निवेदन है -
चाहे अल्लाहू कहो , चाहे जय श्री राम !
प्यार फैलना चाहिए , जब लें रब का नाम !!
मस्जिद - मंदिर तो हुए , पत्थर से ता'मीर !
इंसां का दिल : राम की , अल्लाह् की जागीर !!
- राजेन्द्र स्वर्णकार
अब हम सब को सच्चे इंसान की तरह बनाना चाहिये मुखोटे उतार कर जो भी फ़ेसला आये उस का स्वागत करे, लेकिन कोई भी उत्सव भी ना मनाये,हम सब को एक दुसरे की भावनाओ का आदर भी करना चाहिये, धन्यवाद
जवाब देंहटाएंयह देश बहुत सहिष्णु और त्यागमयी है, इसलिए कुछ नहीं होगा। सबकुछ शान्ति से ही होगा।
जवाब देंहटाएंआपने सच कहा है, धैर्य रखें हौसला खोने की कोई जरूरत नहीं , वैसे कहा भी गया है कि धैर्य मनुष्य का आभूषण है !
जवाब देंहटाएंमस्जिद - मंदिर तो हुए , पत्थर से ता'मीर !
जवाब देंहटाएंइंसां का दिल : राम की , अल्लाह् की जागीर !!
सब्र से बड़ी तो कोई चीज़ ही नहीं है दोस्त और आजकल उसी की सबसे ज्यादा कमी भी है ! आपका लेख और विचार बहुत अच्छे लगे !
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