खेलों से पहले दिल्ली में सुरक्षा कड़ी कर दी गई है। किसी भी संभावित रासायनिक और आणविक हमले से बचाने के शहर के चप्पे-चप्पे पर पुलिसवाले ‘लाठियां’ लिए मौजूद हैं। सिर्फ लाठी के सहारे दुश्मन को ख़ाक कर देने के ख़ाकी वर्दी के कांफिडेंस पर मैंने एक पुलिसवाले से बात की। श्रीमान, रामलीला की तरह खेलों से पहले भी आप सिर्फ लाठी के सहारे हालात पर नज़र रखे हुए हैं...क्या वजह है? देखिए, मुझे नहीं लगता कि हमें इसके अलावा किसी और चीज़ के ज़रूरत है। जहां तक रिक्शे से हवा निकालने की बात है तो उसके लिए किसी एके-47 की ज़रूरत नहीं पड़ती, उसके लिए हमारे हाथ ही काफी है। रही बात ठेले वालों की... उन स्सालों ने अगर कोई बदमाशी की तो उनके लिए हमारे पास ये लठ है...तो आपको लगता है कि सुरक्षा के लिहाज़ से सबसे बड़ी चुनौती रिक्शे और ठेले वाले हैं। जी हां, बिल्कुल।
और जितने बड़े बदमाश हैं, उनसे कैसे निपटेंगे? जनाब हम पुलिसवाले हैं...बदमाशों को हम आपसे ज़्यादा बेहतर समझते हैं। गुंडे-बदमाश तभी आक्रामक होते हैं, जब उन्हें जायज़ हक़ नहीं मिलता, मुख्यधारा में उनके लिए कोई जगह नहीं होती। मगर प्रभु कृपा से हमारी व्यवस्था में ऐसी कोई असुरक्षा नहीं है। माल में हिस्सेदारी ले, हम उन्हें चोरियां करने देते हैं। अपराध के मुताबिक पैसा खा, मामला दबा दिया जाता है। सबूत इक्ट्ठा न कर, उन्हें ज़मानत दिलवा दी जाती है। अब जब इतनी फैसिलिटीज़ उन्हें दी जा रही हैं, तो क्या उनकी बुद्धि भ्रष्ट हुई है, जो वो हमारे लिए कोई सिर दर्द पैदा करेंगे। लेकिन सर, आपको क्या लगता है...अगर आतंकी आए... तो वो क्या लाठियां ला, आपके साथ डांडिया खेलने आएंगे...उनका क्या करेंगे आप। पुलिसवाला-ऐसा कुछ नहीं होगा..हमें पूरा भरोसा। मगर किस पर...उसी पर... जिसके भरोसे ये देश चल रहा है...कौन...भगवान!
(हिंदुस्तान 21 सितम्बर,2010)
भरोसेमंद सुरक्षा!
Posted on by Neeraj Badhwar in
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(हास्य-व्यंग्य)
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महात्मा गांधी जी भी लंगोटी के साथ सोटी के पक्षधर रहे हैं। यह भी आप सबको बतला सकते हैं। सोटी महिमा सदैव बखाननी चाहिए। वैसे यह देश चल ही सोटी के भरोसे रहा है।
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