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पर सचमुच का पत्थर मत उठा लीजिएगा
आपका मॉनीटर ही टूट कर बिखर जाएगा
यहां पत्थर टिप्पणी करके मारा जाता है
यह हिन्दी ब्लॉग जगत का निराला अंदाज है
जो सबको खूब खूब बहुत खूब पसंद आता है।
दैनिक जनसत्ता दिनांक 19 अगस्त 2010 में प्रकाशित चौपाल स्तंभ में प्रकाशित श्री राजेन्द्र उपाध्याय का पत्र जो आपको मंथन के जरूर विवश करेगा। यह पत्र लेखों से भी अधिक सशक्त है।
azi kahnaa kyaa hai jo kuchh kahnaa thaa gaalib saahib kah gye -gaaliyaan khaa ke be -mzaa naa huaa .
जवाब देंहटाएंbehar -soorat ,apni shev banaakar saaboon doosre ke muh par fainknaa naa pahle saahitay thaa naa aaj .
badhaai ke paatra hain rajendra upaadhyaay sahib .saarikaa ke daur se inki kahaaniyaan hampadhte gunte aayen hain .achchhaa muddaa uthhaayaa hai jo apne aap me aadhunik khaani hai .
veerubhai
जब साहित्य के मूर्धन्यों का ये हाल है तो बाकियों का क्या होगा. ऐसे साहित्यकार अब वाहित्यकार या वाहियातकार कहे जायं तो कोई गलत नही होगा.
जवाब देंहटाएंजो मूढ़ धन्य है वही मूर्धन्य है ।
जवाब देंहटाएंकहने को तो बहुत कुछ है कह नहीं पाए
जवाब देंहटाएंलिखने वाले बहुत है पढ़ने वाले पढ़ नहीं पाए