कभी-कभी यूँ ही बातचीत में कोई ऐसी बात निकल आती है, जो बहुत महत्त्व की होती है. ऐसा ही हुआ व्यंग्य यात्रा और गगनांचल के सम्पादक प्रेम जनमेजय से बतियाते हुए. सवाल महत्वपूर्ण है कि क्या एक रचनाकार अपनी रचनाओं का आलोचक हो सकता है? यह प्रश्न अनायास ही सामने आ गया और प्रेम जी ने उसका उत्तर भी दिया. हालाँकि उनकी सलाह थी कि यह विषय बहुत गंभीर है और इस पर गहराई और विस्तार से बात की जानी चाहिए लेकिन मैं चाहता हूँ कि उनकी संक्षिप्त टिप्पड़ी उन सभी लोगों तक पहुंचा दूं, जो लिखने-पढ़ने का काम करते हैं. बाद में इस पर विस्तार से चर्चा करूंगा.
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अच्छा रचनाकार अच्छा आलोचक हो सकता है.: प्रेम जनमेजय
Posted on by Subhash Rai in
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बेहद उम्दा प्रस्तुति... आपके विचारों से सहमत हूँ ...आभार
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