ब्लॉगजनहिताय नवभारत टाइम्स दैनिक में आज दिनांक 15 जुलाई 2010 को प्रकाशित लेख साभार।इंटरनेट ने जब से मध्यवर्गीय घरों में अपनी जगह बनाई है, तब से संवाद और बहस-मुबाहिसे का एक नया सिलसिला शुरू हो गया है। पहली
हर कोई प्रकाशक
इससे पहले प्रिंट माध्यम की अपनी सीमाएं थीं। लिखित विचार व्यक्त करने में भाषा की कुछ अनिवार्यताएं थीं, उन्हें बीच में संशोधित-नियंत्रित किए जाने की गुंजाइश थी। अब यह गुंजाइश न के बराबर है। इंटरनेट ने अब बीच के वाहक की भूमिका लगभग समाप्त कर दी है। अब हर व्यक्ति प्रकाशक है। कोई भी घर बैठे अपने विचार लाखों लोगों को संप्रेषित कर सकता है। वह चाहे तो अपनी पहचान भी छुपा सकता है। उसे खोज पाना आसान नहीं। हर कोई बेधड़क बोल रहा है। औपचारिकताओं का लबादा उतर चुका है, इसलिए भीतर का सब कुछ उसी रूप में सामने आ गया है, जिस रूप में वह है। जिस तरह पहले लोग अखबारों में पत्र लिखते थे, उसी तरह अब अखबारों के इंटरनेट एडिशन पर अपनी राय देने लगे हैं। संपादकीय से लेकर खबरों, लेखों तक पर तत्काल प्रतिक्रिया दी जाती है। कुछ स्वतंत्र वेबसाइटों पर भी इसी तरह के कमेंट किए जाते हैं।
आक्रामक और उतावले
इन कमेंट करने वालों पर नजर डालें तो कुछ चीजें साफ होती हैं। अब कुछ नामों को साफ तौर पर चिह्नित किया जा सकता है। ऐसा लगता है कि ये काफी सचेत ढंग से प्रतिक्रिया देने का काम कर रहे हैं। इनमें से कुछ अपना पता अमेरिका या दुबई बताते हैं। इनकी नियमितता देखकर सचमुच हैरत होती है। लेकिन जरा इनके दूसरे पहलुओं पर भी गौर करें। ये जिस तरह की भाषा में बात करते हैं, उससे कतई नहीं लगता कि ये बहुत ज्यादा शिक्षित और परिपक्व लोग हैं। इनमें काफी आक्रामकता और उतावलापन नजर आता है। ऐसा लगता है कि ये पूरा लेख पढ़ने का कष्ट कभी नहीं उठाते और उसे सरसरी तौर पर देखकर झट अपनी राय जाहिर कर देते हैं। लेकिन इनके कंसर्न क्या हैं, बहुत आसानी से समझ में आ जाता है। यह तबका सबसे पहले तो घोर स्त्री विरोधी है। यह उस रूढ़िवादी दृष्टिकोण का समर्थक नजर आता है कि स्त्रियों को अपनी 'हद' में रहना चाहिए। जैसे छेड़खानी या बलात्कार की खबरों पर अफसोस जताने के तुरंत बाद ये लोग यह कहना नहीं भूलते कि लड़कियां अपनी मर्यादा भूलेंगी तो उनके साथ यह सब होगा ही। प्रेम, विवाह, तलाक, लिव- इन रिलेशन आदि पर यह तबका घोर पुरुषवादी तरीके से सोचता है। ऐसा लगता है कि खाप पंचायतों के प्रतिनिधि कंप्यूटर लेकर बैठ गए हों। फिल्म अभिनेत्री खुशबू के विवाह पूर्व सेक्स संबंधी बयान पर ऑनलाइन प्रतिक्रियाओं को देखें तो बहुत कुछ साफ होता है। ऐसे लेखों को यह तबका बिल्कुल पसंद नहीं करता जिनमें स्त्री को जीवन के हर स्तर पर स्वतंत्रता देने की बात कही गई हो या पुरुष के पाखंड पर प्रहार किया गया हो। ऐसे मामलों में तो ये गाली-गलौज पर उतर आते हैं। कई बार तो लेखक पर आपत्तिजनक टिप्पणी करने के साथ उसे धमकी भी दी जाती है।
स्त्री विरोधी होने के साथ यह वर्ग घोर अल्पसंख्यक विरोधी भी है। ज्योंही मुसलमानों से जुड़ी कोई बात आती है, यह घोर सांप्रदायिक भाषा में बात करने लगता है। किसी आतंकवादी के पकड़े जाने की खबर या आतंकवाद से जुड़े लेखों के तथ्यों को समझने के बजाय यह सपाट तरीके से इस तरह के कमेंट करता है कि सारे मुसलमान आतंकवादी है और उन्हें सबक सिखाया जाना चाहिए, भारत को पाकिस्तान पर हमला कर देना चाहिए, आदि-आदि। इन लोगों को यह मंजूर नहीं कि धर्म या संस्कृति पर आलोचनात्मक ढंग से बात की जाए। ज्यों ही मिथकों या पौराणिक पात्रों को लेकर कोई नया विश्लेषण सामने आता है या विमर्श शुरू होता है, यह तबका हथियार लेकर मैदान में कूद जाता है। इन मुद्दों पर चीजों को तार्किक ढंग से रखने की बजाय यह सीधे तेजाबी भाषा पर उतर आता है।
इंटरनेट हिंदू
इंटरनेट पर राय रखने वाले लोग मोटे तौर पर दो तरह के हैं- एक तो वे हिंदूवादी जो योजनाबद्ध तरीके से अपना कैंपेन चला रहे हैं। अभी कुछ दिनों पहले एक कम चर्चित हिंदूवादी पत्रिका में ऐसे तत्वों को 'इंटरनेट हिंदू' कहा गया था और इस बात पर खुशी प्रकट की गई थी कि इन लोगों ने हिंदुओं का पक्ष रखने के लिए इंटरनेट माध्यम का बखूबी इस्तेमाल किया है। ये किन हिंदुओं का पक्ष रख रहे हैं, स्पष्ट है। लेकिन बिल्कुल इन्हीं की भाषा बोलने वाला एक दूसरा वर्ग भी है जो किसी योजना के तहत ऐसा नहीं कर रहा। वह एक सचेत पाठक के तौर पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर रहा है लेकिन इस क्रम में उसकी पोल खुल रही है। यह खाता-पीता आत्ममुग्ध मध्य वर्ग है जो उदारीकरण के दौर में संपन्न हुआ है। ऊपर से आधुनिक दिखने वाला यह तबका विचार के स्तर पर बेहद पोंगा है। इस वर्ग को देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि हिंदीभाषी इलाकों में आर्थिक समृद्धि जरूर आई है, लेकिन यहां समाज का जनतंत्रीकरण अब भी नहीं हो सका है। लेकिन सचाई यह है कि यही वर्ग देश के नीति-निर्माण को सबसे ज्यादा प्रभावित करता है। सारी विकास प्रक्रिया इसी के इर्द-गिर्द घूम रही है। इंटरनेट ने विचार के क्षेत्र में व्याप्त एक गहरे संकट का संकेत किया है। क्या हम उसे समझेंगे?
इंटरनेट के द्वारा लेखन सब के लिए नए द्वार खोल चुका है इस कारण यह सब तो होगा ही। समाचार-पत्रों के माध्यम से एक तरफा विचार ही समाज को मिल रहे थे अब अनेक विचार सामने आ रहे हैं। आने दीजिए, निरन्तर संवाद से बहुत कुछ बदलेगा। अच्छे आलेख के लिए आभार।
जवाब देंहटाएंठीक है कम से कम इस बहाने विचार तो सामने आ रहे है |
जवाब देंहटाएंइंटरनेट हिन्दू तबके पर लेखक के विचार एकपक्षीय लगे | इंटरनेट पर इंटरनेट हिंदी ही क्यों इंटरनेट मुस्लिम भी मौजूद है जो इंटरनेट पर अपना अभियान चलने में मशगुल है | लेखक को हिन्दू अतिवादियों का नेट पर भड़काना तो नजर आया पर उन वामपंथियों व छद्म सेकुलरों के लेख कभी नजर नहीं आये जिनमे वे सहनशील और शांतिप्रिय हिन्दुओं को आतंकवादी घोषित करते नहीं थकते | नेट पर वामपंथी टुकड़ों पर पालने वाले ऐसे कई लेखक है जिन्हें शांतिप्रिय हिन्दू सिर्फ आतंकवादी ही नजर आता है और कुछ घटनाओं को जोड़कर अपना अभियान चला रहे है |
लेखक ने नेट पर आने वाले विचारों का विश्लेषण तो अच्छा किया पर उनका यह विश्लेषण अधुरा है इसलिए इसे सराहनीय नहीं कहा जा सकता |
रोचक विश्लेषण है। आभार।
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पॉल बाबा की जादुई शक्ति के राज़।
सावधान, आपकी प्रोफाइल आपके कमेंट्स खा रही है।
बारीक विश्लेषण।
जवाब देंहटाएंexcellent post read word by word and agree with each word
जवाब देंहटाएंthe more the educated the more irresponsible comment when they talk about woman
achha vishleshan
जवाब देंहटाएंabhar
संजय कुंदन का लेख विचारोत्तेजक है.
जवाब देंहटाएंकुछ भी हो, विचारों का सामने आना ज़रूरी है।
जवाब देंहटाएंताली सदैव दोनों हाथों से बजती है।
जवाब देंहटाएंएक पक्षीय लेख।
जवाब देंहटाएं"यह तबका सबसे पहले तो घोर स्त्री विरोधी है। यह उस रूढ़िवादी दृष्टिकोण का समर्थक नजर आता है कि स्त्रियों को अपनी 'हद' में रहना चाहिए। जैसे छेड़खानी या बलात्कार की खबरों पर अफसोस जताने के तुरंत बाद ये लोग यह कहना नहीं भूलते कि लड़कियां अपनी मर्यादा भूलेंगी तो उनके साथ यह सब होगा ही।"
जवाब देंहटाएंachchha huaa aapne kah diya ham kahate to vivad ho jata hamara nya namkarn ho jata aasha hai log kam se kam aap ki bat manege
Butterfly किसी मुफ़्ती के फ़तवे की वजह आज तक नाहक़ इतनी जानें न गई होंगी जितनी कि इस देश में डाक्टरों के क्लिनिक में रोज़ाना ले ली जाती हैं और कहीं चर्चा तक नहीं होता। -Anwer Jamal
जवाब देंहटाएंhttp://ahsaskiparten.blogspot.com/2010/07/butterfly-anwer-jamal.html
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जवाब देंहटाएंबेहतरीन विश्लेषण
अब सँभल भी जाओ अमर कुमार
सोच समझ कर टिप्पणी बक्से का प्रयोग किया कर
वरना यूँ ही कहलाओगे बीमार मानसिकता के शिकार
लीजिये ज़नाब, यहाँ दूसरी तरफ़ डाक्टर बनाम मुफ़्ती चल रहा है
आज तक भला कोई हक़ीम कभी खुदा के पैरोकारों के सामने खड़ा हो पाया है ?
संजय कुंदन को पता होना चाहिए कि इंटरनेट पर हर धर्म से जुड़ी साम्प्रदायिकता हावी है। इंटरनेट एक अंतरराष्ट्रीय माध्यम है। इसके बारे में स्थानिक एकपक्षीय सरलीकरण करना ठीक नहीं लगता। कुछ ऐसे ही कारणों से इस देश में प्रगतिशील एक गाली बनती जा रही है। जावेद अख्तर ने अभी तहलका में लिखा है कि इस देश में धर्मनिरपेक्षता का सारा जिम्मा बहुसंख्यकों के सिर पर है....।
जवाब देंहटाएंलेकिन इस लेख से एक फायदा हुआ कि मैं अविनाश जी के इस ब्लाग तक आ पहुंचा। एक बार अविनाश जी के प्रोफाइल पर गया कि देखुं कि उनका कौन सा ब्लाग है। वहां इतने ब्लाग थे कि मैं समझ नहीं पाया कि किसे खोलुं। मैं सामान्यतः वही ब्लाग पढ़ पाता हूं जिन्हें ब्लाग से जोड़ रखा है। तो मैं उनके किसी ब्लाग को अपने ब्लाग से जोड़ना चाहता था। उस दिन उस भीड़ में चुनाव नहीं कर पाया था। आज इस लेख के माध्यम से नुक्कड़ पर ठहरने और जुड़ने का अवसर तो मिला ही।
sanjay ji, pranam
जवाब देंहटाएंmain naya blogger hun plz badpadhen aur comment den ,, protsahan milega --- sproutsk.blogspot.com
विश्लेषणपरक अच्छा लेख है। विवेकशीलता का लगातार ह्रास हो रहा है, इसमें संदेह नहीं है।
जवाब देंहटाएंसंजय कुंदन की बातों से लगभग सहमति है। प्रायः मैं भी लेख को सरसरी ढंग से पढ़कर उतावली में टिप्पणी कर बैठता हूं पर ऐसा नहीं कि गंभीर लोग इस दुनिया में नहीं हैं।
जवाब देंहटाएंहिंदू कट्टरपंथी वाकई बेहद आक्रामक ढंग से सक्रिय हैं। फेसबुक पर गांधी, नेहरू के पर्जी फोटो तैयार कर मनमाना इतिहास जाहिर करने की साजिशें भी बड़े जोरों से हुई हैं। आम लोग इस त रह की तस्वीरौ को आर्काइव ही मान बैठते हैं।