Small price paid today, will reap big benifits tomorrow. "BHARAT BANDH IS NOT A SOLUTION"
यह विज्ञापन है भारत सरकार के पैट्रोलियम और गैस मंत्रालय का। और इधर तमाम राजनीतिक पार्टियों द्वारा भारत बन्द का आवाहन भी। आप भूल जाइये कि आपका कुछ भला होने वाला है। बन्द एक ताक़त के रूप मे इस्तमाल करने वाला हथियार है और जब उस बन्द के जवाब में सरकार ही यह पत्थर की लक़ीर वाला फैसला ले ले तो बताइये आपके बन्द का मतलब क्या? आप कौनसी और किसको अपनी ताक़त दिखा रहे हैं? और यह ताक़त दिखा कौन रहा है? एक राजनीतिक पार्टी कीमतें बढा रही है, दूसरी पार्टी उसका विरोध कर रही है। जनता सिर्फ और सिर्फ दोनों की गतिविधियों को ताक़ रही है। इसमे कौन किसका भला कर रहा है? दिमाग पर जोर डाल कर देखें तो बन्द महज़ एक नाटक है। या नाटक बन कर रह जाने वाला है क्योकि इसमे जनता का कोई योगदान दिख रहा है, बिल्कुल नहीं लगता। पार्टियां बन्द करा रही है। पार्टियों के अपने कार्यकर्ता हैं वे सडक पर उतरे हैं या उतरेंगे..जनता तमाशा देख रही है, कभी बन्द को कोसती है कभी सत्ता को। अफसोस यह है कि जनता सडक पर उतरने की हिम्मत नहीं दिखाती। और यही वजह है कि जब बन्द का आवाहन होता है तो सरकार एक दिन पूर्व तमाम अखबारो आदि में विज्ञापित कर देती है कि हम मानने वाले नहीं है, विरोध फिज़ूल है। बताइये जब वो मानना ही नहीं चाहती तो आपकी पार्टी आखिर क्या बिगाड लेगी? यही न कि जनता के सामने जनता के लिये लडने का प्रदर्शन होगा और इस प्रदर्शन के बाद सरकार फिर कोई तुनतुना जनता को पकडा देगी, जनता फिर चुप। पार्टियों के अपने अपने काम बन जायेंगे। बस्स....। मुद्दा सिर्फ महंगाई का नहीं है। आज जनता के सामने ढेर सारी समस्यायें हैं और यकीन मानिये एक भी समस्या हल होती नहीं दिखती। दिखता है राजनितिक दंगल। आप जानते हैं यह सब क्यों होता है, आप जानते हैं कि यह सब इसलिये होता है क्योंकि आपमें ताक़त नहीं है लडने की। संघर्ष करने की। आपको बैठे बैठे सब मिल जाये या बैठे बैठे समस्यायें हल हो जाये, यही चाहिये, और यही चाहत सत्ता में बैठे या विरोध में बैठे राजनैतिक कलाकारो की ढाल है। खुद मूर्ख बनते कैसे हैं यह भारत की जनता से अच्छा उदाहरण कहीं ओर देखने में नहीं आयेगा। देखने में आयेगा, बन्द, पुलिसिया लाठी चार्ज, सरकारी बयान, विरोधी पार्टियों के प्रतिउत्तर, फिर चैनलों पर टीका टिप्पणियों वाले टॉक शो....., अखबार रंगे होंगे समाचारों से। आप सुबह अपने घर बैठे चाय की चुस्कियों का लुत्फ उठाते हुए उसे पढेंगे..गली-मोहल्ले, पान की दुकानों आदि पर गपशप करेंगे इन सब क्रियाकलापों की बातें..और रात घर आयेंगे चादर तान कर सो जायेंगे..या बहुत हुआ तो अपने विचार रख देंगे इस पर......। उफ्फ कितनी निरीह जनता.....। और इस जनता का में भी एक हिस्सा हूं...शर्म आती है। शर्म आती है नेताओं के हाथों की कठपुतली बनी जनता का नाच देखते हुए।
क्रांति..........। क्यों हिम्मत नहीं होती न इस शब्द को साकार करने की? मुझमे भी नहीं है। इसलिये कि मैं भी आपकी तरह भारत के 21 वीं सदी का होनहार युवक हूं जिसे "ऐसा तो होता रहता है रोज़...", कह कर निकल जाने की आदत है। या " ऐसा नहीं होना चाहिये" जैसे विषयों पर खूबसूरती से बयान आदि देने की महारथ है।
है हिम्मत? नहीं न।
Posted on by अमिताभ श्रीवास्तव in
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सही लिखा है आपने, लेकिन शुक्र है कि मैं बंगाल में नहीं रहता, वहां तो बंद रोज़ाना की ही बात है.
जवाब देंहटाएंसब उल्लू सीधा कर रहे हैं, आम आदमी का क्या है वह तो गिनी पिग है.
भैये, जनता जिस दिन अपने नुमाइन्दों से सवाल पूछने लगेगी सब ठीक हो जायेगा, लेकिन दिक्कत यह है कि जनता सवाल पूछना ही नहीं जानती.
जवाब देंहटाएंमै आप से शत प्रतिशत सहमत हूँ |आम आदमी का क्या है सुंदर रचना ,बधाई
जवाब देंहटाएंजब तक जनता चुप है,ओर इन नेताओ के हाथो की कठपुतली है तब तक, जब जनता जागरुक होगी उस दिन यह नेता इसी जनता से अपनी जान की भीख मांगे गे
जवाब देंहटाएंभारत बन्द ही रहेगा
जवाब देंहटाएंखुलेगा नहीं ?
जिम्मेदार हम हैं
दूसरा कोई नहीं।
आपने बलकुल सही कहा जी
जवाब देंहटाएंबिलकुल सही कहा आपने ! हम चौराहों गलियों या फिर घर दफ्तर में इस बारे में चर्चा कर सकते हैं ! उसके आगे कुछ कर पाने के लिए सबकी सोच को थोडा बदलना होगा ! कोई सोचता भी है तो वो खुद अपनी मजबूरियों में जकड जाता है ......या फिर उसकी सोच को ही बदल दिया जाता है ! ..किसी एक को नही अब सब को मिल कर सोचना पड़ेगा
जवाब देंहटाएंअमिताभ जी अभी थोड़ी देर पहले एक विज्ञापन देख रही थी ...उसमे एक लेखक यही कहता है...हम लिखते हैं....और फिर फाड़ देते है...बहुत बड़ी बात कही उसने...आपके लेखन से वही बात सच साबित हो सकती है? लिखना भी बहुत बड़ी बात है...इस से भी काफी कुछ बदला जा सकता हें.
जवाब देंहटाएंमान्यवरों, मेरे एक शब्द पर ज्यादा गोर कीजियेगा "क्रांति"। चाहता यही हूं कि ऐसा कुछ हो...इस क्रांति का अर्थ आन्दोलन कतई नहीं है। और न ही किसी प्रकार की ज़ंग से है। यह अपने आप से क्रांति है। और जब हम समस्याओं का सामना कर सकते हैं तो अपने आप में क्रांति नहीं ला सकते? कम से कम देश के लिये सोच कर, क्योंकि देश के लिये नेता ही सोचें..यह हज़म होने जैसा नहीं लगता। खैर..आपने सराहा, आपने मेरे विचार पढे..शुक्रिया। आभार।
जवाब देंहटाएंPetrol price in pakistan 26, bangladesh 22, cuba 19, nepal 34, burma 30 ,afganistan 36 ,qathar 30, INDIA 53 .
जवाब देंहटाएंbasic cost per litre 16.50 centre tax 11.80, excise duty 9.75 state tax 8.00 vat ces 4.00 TOTAL 50.05 now extra 3 rupees great job frm govt....
( This data we recived by SMS)
@ नवीन तिवारी
जवाब देंहटाएंजब सरकार ही पब्लिक की जेब काटने पर आमादा हो तो उस जेब की रक्षा कौन करे, इन बंद (ों) से बंदे की सुरक्षा कौन करे ?
आम आदमी आम ही रहेगा
जवाब देंहटाएंबंद से हमेशा सब जाम रहेगा
आम आदमी अपनी ही नून तेल और गैस कि चिन्ता से चिंतित है..क्रांति कैसे हो?
जवाब देंहटाएंदरअसल कमी समाज की है जो देश के प्रति अपनी जिम्मेदारी के बोझ को खुद के कंधों पर लादना ही नहीं चाहता...बस जो करे सो सरकारें करें. नेताओं को वैसाखियाँ के सहारे चलने वालों से भला उम्मीद रखी जाए भी तो कैसी?
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