राठोर दोषी फिर पुरी और सिंह कैसे बरी

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    राम से अंग्रेजी आती है श्याम से नहीं!

    राठौर की पेंशन रूकी पर पुरी और सिंह अब भी बरी!

    क्यों मेहरबान है केंद्र पुरी और मोती सिंह पर

    (लिमटी खरे)

    जब स्कूल में पढा करते थे तब छटवीं कक्षा से अंग्रेजी का ककहरा सीखने को मिलता था। नवमी कक्षा में जाकर ग्रामर का पूरा ज्ञान मिलने लगा। तब अंग्रेजी की प्रकांड विद्वान स्व.प्रभाकर मुकुंद ढबले सर ने अंग्रेजी सिखाई। उस वक्त राम बाजार जाता है को तो अंग्रेजी में अनुवादित कर लिया करते थे, पर जब राम के स्थान पर श्याम का नाम लिया जाता तो विद्यार्थी बगलें झांकने लगते। उस वक्त ढबले सर उपहास उडाते हुए कहते कि राम से अंग्रेजी आती है, श्याम से नहीं।

    यही आलम भोपाल गैस कांड और अन्य मामलों में दोषियों के समझ में आ रहे हैं। रूचिका मामले में दोषी आरोपी भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी हरियाणा के पूर्व पुलिस महानिदेशक एसपीएस राठौर की पेंशन स्थायी तौर पर रोकने का निर्णय केंद्र सरकार ने लिया है। यह स्वागत योग्य कदम है। इससे अन्य अधिकारियों को अनैतिक काम न करने की सीख मिल सकेगी। अगर सजा का प्रावधान कठोर होगा तो अधिकारी नियमों का माखौल उडाने के पहले सौ मर्तबा सोचने पर मजबूर होंगे।

    सवाल यह उठता है कि दो अलग अलग मामलों में केंद्र सरकार का रूख प्रथक प्रथक क्यों है। राठौर ने तो रूचिका के साथ बदसलूकी की और वह साबित हुआ। भारत गणराज्य के हृदय प्रदेश में छब्बीस साल पहले हुई दुनिया की भीषणतम औद्योगिक त्रासदी के आरोपी यूनियन कार्बाईड के तत्कालीन प्रमुख वारेन एण्डरसन को राजकीय सम्मान के साथ बिदा करने वाले एण्डरसन के तत्कालीन बाडीगार्ड, उनके वाहन के सारथी और भोपाल के तत्कालीन जिला पुलिस अधीक्षक स्वराज पुरी और भोपाल के ही तत्कालीन जिला दण्डाधिकारी मोती सिंह के खिलाफ भारत सरकार कठोर कदम उठाने में देरी क्यों कर रही है यह बात समझ से ही परे है।

    समाचार चेनल्स में उस दौरान के दिखाए गए फुटेज से स्पष्ट हो जाता है कि किस तरह सरकारी लाल बत्ती लगी कार में वारेन एण्डरसन शान से पीछे की सीट पर अधिकारी की तरह बैठा है और पुलिस अधीक्षक स्वराज पुरी उसकी कार को हांक रहे हैं। कंडक्टर की सीट पर डीएम मोती सिंह विराजमान हैं। लोग तो यहां तक कह रहे हैं कि जब एण्डरसन को सरकारी विमान से रवाना किया गया तब दोनों ही अधिकारियों ने उसे सेल्यूट भी किया था।

    जहां तक राठोर का सवाल है तो भारतीय पुलिस सेवा के उस अधिकारी ने एक बाला के साथ अपने पद का रौब गांठने का प्रयास किया था, जिससे आजिज आकर रूचिका गहरोत्रा को अपनी इहलीला समाप्त करने पर मजबूर होना पडा था। रूचिका के परिजनों ने कई दिन तक राठौर की यातना को झेला। इस सबके बाद भी हरियाणा की निर्लज्ज कांग्रेस सरकार ने रूचिका के कातिल राठौर को सरमाथे पर बिठाने में कोई कोर कसर नहीं रख छोडी थी। रूचिका को भी सालों बाद न्याय मिल सका। केंद्र और प्रदेश की कांग्रेस सरकारों को न जाने इन अखिल भारतीय सेवा के अधिकारियों से क्या मोह होता है, कि वे इनके खिलाफ कठोर कदम उठाने की हिम्मत ही नहीं जुटा पाती हैं, यही कारण है कि अखिल भारतीय सेवा के अधिकारियों के हौसले बुलंदी पर हैं, और वे मनमानी पर पूरी तरह उतारू हैं।

    अखिल भारतीय सेवा के अधिकारियों की अकूत दौलत के बारे में अगर बारीकी से जांच पडताल की जाए तो देश का आखिरी आदमी तक दांतों तले उंगली दबा लेगा। सांसद, विधायकों की भांति ही इनको सारी सुविधाओं के बावजूद भी भारी भरकम वेतन दिया जाना आश्चर्य जनक ही कहा जाएगा। इन सारे माननीयों के वेतन भत्तों को देखकर कोन कह सकता है कि भारत देश आज गरीब है। यह अलहदा बात है कि देश की सत्तर फीसदी आबादी आज भी गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन कर रही है, जिसे दो वक्त की रोटी भी ठीक तरीके से नसीब नहीं होती है, और ये माननीय हर घंटे मलाई चट करने पर आमदा हैं।

    राठौर अखिल भारतीय पुलिस सेवा के सेवानिवृत अधिकारी हैं, तो स्वराज पुरी भी उसी सेवा के सेवानिवृत और मोती सिंह अखिल भारतीय प्रशासनिक सेवा के सेवानिवृत अधिकारी हैं। जब एसपीएस राठोर की पेंशन रोकी जा सकती है तो स्वराज पुरी और मोती सिंह में क्या सुरखाब के पर जडे हुए हैं। मीडिया के माध्यम से पुरी और सिंह दोनों ही को भोपाल गैस कांड के सरगना को सुरक्षित भगाने का अपराध साबित हो चुका है, फिर केंद्र सरकार किस बात का इंतजार कर रही है?

    केंद्र सरकार को चाहिए कि रूचिका की आत्महत्या के दिन से एसपीएस राठोर को दी गई सारी सुविधाएं, वेतन भत्ते, यात्रा देयकों आदि की वसूली मय ब्याज के की जाए, तभी दूसरे अधिकारियों को सबक मिल सकेगा। ठीक इसी तरह स्वराज पुरी और मोती सिंह को भी दिसंबर 1984 के उपरांत दी गई सुविधाएं, वेतन भत्ते, यात्रा देयक, पेंशन आदि की वसूल मय ब्याज के की जानी चाहिए। इन सभी की संपत्ति को कुर्क कर कार्यवाही की जाए तो यह एक नजीर होगी, कि आला अधिकारी आने वाले समय में मनमानी न कर पाएंगे। अगर एसा नहीं होता है तो स्व.पी.एम.ढबले सर की बात को ही दुहराना होगा कि राम (राठोर) से अंग्रेजी आती है श्याम (पुरी और मोती सिंह) से नहीं. . . .।

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    4 टिप्‍पणियां:

    1. एक ही आलेख इतने ब्लॉगस से प्रसारित करने का क्या आशय है, कोई खास वजह है क्या? एक जिज्ञासा है, कृपा निवारण करें.

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    2. कांग्रेसियों की देन हैं आई ए एस और पी एस.

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    3. समीर जी, यह जिज्ञासा सिर्फ़ आपको नहीं बहुतों को है…

      आखिर एक ही पोस्ट को एक ही दिन एक के बाद एक, अलग-अलग ब्लॉग्स पर डालने का क्या औचित्य है? एक और साहब हैं "नाइस", ये भी "लोकसंघर्ष" सहित 7-8 ब्लॉग्स पर एक साथ एक ही पोस्ट पेलते हैं, झेलना न झेलना आपका काम है।

      मेरी कुछ "बालसुलभ" जिज्ञासाएं हैं -

      1) क्या पाठक संख्या बढ़ाना इसका मकसद है?

      2) क्या "समूह" (असभ्य भाषा में- गैंग) बनाने से ब्लॉग/ब्लॉग्स को कोई अतिरिक्त फ़ायदा पहुँचाने के लिये यह हो रहा है?

      3) इंटरनेट पर "हिन्दी को समृद्ध"(?) (कुछ लोग इसे नेट पर कचरा बढ़ाना कहते हैं) करने का कोई षडयन्त्र है?

      4) ब्लॉग्स एग्रीगेटरों पर इस पोस्ट की उपस्थिति पूरे पेज पर सतत दिखाई देती रहे, यह लालच है?

      समीर भाई बहुत सज्जन व्यक्ति हैं (इसीलिये सर्वाधिक टिप्पणियाँ भी पाते हैं) लेकिन यदि मेरी इस टिप्पणी को "मुँहफ़ट" भी समझा जाता है, तो मुझे कोई आपत्ति नहीं है… :) :) क्योंकि जो बात कई लोगों के मन में उठ रही है, मैंने उसे सिर्फ़ आवाज़ दी है।

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