बडे दुख का विषय है कि अभिभावक अपने पाल्यों की प्राथमिक शिक्षा के प्रति सतर्क नहीं है।इसे अक्षर ज्ञान के अतिरिक्त और कुछ नहीं माना जाता जबकि सारी इमारत इसी नीव पर आधारित होती है।किस कक्षा को पढाती हो ,क्या कहा पहली दूसरी को तब तो समझो तुम कुछ नही कर रही हो । तुम्हारे तो मजे ही मजे है ।बस अपना टाइम पास किये जाओ । इन टिप्पणियों को सुनते-सुनते तो मुझे भी एकबारगी यही लगने लगा कि बच्चों को अक्षर ज्ञान देना बहुत ही सरल कार्य है ।शायद यही कारण हो इन प्राथमिक शालाओ के अध्यापको को विशेष तरजीह नहीं दी जाती।उसे केवल पट्टी ,स्लेट अथवा कापी पर किटकिन्ना डालने वाला मान लिया गया । बहुत हुआ तो सामूहिक रूप से गिनती या पहाडे बुलबाने के लिये अधिक्रत मान लिया गया।
जब मैं अपने बी.एड. प्रशिक्षणार्थियो के साथ प्राथमिक और माध्यमिक शालाओं मे गई तो कमोवेश मैंने गुरुजी का यही रूप देखा ।कक्षा मे एक बच्चे को खडा कर दिया और वह सभी बच्चों को सामूहिक अभ्यास करवा रहा है और गुरूजी अपने अन्य कार्य में व्यस्त हैं |बहुत हुआ तो एक डंडा उठाकर बच्चों पर फटकार दिया और चुप होने का निर्देश दे दिया |
जिस समय में बच्चे को गुरूजी का स्नेह ओर व्यक्तिगत निर्देशन चाहिए था ,वह कीमती समय केवल चुप बैठने में बीत गया | किसी तरह से पहली दूसरी तीसरी और अन्य कक्षाएं चढता गया पर न तो उसे शुद्ध लिखना आया और न पढना| और हम अध्यापक बस बच्चे में दोष देखते रहे |जब मैंने प्रयास में बच्चों को अक्षर ज्ञान देना प्रारम्भ किया ,तब पाया कि एक व्यक्ति ढेरों भूलें इसलिए करता है क्योंकि वह उसका सही रूप जानता तक नहीं |
मात्राओं का ज्ञान और संयुक्त वर्ण बनाना सिखाते समय यदि सावधानी बरती जाती तो आज ये त्रुटियाँ नहीं होती| जिस समय में मूल्योंका विकास किया जा सकता था ,वह समय बहुत बोझिल पाठ्यक्रम की भेंट चढ गया |हम अपने बच्चों को अंकों की अधिकता से ही नापते रहे और बच्चों के कंधे भारी बस्ते के बोझ तले दब कर झुकते चले गए|मासूम बचपन जो कहानियों का भूखा होता है पता नहीं बड़ी –बड़ी बातों को जानने में चूक गया| वह अपनी कोलोनी और अपने परिवेश से अपरिचित ही रह गया और हम उसे देश और विदेश के पाठ रटाते रहे| वह अपनी मात्रभाषा पर पकड़ नहीं बना पाया और हम उसे आर ए टी रेट और केट ही रटाते रहे |
जो समय उसे छोटे –छोटे गीत सिखाने का था उसमें हमने अश्लील और द्विअर्थी गानों पर ठुमकना सिखा दिया और इतराते रहे कि हमारा बालक आधुनिकता के सारे पैमानों पर खरा उतर रहा है |हमने उसे स्वतन्त्र व्यक्तित्व माना ही कब उसे लेकर हम अपने सपनों को पूरा करते रहे| उसकी क्या योग्यताएं है ,वह किस क्षेत्र में अपनी प्रतिभाओं का प्रदर्शन कर कुशल बन सकता था यह सब तो हमारे लिए बहुत गौण हो गया|हमने अपने स्तर को मेंटेन रखने के लिए सब कुछ तय कर लिया | हमने उस विद्यालय केवातावन को जानने की कोशिश भी नहीं की जहाँ हमारा लाडला दिन का एक महत्वपूर्ण समय बिताने जा रहा था |
क्या अपने पाल्य की शिक्षा –दीक्षा को लेकर हमें सजग नहीं हो जाना चाहिए ?बच्चे के घर लौटनेपर कितनी सारी बातें होती हैं जिन्हें वह अपने माता-पिता को बताना चाहता है ,क्या बच्चों का होमवर्क करवाना देना अथवा उसके लिए भी किसी ट्यूटर की व्यवस्था कर देना काफी है? क्या आपका बच्चा स्कूल से लौटकर यह नहीं चाहता कि आप उसका सर सहलाते हुए उससे बातें करें | यदि वह किसी दिन्स्कूल नहीं जाना चाहता तो उसकी भी कोई निशिचित वजह होती है| हो सकता है वह स्वयं अपने से परेशान हो आप उसकी सभी बातों को सुनने के लिए समय निकालें और उसकी परेशानियों पर ध्यान दें |
ये कुछ छोटी-छोटी बातें हैं जिनके प्रति अभिभावकों को सतर्क होना बहुत जरूरी
है|अपने बच्चों पर केवल पैसा खर्च कर ही हम माता- पिता के दायित्व से मुक्त नहीं हो सकते||
प्राथमिक शिक्षा ही पूरी शिक्षा व्यवस्था की नींव है|
Posted on by beena in
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