आजाओ न कभी यूँ ही
चिट्ठी पत्री से एकदम से
फिर कुछ पूछो न नाम पता
फिर देहरी पर जम ही जाओ
फिर मै थामूं समझ अपना
आखर से आंगन भर जाओ
इक खुशियों भरी सूचना से
घर महका जाओ मद्धम से !
हाँ सबको संबोधन करना
कोई भी अपना छूटे न
स्नेह भी हो आदर भी हो
कोई भी परिजन रूठे न
लेकिन मुझसे ऐसे मिलना
जैसे इक प्रियतम, प्रियतम से !
चिट्ठी पत्री से...!
Posted on by गीतिका वेदिका in
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चिट्ठी पत्री,
वेदिका
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वाह ,,,,,,,,,,,बहुत ही सुन्दर्।
जवाब देंहटाएंमुझसे यूँ मिलना प्रियतम से ...
जवाब देंहटाएंसुन्दर ...!