कौन है सच्‍चा कौन है झूठा हर चेहरे पे नकाब है

Posted on
  • by
  • Unknown
  • in
  •  


    किसको माने सच किसको झूठ
    सेवानिवृति के बाद तबियत से मुंह खोल रहे नौकरशाह

    गैस कांड के वक्त सियार रहे नौकरशाह अब बन रहे शेर

    (लिमटी खरे)

    1984 में 2 और 3 दिसंबर की दर्मयानी रात भोपाल में तांडव मचाने वाली यूनियन कार्बाईड से रिसी गैस के वक्त मध्य प्रदेश में जिम्मेदार पदों पर रहने वाले नौकरशाह अब एक दूसरे पर लानत मलानत भेजकर क्या साबित करना चाह रहे हैं यह बात समझ से परे है, किन्तु इस पूरे घटनाक्रम से एक बात तो स्थापित हो गई है कि देश का हृदय प्रदेश हो या कोई भी सूबा हर जगह नौकरशाह पूरी तरह जनसेवकों के हाथों की कठपुतली ही हुआ करते हैं। हाकिम चाहे जो हो नौकरशाह उनकी मर्जी के हिसाब से रास्ते निकालने में महारत रखते हैं। यह कडवा और अप्रिय तथ्य भी साफ तौर पर उभरकर सामने आ चुका है कि चाहे जनसेवक हों या नौकरशाह, किसी को भी ''आवाम ए हिन्द'' (भारत गणराज्य की जनता) से कोई देना नहीं है।

    एक समाचार पत्र को दिए साक्षात्कार में भोपाल गैस कांड के वक्त मध्य प्रदेश के गृह सचिव रहे कृपा शंकर शर्मा का कहना है कि उन्हें अंधेरे में रखकर यह कदम उठाए गए थे। उनका कहना हास्यास्पद ही लगता है उन्हें तत्कालीन पुलिस अधीक्षक स्वराज पुरी ने बताया कि वारेन एंडरसन को गिरफ्तार कर लिया गया है, और उसे पुलिस थाने के बजाए कार्बाईड के सर्वसुविधायुक्त आरामदेह गेस्ट हाउस में रखा गया है। इतना ही नहीं पुलिस अधीक्षक का कहना था कि तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह एसा चाहते थे। क्या गृह सचिव की कोई जवाबदेही नहीं बनती है! के.एस.शर्मा जो आज सेवानिवृति के इतने सालों बाद यह कह रहे हैं क्या वे उस वक्त कुंवर अर्जुन सिंह से इस बारे में पूछकर नियम कायदों का हवाला नहीं दे सकते थे।

    गोरतलब है कि छोटी छोटी बात पर नोट शीट पर ''पुर्नविचार करें, समीक्षा करें, पुटअप करें, नियमानुसार कार्यवाही करें'' जैसी टीप लिखने के आदी नौकरशाह कुंवर अर्जुन सिंह के इतने दबाव में थे कि उन्होंने इस मामले में भेडचाल चलना ही मुनासिब समझा। अपनी जवाबदेही से बचते हुए के.एस.शर्मा का यह कहना आश्चर्यजनक है कि तत्कालीन मुख्य सचिव, जिला दण्डाधिकारी या जिला पुलिस अधीक्षक चाहते तो उसी समय उपर के दवाब के बावजूद भी किसी भी स्तर पर इंकार कर सकते थे। जब यह बात तत्कालीन गृह सचिव को पता लगी थी, तो क्या यह शर्मा साहेब की नैतिक जवाबदेही नहीं बनती थी कि वे स्वयं ही इस मामले में संज्ञान लेकर नोटशीट चला देते और एक बार कोई बात लिखत पढत में आ जाती तो फिर उसे आसानी से दबाया नहीं जा सकता था। वस्तुतः एसा हुआ नहीं।

    उस वक्त पुलिस माहानिदेशक के सबसे उंचे ओहदे पर बैठने वाले भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी बी.के.मुखर्जी अलग तान सुनाते हैं। वे कहते हैं, एंडरसन को बचाने के लिए वे स्वराज पुरी की पीठ थपथपाते हैं। बाकी मामलात में उन्हें सारे वाक्यात बिल्कुल साफ याद हैं पर जब भोपाल गैस कांड में यूनियन कार्बाईड के तत्कालीन प्रमुख वारेन एंडरसन को भोपाल लाकर गिरफ्तार करना और उसे पुलिस थाने के बजाए यूनियन कार्बाईड के गेस्ट हाउस में रखना, पुलिस अधीक्षक स्वराज पुरी द्वारा वारेन एंडरसन का सारथी बनकर उसे ''राजकीय अतिथि'' के तरीके से भोपाल से बाहर भेजने के मामले में उनकी याददाश्त धुंधली पड जाती है। मुखर्जी अस्सी साल की उमर के हो चुके हैं, उनकी धुंधली याददाश्त की वजह उम्र है या यूनियन काबाईड की कोई उपकार यह तो वे ही जाने पर यह सच है कि पुलिस की उस वक्त की भूमिका ने खाकी को कलंकित करने में काई कोर कसर नहीं रख छोडी है।

    हजारों शव के गुनाहगार वारेन एंडरसन के सारथी बने भारतीय पुलिस सेवा के सेवानिवृत अधिकारी स्वराज पुरी ने मुंह खोलना ही मुनासिब नहीं समझा है, किन्तु उस वक्त भोपाल के ''जिला दण्डाधिकारी'' रहे मोती सिंह इतनी लानत मलानत के बाद भी बडे ही रिलेक्स हैं, जो वाकई आश्चर्यजनक है। सच है इन आला अफसरान या जनसेवकों के घरों का कोई असमय ही इस गैस की चपेट में आकर काल कलवित नहीं हुआ, तो उन्हें भला किस बात की परवाह, आखिर क्यों उनके चेहरों पर शिकन आए! हो सकता है कि इन नौकरशाहों और जनसेवकों को दुनिया के चौधरी अमेरिका से हजारों लाशों और लाखों पीडितों का एक मुश्त या फिर किश्तों में मुआवजा भी मिल रहा हो।

    एसा नहीं कि नौकरशाहों ने कभी भी शासकों की गलत बात का विरोध न किया हो। इन्हीं कुंवर अर्जुन सिंह के मुख्यमंत्रित्व काल में इंदौर की एक कपडा मिल में हुए बवाल के दौरान अफसरान ने हुक्मरानों को आईना दिखाया था। उस वक्त इस कपडा मिल के मालिक सरकार द्वारा लीज पर दी गई जमीन मंहगी कीमत मिलने पर बेचना चाह रहा थे, जो उन्हें मिल चलाने के लिए मिली थी। मालिकों ने अपने ''तरीके'' से मुख्यमंत्री कुंवर अर्जुन सिंह को भी मना लिया था। जमीन चूंकि लीज पर दी गई थी, अतः उसे बेचकर उसका स्वामित्व परिवर्तन संभव नहीं था। ताकतवर मुख्यमंत्री कुंवर अर्जुन सिंह के लाख दबाव के बावजूद भी नौकरशाह नहीं झुके। उस वक्त के विधि, राजस्व, उद्योग, आवास पर्यावरण आदि महकमो के सचिवों ने मुख्यमंत्री सिंह के लाख दबाव के बावजूद भी एक के बाद एक कर नस्ती को अपनी टेबिल पर ही रोककर रखा।

    इतना ही नहीं बावरी ढांचा ढहने के उपरांत देश भर मंे लगी आग में मध्य प्रदेश भी बुरी तरह झुलसा हुआ था। मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल सहित अनेक शहर हिन्दु मुस्लिम आबादी के आधिक्य के चलते अति संवेदनशील की श्रेणी में आते हैं। भोपाल के हालात पर काबू पाना बहुत ही दुष्कर हो रहा था। उस वक्त भोपाल के जिला दण्डाधिकारी एम.ए.खान कानून और व्यवस्था बनाने में बुरी तरह असफल रहे थे। तत्कालीन मुख्य सचिव निर्मला बुच तत्काल खान को हटाना चाह रहीं थीं। उनके सामने मजबूरी यह थी कि एम.ए.खान तत्कालीन मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा के खासुलखास हुआ करते थे। पटवा उन्हें हटाने को राजी नहीं थे, किन्तु बाद में जब निर्मला बुच अड गईं तो पटवा को श्रीमति बुच के सामने आखिर झुकना ही पडा।

    पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के कार्यकाल में भी जब निजी स्कूलों को शासनाधीन करने के मामले हुए तब विन्धय के सफेद शेर पंडित श्रीनिवास तिवारी ने रीवा अंचल के सैकडों स्कूलों को इस सूची में शामिल करवा दिया था। दरअसल शासनाधीन होने वाले स्कूल के कर्मचारियों को सरकारी कर्मचारी बना दिया जाता है। इस मामलें में अरबों के वारे न्यारे हुए। तत्कालीन प्रमुख सचिव शिक्षा यू.के.सामल को जब भ्रष्टाचार की बात पता चली तो उन्होंने नस्ती को अपने पास अटकाए रखा। अंततः पांच सौ से अधिक स्कूलों की सूची को निरस्त कर दिया गया था। कुल मिलाकर अगर जनसेवकों की नैतिकता तो समाप्त हो चुकी है, नौकरशाहों ने भी अपनी अस्मिता को बेच खाया है। आज सेवानिवृति के उपरांत नौकरशाह एक दूसरे पर लानत मलानत भेजकर मजे लेने से नहीं चूक रहे हैं। आसमान से अगर महात्मा गांधी, इंदिरा गांधी, जवाहर लाल नेहरू सरदार वल्लभ भाई पटेल आदि इस सारे प्रहसन को देख रहे होंगे, तो वे निश्चित तौर पर आंखों में आंसू लिए यही सोच रहे होंगे कि इस तरह के भारत गणराज्य की कल्पना तो उन्होंने कभी की ही नहीं थी।

    --
    plz visit : -

    http://limtykhare.blogspot.com

    http://dainikroznamcha.blogspot.com

    1 टिप्पणी:

    आपके आने के लिए धन्यवाद
    लिखें सदा बेबाकी से है फरियाद

     
    Copyright (c) 2009-2012. नुक्कड़ All Rights Reserved | Managed by: Shah Nawaz