शनिवार के दिन मैं प्रियवर अविनाशजी के साथ रहा. जलते हुए सूरज की तपिश के बावजूद हमारी शाम सुहानी रही. इसलिए कि हम दो घंटे से भी ज्यादा हिंदी के सुपरिचित, श्रेष्ठ और विख्यात गीतकार सोम ठाकुर के आगरा स्थित आवास पर जमे रहे. सोमजी कई साहित्यकार साथियों को एक साथ पाकर इतने प्रमुदित थे कि उनका कंठ अनायास अपने उच्च स्वर में आ गया. एक गोष्ठी ही जम गयी. साथ में थे हिंदी की नयी पीढ़ी के गीतकारों में अपनी खास जगह बना चुके डा. त्रिमोहन तरल, जदीद गजलो में एक नयी धारा को जन्म देने की कोशिश कर रहे गिने-चुने लोगों में शामिल सरवत एम जमाल और कविता तथा भेषज दोनों में हाथ आजमातीं अलका मिश्र . फिर क्या-क्या हुआ मैं नहीं बताऊँगा. पूरे धमाल पर अविनाशजी की कलम कुछ रच रही है. साँस थामे इन्तजार कीजिये. बस जल्द ही....
....तो मैं नवभारत टाइम्स को भी गाकर पढूं-सोम ठाकुर
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सोम के संग, जमा गोष्ठी का रंग
Posted on by Subhash Rai in
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टिप्पणी तो तभी दूंगा जब कुछ लिखोगे।
जवाब देंहटाएंमैने पवन चन्दन जी को कुछ सूचना कुछ चित्रो के साथ भेज दी है, देखते है कि उसमे से क्या क्या प्रकाशित करते है और क्या बाकी रखते है.मै नेट से सही तरह से नही कनेक़्ट हो पा रहा हू.
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