(उपदेश सक्सेना)
मातृत्व सुख किसी भी महिला के लिए प्रकृति की सबसे बड़ी नेमत होती है.पितृत्व को भी यह सम्मान मिल सकता है,बशर्ते सही अर्थों में पिता के कर्तव्यों को सराहा जाये.पिता बनना आसान है, मगर पिता होना बहुत मुश्किल.शिशु को माता के साथ पिता के भी समान प्यार की दरक़ार होती है.हालांकि पिता के प्यार को आज तक उतनी अहमियत नहीं दी गई, जितनी माँ के प्यार को दी जाती है.शायद इसका एक कारण यह भी हो सकता है कि बच्चा अपने अस्तित्व में आने से लेकर जन्म के बाद तक माँ के अधिक नज़दीक रहता है.एक अच्छा पिता होने के नाते पुरुष बच्चों के लिए उनका रोल माडल हो सकते हैं.इसी के साथ उनके स्वतंत्र व्यक्तित्व के विकास में भी पिता सहायक हो सकते हैं. दौड़ती-भागती ज़िन्दगी और पश्चिम की छत्रछाया में बच्चे ज़ल्दी मैच्योर हो रहे हैं, लिहाज़ा पिता की भूमिका बदलना लाज़िमी है, मगर वह उतनी तेज़ी से बदलती दिखती नहीं.
पुरुषों के लिए आंसू उनकी कमज़ोरी नहीं होते, वे छोटी-छोटी बातों पर आंसू नहीं बहाते, लेकिन इसका अर्थ कदापि यह नहीं है कि उन्हें दुःख छूता भी नहीं.बच्चे, संभवतः यह नहीं जानते कि पिता की भी संवेदनाएं होती हैं, बस ज़रूरत है उन्हें मौके पर व्यक्त करने की और उसके तरीके की. एक पिता होने के नाते सभी पिताओं को मेरी यह नेक सलाह है कि यदि कभी किसी पल बच्चों के सामने आँखें भीग भी जाएँ तो उसके लिए शर्मिन्दा न हों बल्कि उसे सहज़ता से लें, आप देखेंगे कि बच्चे भी सहज़ होते जायेंगे. बेस्ट पापा और आईने(शीशे) की तुलना आसानी से की जा सकती है.बेस्ट पिता की छवि इतनी नाज़ुक होती है कि उसे टूटने-चटकने में देर नहीं लगती.बालमन में पिता की छवि मुम्बईया फिल्मों के नायक जैसी होती है, जो ज़मीन में लात मारकर गड्ढा करने से लेकर आसमां के तारे तोड़ने जैसे तमाम काम आसानी से कर सकता है.इस धारणा को आसानी से तोड़कर बच्चों को यथार्थ के धरातल पर लाना टेढ़ी खीर भी है लेकिन ऐसा करना ज़रूरी भी है. बच्चे पिता को अमूमन अपनी हर ज़रूरत पूरी करने का ज़रिया मान बैठते हैं, यह स्थिति उस वक़्त ज़्यादा खतरनाक हो जाती है जब पिता फरमाइशें पूरी करने में लाचार हो जाये, उस वक़्त बच्चों और पूरे परिवार का रवैया इस क़दर बदल जाता है कि असहाय पिता खुद को अकेला महसूस करने लगता है.
फादर्स-डे पर पिता को सबसे बड़ी भेंट यही हो सकती है कि पिता को इस दिन उनकी अहमियत बताई जाये, उनके मान-सम्मान का अहसास करवाया जाये कि बच्चों के लिए उन्होंने जो किया वह आपके ज़ेहन में है और कोई दूसरा ऐसा नहीं कर सकता. उन्हें यह भी अहसास करवाया जाये कि उनकी सबको ज़रूरत है, उनमें इस बात का आत्मविश्वास भी जगाएं. रिटायर्ड व्यक्ति निराशावादी हो जाता है, इसलिए पिता में आशा का संचार करें. महिला समानता की तर्ज़ पर पिता को भी समानता का हक़ देकर उन्हें फादर्स-डे का अनमोल तोहफ़ा दिया जा सकता है. ब्रिटेन कि महारानी विक्टोरिया के शब्दों में-
“कोई नहीं कह सकता कि वह ऐसे पिता की संतान है, जिनकी महानता, अच्छाई और निर्दोषिता की कोई सानी नहीं है.इसलिए अपने पिता के पद-चिन्हों पर चलने की कोशिश सब करें और हतोत्साहित न हों, क्योंकि मुझे पता है कि कोई भी हर बात में अपने पिता जैसा नहीं हो सकता. इसलिए अपने पिता की कुछ बातों को खुद में उतारने की कोशिश करें, तो काफी कुछ हासिल किया जा सकता है.”
‘पा’ को भी दें समानता का हक़
Posted on by उपदेश सक्सेना in
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Mother and father are equally important for child. And it is more relevant nowadays in the period of nucleous families.
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