ग़ज़ल : क्या कर गुज़र जाते हैं लोग..............

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  • डॉ० डंडा लखनवी
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  •                                  -रवीन्द्र कुमार ’राजेश’

    हौसला करने का हो, क्या कर गुज़र जाते हैं लोग।
    बात रखने के लिए हँस- हँस के मर जाते हैं लोग।।



    हर    मुसीबत   में   खड़े   रहते  थे   वे  चट्टान  से,
    इस ज़रा सी चोट से अब तो बिखर  जाते हैं लोग।।


    इक जु़बाँ और उस जुबाँ की बात का कुछ था वज़न,  
    किस तरह अब बात से अपनी मुकर जाते हैं लोग।।


    कह   दिया  अपना  जिसे,  उसके  सदा  के  हो गए,
    काम  निकला,चल दिए, ऐसे अखर जाते हैं लोग।।


    सामने   सब    कुछ  हुआ  देखा मगर सब चुप रहे,
    वह  इधर मारा गया  लेकिन उधर जाते हैं लोग।।


    टूटता   जाता   है   जीने   का  भरम  ’राजेश’  का,
    आजकल अपने ही साये तक से डर जाते हैं लोग।।


                                ’पद्मा कुटीर’
                                 सी-27, सेक्टर- बी,
                                 अलीगंज स्कीम, लखनऊ-226024
                                 फोन: 0522-2322154

    8 टिप्‍पणियां:

    1. हौसला करने का हो, क्या कर गुज़र जाते हैं लोग।
      बात रखने के लिए हँस- हँस के मर जाते हैं लोग।।

      बहुत उम्दा अभिव्यक्ति है!

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    2. दो पंक्तियाँ मेरी तरफ से...
      अपनी बात भी कह दी आपने और ज़बान-दराज़ी भी न हुई
      वर्ना करना कुछ और होता है कुछ और कर जाते हैं लोग

      बहुत खूब...
      हाँ नहीं तो...!!

      जवाब देंहटाएं
    3. हौसला करने का हो, क्या कर गुज़र जाते हैं लोग।
      बात रखने के लिए हँस- हँस के मर जाते हैं लोग।।

      अच्छी पंक्तियाँ बन पड़ी है राजेश जी। खूबसूरत भाव।

      सादर
      श्यामल सुमन
      09955373288
      www.manoramsuman.blogspot.com

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    4. bhut khub jnaab ghzl ke khususi alfaazon men behr or mitr kaa yeh taalmel hqiqt men dil ko lubhaane vaalaa he bdhaai ho . akhtar khan akela kota rajsthan

      जवाब देंहटाएं
    5. bhut khub jnaab ghzl ke khususi alfaazon men behr or mitr kaa yeh taalmel hqiqt men dil ko lubhaane vaalaa he bdhaai ho . akhtar khan akela kota rajsthan

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    6. bahut khub



      फिर से प्रशंसनीय रचना - बधाई

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    आपके आने के लिए धन्यवाद
    लिखें सदा बेबाकी से है फरियाद

     
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