बुलंद छत्‍तीसगढ़ में ब्‍लॉग 4 वार्ता (अविनाश वाचस्‍पति)

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    में कर रहे हैं 
    ललित शर्मा 
    जो चर्चा 
    आप भी पढ़ लीजिए 
    आनंद मिलने की 
    पूरी गारंटी है


















    डॉ. टी एस दराल, संगीता पुरी और जी के अवधिया की चर्चा की गई है।

    7 टिप्‍पणियां:

    1. हिंदी ब्‍लॉगिं‍ग के विकास के लिए यह बहुत बढिया प्रयास है .. बुलंद छत्‍तीसगढ की पूरी टीम और ललित जी को बहुत बहुत धन्‍यवाद !!

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    2. अगर चैन से सोना है तो जाग जाओ

      प्रियवर ,
      न तो मैं अरुंधती के लेखन का समर्थक हूँ और न ही सरकार के तथा सरकारी भ्रष्ठाचार के विरुद्ध होने वाले आन्दोलनों का विरोधी !
      हाँ गरीव और निर्दोष लोगों के मारे जाने या उनके विरुद्ध किसी भी अतिवादी कार्यवाही का प्रवल विरोधी हूँ ………….
      ठीक वैसे ही विधायिका कार्यपालिका और न्यायपालिका द्वारा देश के ९५ % लोगों के शोषण का भी प्रवल विरोधी हूँ !
      परन्तु एक बात सदा ही विचारणीय होनी चाहिए की यदि जनता द्वारा चुनी गयी जनाकल्यानकारी सरकारें अपना दायित्व भूलकर आकंठ जन-शोषण मैं लिप्त हो जाएँ और लगातार सुधरने से मुकरती चली जाय तो क्या किया जाना चाहिए ?///
      ये एक यक्ष प्रश्न है !
      प्रत्येक व्यक्ति की सोच निश्चित अलग -अलग होगी ही —————-
      ऐसे मैं /////////////
      यहाँ एक प्रश्न प्रासंगिक है !
      क्या वास्तव मैं आज़ादी केवल गाँधी जी के सत्याग्रह आन्दोलन से ही मिली थी ??????
      क्या उग्र और सशत्र आन्दोलनवादी सुभाष , चंद्रशेखर , आजाद विस्मिल ,की कोई भूमिका नहीं थी ???????????
      आज —–
      मुझे कोई गुरेज़ नहीं यदि आप अरुंधती को कोसते है या फिर नक्सलवाद को या किसी भी हिंसक आन्दोलन को !………..
      परन्तु हर सिक्के के निश्चित रूप से दो ही पहलू होते है ————
      दूसरे पहलू को देखे बिना सिक्के का मूल्याङ्कन नहीं किया जा सकता है …………….
      निश्चित ही आपको सिक्के का दूसरा पहलू यानि सरकार की काली करतूतें या तो दिखाई नहीं देती या फिर आप उनके सहयोगी और समर्थक हैं ++++++++++++
      मैं मानता हूँ की सिक्के के दोनों पहलू सामान्यतया एक साथ नहीं देखे जा सकते है ,,,
      परन्तु ………..
      यदि सिक्के को लेकर दर्पण के सामने खड़े हो जाएँ तो एक ही द्रष्टि पटल से दोनों पहलू का सम्यकाव्लोकन किया जा सकता है !
      अस्तु,
      हमें हर प्रबुद्ध लेखन से यह आशा करनी ही चाहिए की वे किसी एक पक्ष की आलोचना करने की अपेक्षा दोनों पक्षों की समालोचना करें जिससे लोग उस पक्ष को पहचान सकें जो वास्तव मै दोषी है और सारी समस्याओं की जड़ हैं

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    3. मैं किसी भी अतिवादी कार्यवाही का प्रवल विरोधी हूँ
      ,परन्तु—-
      यदि पैर में कांटा लग जाय और गहरे तक जाकर टूट जाय तो-
      दो रास्ते हैं ——-
      (१) बाह्य औषधीय उपचार जैसे गुड और तम्बाकू का लेप करें या megsulf ointment की पट्टी करें !!! फिर लम्बी प्रतीक्षा करें ! इश्वर से प्रार्थना करें !! या,////////////////
      (२) एक कीटानुरहित सुई लेकर(या अन्य किसी शल्य चिकित्सा उपकरण से ) तत्काल कांटे को निकाल बाहर करें बाद मैं कोशिकाओं को हुई क्षति को औषधीय उपचार से ठीक करें !
      दोनों ही उपचार अपने आप मैं पूर्ण एवं प्रचलित एवं तर्कसंगत हैं!
      अब ये व्यक्ति के व्यक्तित्व तथा देश-काल-परिस्थिति पर निर्भर करता हैं की कोनसा रास्ता स्वीकार करता है !
      इसलिए -
      मेरी दृष्टि मैं प्रथम-जिम्मेदार वो है जो परिस्थिति पैदा करता है !
      “यथा राजा तथा प्रजा ”
      आज आपको आतंकवाद नक्सलवाद ,पूंजीवाद ,रिश्वतखोरी ,दुराचार ,भ्रष्टाचार ,अनाचार आदि जितने भी दुष्कर्मों का महावृक्ष देश में दिखाई देता है!
      उसकी जड़ें कहाँ हैं ????????????
      सिर्फ और सिर्फ ———–
      संसद और विधान सभाओं मैं
      विधायिका / कार्यपालिका के आदेशों के अनुपालन मैं सबसे निचला पायदान –पुलिस या कलेक्ट्रेट या निम्न तम न्यायालय…..क्या होता है यहाँ आप सब जानते हैं ——-
      सिर्फ एक उदहारण ही देता हूँ ——-
      आपने देखा होगा पुलिस का आदर्शवाक्य क्या है ?
      “परित्त्रानाय साधुनाम , विनाशाय च दुश्क्रताम”
      परन्तु वास्तविकता इसके ठीक विपरीत है —-
      “”परित्त्रनाय दुष्टानाम, विनाशाय च साधुनाम “”
      एक पुलिस ठाणे का द्रश्य देखें —
      एक गरीव अपनी बेटी की अस्मत लूटने की फरियाद लेकर पहुंचा ——–संतरी ने घुड़क कर भगा दिया —– कुछ है तो निकाल —रुपये ऐंठे —अन्दर धकेल दिया -मुन्सी ने पूछा क्या है रे— चले आते है कुछ काम धाम है नहीं आ गए रिपोर्ट लिखाने ——-ला निकाल —पैसे लिए —-चल बोल क्या हुआ ——पीड़ित ने बोला कुछ –मुन्सी ने लिखा कुछ , —-दरोगा जी ने क्लास लगा दी — स्साले तुमको कुछ काम धाम नई है, इज्जतदार आदमी के खिलाफ आरोप लगाता है तेरी लोंडिया ही उसके घर गई होगी—–रात को आऊंगा तफ्तीश करने —– चल भाग ——ज़बरदस्ती निकाल बाहर किया !
      दूसरा द्रश्य ———
      इलाके का जाना माना गुंडा / विधायक जी का गुर्गा /ब्लाक प्रमुख का साला ठाणे मै दाखिल हुआ– संतरी ने सेल्यूट मारा —हेड मोहर्रिर ने झुक कर स्वागत किया —-थानाध्यक्ष ने खड़े होकर हाथ मिलाया —पूछा कहिये नेताजी कैसे आना हुआ —-फोन कर दिया होता मैं खुद ही आ जाता ———नेताजी ने कान मै कुछ कहा ——-एक थेलेमैं कुछ सामान दिया —-दरोगा जी एक दम सतर्क हो गए —आप चिंता न करें आज ही स्साले का इंतजाम कर दूंगा !
      तीसरा द्रश्य -
      दो सिपाही उसी गरीव को पीटते हुए घसीटते हुए ला रहे हैं स्साला चोरी करता है वो भी नेता जी के घर मैं —–ऊपर से अपनी बदचलन लोंडिया के साथ बलात्कार की बात करता है ——–चल साले जिंदगी भर जेल मै चक्की पीसना —- उठा कर चोरी के इल्जाम मैं बंद कर दिया —-नेता जी के द्वारा दिया हतियार बरामद दिखा दिया —-नेता जी के द्वारा दिया गया अन्य सामान भी उसके पास से बरामद दिखा दिया ………………
      विद्वान् न्यायाधीश ने कानून की अंधी देवी की मूर्ति के सामने और गाँधी जी फोटो के नीचे सब कुछ जानने के बाद भी —-गवाह और सुबूतों की रोशनी मै १० वर्ष की कैदे-बा-मुशक्कत निर्धारित कर दी!
      —लडके के ऊपर आर्थिक संकट के साथ साथ नेता जी के गुर्गों का कहर टूटा ……..
      —लड़की ने आत्म हत्या करली ………..
      __लड़का बागी हो गया —ऐसे ही सताए हुए कुछ अन्य लोगों के साथ मिलकर —एक सिपाही को दारु पिलाकर उसी की बन्दूक से ठंडा कर दिया —नेताजी की लड़की के साथ दुष्कर्म किया ——तीन सदस्यों को मौत की नीद सुला दिया —–दरोगा जी के पैत्रक गाँव मैं जाकर बेटे सहित गोली से उड़ा दिया !
      —चम्बल के बागिओं ने हाथों हाथ लिया —और बना दिया — कुख्यात आतंकी, डकैत , —-फिरौती वसूलने वाला …………
      बाद मैं…………..
      तमाम लोगों के खून से रंगे हाथ ——— लेकिन वे सभी नेता गुंडे ,पुलिस वाले ,पैसे वाले, व्यापारी या शोषक वर्ग के लोग ही नहीं थे —उनमें कुछ उस वर्ग के लोग भी थे जिनका वह स्वयं प्रतिनिधित्व करता है —– उसके अनुसार सब कुछ जायज —-सबकुछ परिस्थिजन्य——

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    4. —जब कानून और कानून के रक्षक पीड़ित की पीड़ा को दूर नहीं करते वल्कि जानबूझ कर विपरीत-कर्मी बन जाते हैं , तो……….
      दो ही प्रतिक्रिया होती हैं …………
      (१)———- (कांटा निकालने के लिए-गुड-तम्बाकू या औषधि के लेप की तरह ) शोषक वर्ग के झूठे आश्वाशनों का मरहम लगाकर –इश्वाराधीन होकर भगवत्चिन्तन करे अपना अमूल्य समय , कठोर मेहनत से कमाया हुआ धन मुकदमे में खर्च करे और (भोपाल गैस पीड़ितों की तरह ) २५ साल बाद —बहुत हुआ तो —२५ महीनों का दंड ! —— संभवतः देश मै ९९.९९ % लोग इसे ही अपनाते है ! उनकी मजबूरी है
      (२)—-दूसरा वही जो ऊपर आप पढ़ चुके हैं
      .
      इस आदमी से अगर आप मिलेंगे और उसकी वास्तविक व्यथा कथा सुनेंगे तो क्या प्रतिक्रिया देंगे ???????????????
      मैं इस व्यक्ति की अतिवादी प्रतिक्रिया का व्यक्त रूप मैं न सही ह्रदय से समर्थन करता हूँ !
      –अब आप मुझे अरुंधती की तरह कोसेंगे !.
      – जरूर कोसिये………
      –लेकिन ………….
      –मुझे कोसने से पहले ……….
      –अरुंधती को कोसने से पहले ………..
      –अन्य ऐसे ही किसी लेखक को कोसने से पहले ………
      –प्रतिक्रियावादियों को कोसने से पहले……….
      –इन परिस्थितियों को पैदा करने वालों का समर्थन जरूर कीजिए !
      —संसद और विधायिकाओं मैं बैठे दुराचारी अत्याचारी बलात्कारी देश के गरीबों के लुटेरे (जिनकी संपत्ति स्विस बेंकों मैं जमा हैं ) नेता लोगों की जयजयकार ज़रूर कीजिये !
      मैं जानता हूँ …………नहीं कर पाएंगे आप !!
      इसलिए …………..
      अच्छा होगा यदि समय रहते जाग जाएँ !
      सादर
      Dr.Acharya

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