समय जब लिखता है इतिहास
हाल ही में एक किताब आई है- गांधी: नेक्ड एम्बिशन, जो ब्रिटिश लेखक जेड एडम्स ने लिखी है, इसमें गांधी के यौन व्यवहार पर खुलकर बात की गई है।
ऑस्टे्रलिया के गांधीवादी दोस्त अब्बास रजा अल्वी का ई-मेल आया, उनकी चिंता वाजिब है। दरअसल एक किताब आई है जो ब्रिटिश लेखक जेड एडम्स ने लिखी है- गांधी: नेक्ड एम्बिशन। जेड एडम्स फिलहाल लंदन विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ एडवांस स्टडी के अंग्रेजी अध्ययन विभाग में रिसर्च फेलो हैं, उन्हें हम द डायनेस्टी- गांधी नेहरू स्टोरी, टोनी बेन जैसी किताबों के लिए जानते हैं। कहा जा रहा है कि इस नई किताब में गांधी के यौन व्यवहार पर खुलकर बात की गई है, अल्वी को यह खबर वहां के एक अखबार में मिली, वे इसलिए भावुक हुए कि कुछ लेखक सस्ती लोकप्रियता के लिए गांधी पर कीचड़ उछाल रहे हैं। फिर तो कई ईमेल के जरिए यह लिंक देश भर से जाने अनजाने लोगों से बार-बार आया, सभी राष्ट्रपिता की छवि को लेकर बहुत चिंतित प्रतीत हुए। दरअसल, गांधी पर इस तरह की यह पहली किताब नहीं है, जैसे हंसराज रहबर ने भी कभी गांधी बेनकाब लिखी थी। इतिहास के विद्यार्थी के तौर पर मेरा मानना है कि भावुकता से ज्यादा महत्वपूर्ण तथ्य या वह स्रोत हैं जिन के आधार पर निष्कर्ष निकाले गए हंै। और व्यक्ति कोई भी हो, कोई भी ऐतिहासिक निर्णय तो आखिरकार व्यक्ति की बजाय तथ्य से तय होगा और ऐसा होना भी चाहिए। एक बात और मेरी समझ से बाहर है कि क्या महान लोगों को हमें सामान्य मानवीय कमजोरियों से ऊपर मान लेना चाहिए? क्या यह सच नहीं है कि स्थूल भावुकता हमें कहीं नहीं ले जाती, तर्क और तथ्यों के आलोक में निपजी भावुकता यकीनन स्थाई और सहज हो सकती है। मान लीजिए, अतीत में मेरे बुजर्गो ने कुछ मानवीय कमजोरियों के वशीभूत कुछ बुरा काम किया तो मुझे उसे उसी सहजता से क्यों नहीं स्वीकार करना चाहिए जितना अच्छे कामों को स्वीकारते हुए गौरवान्वित होता हूं। इसी तरह, गांधी मेरे प्रिय व्यक्तित्वों में से हैं और अगर कोई ऐतिहासिक तथ्य गांधी में कुछ मानवीय कमजोरियों को सिद्ध भी कर दें तो उनके पिछली सदी में हमारे सबसे महत्वपूर्ण और सर्वकालिक महान व्यक्ति होने का तथ्य और उनका महान काम कमतर तो नहीं हो जाएंगे?
- डॉ. दुष्यंत
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