भारतीय संस्कृति में दान को बड़े विराट अर्थॊं में स्वीकारा गया है। कन्यादान और मतदान दोनों में अनेक समानताएं हैं। कन्यादान का दायरा सीमित होता है वहीं मतदान के दायरे में सारा देश आ जाता है । कन्यादान एक मांगलिक उत्सव है.......मतदान उससे भी बड़ा मांगलिक उत्सव है। कन्यादान करना एक उत्तरदायित्व है.....मतदान करना बड़ा उत्तरदायित्व है। कन्यादान का उत्तरदायित्व पूर्ण हो जाने पर मनको अपार शान्ति मिलती है। मतदान के उत्तरदायित्व पूर्ण हो जाने पर भी आप अमन-शान्ति चाहते हैं। कन्यादान के लिए लोग दर-दर भटक कर योग्य वर की तलाश करते हैं परन्तु मतदान के लिए क्या शीलवान (ईमानदार) पात्र की तलाश करते हैं.......? यह एक बड़ा प्रश्न है इसका उत्तर आप अपने सीने में टटोलिए अथवा इस लोकगीत में खोजिए!
बबुआ ! कन्या हो या वोट...............
-डॉ0 डंडा लखनवी
बबुआ ! कन्या हो या वोट ।
दोनों की गति एक है बबुआ ! दोनों गिरे कचोट ।।
0कन्या वरै सो पति कहलावै, वोट वरै सो नेता,
ये अपने ससुरे को दुहते, वो जनता को चोट ।।
0ये ढूंढें सुन्दर घर - बेटी, वे ताकें मत - पेटी,
ये भी अपनी गोट फसावैं, वो भी अपनी गोट ।।
0 ये भी सेज बिछावैं अपनी, वो भी सेज बिछावैं,
इतै बिछै नित कथरी- गुदड़ी उतै बिछैं नित नोट ।।
0कन्यादानी हर दिन रोवैं, मतदानी भी रोवैं,
वर में हों जो भरे कुलक्षण, नेता में हों खोट ।।
0 कन्या हेतु भला वर ढूंढो, वोट हेतु भल नेता,
करना पड़े मगज में चाहे जितना घोटमघोट ।।
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कन्या हेतु भला वर ढूंढो, वोट हेतु भल नेता,
जवाब देंहटाएंकरना पड़े मगज में चाहे जितना घोटमघोट ।।
लाजवाब सर!
सुन्दर और सटीक!
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