जलजला कुमार और ढपोरशंख और बेनामी सरीखे हिन्दी ब्लॉगर-टिप्पणीकारों से विशेष आवाह्ल।
कमल से लो सीख लो। वो खुद सिखलाने नहीं आएगा। आप उसकी जीवन प्रक्रिया को जानो, समझो और मंथन करो। जिस प्रकार कमल का फूल गंदे पानी के तालाब में रहकर भी पुष्पित होता है । जीवन की तरह, जीवन के लिए खिल उठता है। आप भी सबके जीवन में वैसे ही रंग भरो। मोर के साथ भी ऐसा ही है, पर उसके पैरों की गंदगी की तरफ गौर मत करो। उससे ऊपर की सुंदरता निहारो। मयूरपंख के सौंदर्य को भला भुलाया जा सकता है। वह छिपाया भी नहीं जा सकता है। इंसान भी बुराईयों और गंदगी पर टिका हुआ है। उस बुराई और गंदगी को अपने मन पर जगह पर मत दो। अपनी ऊर्जा को उसी में निरर्थक मत गंवाने दो। जमाने को दिखला दो कि बुराई और गंदगी, विवाद और झगड़ों के मध्य रहकर भी हम ऐसा रच सकते हैं, जिस पर जमाने को गर्व हो सकता है। नहीं रच सकते ? कोशिश तो कर सकते हैं, एक बार, दो बार न सही, पर बार बार कोई असफल नहीं होता है। किसी दिन तो असफल में से अ हटेगा और उसके बाद सफलता आपकी कलम या कीबोर्ड को चूमेगी और उसके बाद स भी हट जाएगा और फल की प्राप्ति होगी। वो फल कैसा होगा, कैसा होगा उसका स्वाद, कितनी मात्रा में मिलेगा - यह सब आपकी सफलता और असफलता से निर्धारित होगा। सफलता पाने के लिए निराश होना नहीं, अनुभवों से सीखना जरूरी है। अनुभवों के सभी भावों को जान लो, अपने विचारों में उतार लो। फिर जो फल मिलेगा, वो सिर्फ आपको ही नहीं, सबको पसंद आएगा। पूरी गुणवत्ता और मात्रा में मिलेगा। लेकिन अब मैं भाषण बंद करता हूं। आपको और भी पोस्टें पढ़नी हैं, टिप्पणियां करनी है। इसके अतिरिक्त जीवन के और सत्यों से दो चार होना है।
आप अभिव्यक्ति से परिचित होंगे और अनुभूति से भी परंतु अनुभूति की अभिव्यक्ति से अगर नहीं हैं परिचित तो अभी हो जाएं और इस लिंक को क्लिक करना छोड़कर आगे मत बढ़ जायें। अगर आगे बढ़ गये तो फिर यह अवसर हाथ नहीं आयेगा। अवसर सिर्फ 10 जून 2010 तक ही है। कलम अगला विशेषांक- कमल नहीं माउस इस पर क्लिक करें।
सार्थक प्रस्तुती ,सच है अच्छा सोचने से हमें अच्छा करने की प्रेरणा मिलती है ,अच्छाई के ओर हमें हमेशा प्रयासरत रहना चाहिए / अविनाश जी आज हमें आपसे सहयोग की अपेक्षा है और हम चाहते हैं की इंसानियत की मुहीम में आप भी अपना योगदान दें / पढ़ें इस पोस्ट को और हर संभव अपनी तरफ से प्रयास करें ------ http://honestyprojectrealdemocracy.blogspot.com/2010/05/blog-post_20.html
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जवाब देंहटाएंavinash ji
जवाब देंहटाएंaapne bahut accha lekh likha hai ... pichle kayi dino se blog jagat ka maahaul kharaab ho chuka hai , logo ne ise personl fighting place bana liya hai , apne frustration ko yahi download karne lage hai , ek saal pahle kya sundar atmosphere tha ... aaj jaha dekho , bas bair aur vaimanashya ....
meri to sabhi blogger dosto se ye apeel hai ki ,please aur please sirf dosti aur prem ko hi sthaan de aur ek dusare ko respect de...
dosto , kal ko kayi bharosa nahi yaha yaaro ..
sirf mohbbat aur dosti ki hi yaade rah jaayengi ///
aapka
vijay
धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंsahi kaha aapne
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जवाब देंहटाएंयही तो साहित्य की सच्ची सेवा है. मैंने पहले भी यही बात कही थी कि चुनाव से कोई फायदा नहीं होता. बस हम अपना कर्म करते जाएँ. लोग पढेंगे , हमारा उत्साह बढ़ाएंगे और साहित्य का विस्तार और विकास होगा. बहुत बधाई इस लेख के लिए अविनाशजी.
जवाब देंहटाएंaadar jog avinash sie ,
जवाब देंहटाएंpranam ,
aap ne sab kuch kah doya ye samjne wale pe nirbhar hai ki wo ise kaise le. haalki blog ke aakhade ke samman ho gaya hai , agar kisis ki taag khichna hoto blog , burai karna hoto blog aisa main rajasthan me dekha hai kuch logo ko haalaki main kisi ka naam anhi loonga .oonhone shayad vyaktigat ladai ko lekar blog pe apne virodi ki kuch kamiyo ko blog pe oochalna shuru kar diya tha , aakhir aisa q? karte hai , samvedan sheel vyakti kaha jaa raha hai ? kher..
aaabhar apni abhivyakti pradan karvane ke liye.
ब्लोगर की अभिव्यक्ति समाज को दिशा देने के लिए होती है ,अपने तनाव .भड़ास और वैमनस्य को निकालने के और बहुत से साधन हैं कम से कम ब्लॉग को इसका मंच ना बनाए | आज का आलेख बहुत ही सारगर्भित है कमाल कीचड में रहकर भी हमें सुख पहुंचा सकता है तो हम क्यों माहौल को हमेशा कोस्तेराहते है| ऐसा कुछ क्यों नहीं कर देते जिससे सब ओर शानौर सौमनस्य से भरा वातावरण हो जाए \ अविनाश जी की बात सोचने के लिए प्रेरित करती है|
जवाब देंहटाएंअविनाश जी, बिलकुल सत्य कहा है आपने. प्रेम में जो सुख है, वह कभी भी लड़ाई में नहीं मिल सकता है. लड़ाई में तो कुंठा ही मिलती है, जो जीवन को और अधिक कष्ठ्प्रद बनती है. अगर किसी को कुछ शिकायत भी होती है तो उसे अछे शब्दों का प्रयोग करके ही उसके निवारण की कोशिश करनी चाहिए.
जवाब देंहटाएंआजकल ब्लाग जगत से जुड़े हिन्दी लेखकों का अधिकतर समय एक-दूसरे के धर्म, आस्था अथवा लेखों की आलोचना करने में ही व्यतीत होता है। हालांकि लेखन जगत में आलोचना हमेशा से ही शक्ति का स्रोत होती रही है। लेकिन आजकल ना तो आलोचना का वह स्तर दिखाई देता है और ना ही लेखकों में आलोचना सहने और सुझावों को आत्मसात करने की ललक।
जवाब देंहटाएंइस विषय पर मेरा लेख:
"आलोचनाओं में व्यतीत होता समय"अवश्य पढ़ें
एक सार्थक लेख के लिये धन्यवाद अविनाश जी, काश कि लोग इससे सबक लें..
जवाब देंहटाएंबहुत सार्थक आलेख !! आभार और बहुत बहुत धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा आह्वान. रचनात्मकता से अपनी ताकत दिखाना ही श्रेयस्कर है.
जवाब देंहटाएंaap ne sahi glt sb dhan sttais ser kr diye hain yh koi uchit marg nhi hai ab tk yhi hota rha hai koi glt ko glt nhi kh rha hai "sb chta hai "ki manskta bhut khtrnak hai
जवाब देंहटाएंdr. ved vyathit
sahmat hun aapse
जवाब देंहटाएंमुझे तो लगता है हिन्दी ब्लागरों को समझाना भैंस के आगे बीन बजाने जैसा है
जवाब देंहटाएंचार दिन की जिन्दगी है ,ये लोग हंस के नहीं गुजार सकते
पता नहीं कब ये खेत -मेड का रगडा ख़त्म होगा