शीला दीक्षित को करारा जवाब दिया कवि केदारनाथ सिंह ने : संदर्भ हिन्‍दी अकादमी पुरस्‍कार प्रकरण


करारे होने पर से पापड़ों का अधिकार विलुप्‍त होने के कगार पर है। वैसे तो करारी और भी बहुत सारी वस्‍तुएं समाज में मौजूद हैं परन्‍तु पापड़ जब तक करारा न हो, पापड़ का पापड़पन ही कायम नहीं रहता है। पापड़ का पापड़ होना मतलब करारा होना ही है। पर इस करारा में से सिर्फ रार हिन्‍दी अकादमी के हिस्‍से में आई है। आज दैनिक जनसत्‍ता में मुख्‍य पेज पर हिन्‍दी के लब्‍ध प्रतिष्ठित कवि केदारनाथ सिंह ने दिल्‍ली की मुख्‍यमंत्री शीला दीक्षित को जो जवाब दिया है, उसे करारा बतलाते हुए एक विस्‍तृत समाचार प्रकाशित हुआ है। आप जानते ही हैं कि जनसत्‍ता जन-जन तक बल्कि यूं कहना चाहिए कि हर जन तक नहीं पहुंच पाता है इसलिए कवि केदारनाथ सिंह के करारे जवाब का पापड़पन जांचने के लिए आपको नुक्‍कड़ पर आमंत्रित हैं। जनसत्‍ता में प्रकाशित समाचार की स्‍कैनप्रति दो भागों में इसलिए लगाई गई है क्‍योंकि अगर एक पेज पर पूरा करारा जवाब प्रकाशित किया जाता तो जनसत्‍ता का मुख्‍यपेज का निचला आधा हिस्‍सा इसी खबर से भर जाता। जवाब करारा है इसलिए उसे बड़ी सफाई से दो हिस्‍सों में प्रकाशित किया गया है, बकाया हिस्‍सा पेज 8 पर प्रकाशित है। आपको पेज नहीं बदलना होगा, आप तो सिर्फ मौजूद इमेज पर क्लिक करें और जवाब का करारापन महसूस करते हुए अपनी बहुमूल्‍य प्रतिक्रिया दें कि इस करारेपन को बरकरार रखने के लिए और क्‍या प्रयास किये जाने चाहिएं और यह भी कि क्‍या इस करारेपन की जरूरत है ? वैसे यह तो मैं भी मानता हूं कि करारापन ही पापड़ की पहचान है पर इस मामले में पापड़ कौन है, हिन्‍दी अकादमी, श्‍लाका पुरस्‍कार विजेता, अन्‍य पुरस्‍कार विजेता अथवा अन्‍य कोई ? आपकी करारी प्रतिक्रिया का इंतजार रहेगा पर करारेपन को रार से बचाने के लिए क्‍या किया जाना चाहिए और कौन करेगा, इस महत्‍वपूर्ण मसले पर भी आप अवश्‍य कहिएगा, चुप मत रहिएगा क्‍योंकि कहा गया है कि मौन स्‍वीकृति लक्षणम् इसलिए आज कोई चुप नहीं है तो आप क्‍यों चुप रहें ?






आज दिनांक 10 मई 2010 के दैनिक जनसत्‍ता से साभार

3 टिप्‍पणियां:

  1. साहित्‍य के तथाकथित आकाओं की अकादमियों को इसी तरह आईना दिखाए जाने की जरूरत है। केदारनाथ सिहं जैसे जनप्रिय कवि को सम्‍मानित करके अकादमी खुद का सम्‍मान करती है। लेकिन पहले उसे इस सम्‍मान के लायक बनना भी चाहिए।

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  2. किसी भी सम्मान का महत्व उसी समय तक रहता है, जब तक वह स्वाभिमान को ठेस नही पहुंचाता, अगर किसी सम्मान से (चाहे जो भी कारण रहे)किसी के स्वाभिमान को चोट पहुंचती है तो निश्चित ही उसे सम्मान नहीं कहा जा सकता. यह तो सम्मान के साथ क्रुर मजाक है. केदार जी के इस पहल का हमें स्वागत करना चाहिए.
    आशुतोष कुमार सिंह
    zashusingh@gmail.com
    aapandesh.blogspot.com

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  3. आदरणीय केदार जी को सम्मानित करने में हिन्दी अकादमी की कोई दुर्भावना तो न रही होगी मित्रो! हमारा दुर्भाग्य है कि उन्होंने स्वीकार नहीं किया. अस्वीकार सदैव बड़ा बनाता है. वे सदैव बड़े बने रहें.

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