दैनिक हरिभूमि में : मजदूर दिवस एक, मजदूर अनेक, फिर भी साहब नेक (अविनाश वाचस्पति)
Posted on by अविनाश वाचस्पति in
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अविनाश वाचस्पति,
आओ मजदूर दिवस मनाएं,
हरिभूमि
आओ मजदूर दिवस मनाएं
हम सब मजदूर हो जाएं
किसी एक मजदूर का बोझा
हम सब मिलकर आज उठाएं
पर क्या इतना नेक होना संभव है
अपने मन में झांक कर देखिए
किसी मजदूर से नहीं जनाब
उसके काम को साझा कीजिए
स्कैनबिम्ब प्रकाशित अंक आने पर लगाया जाएगा तब तक लिंक पर क्लिक करके पढि़ए।
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आओ मजदूर दिवस मनाएं,
हरिभूमि
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सही सोचा है आपने ! जो मजदूर दिन रात मेहनत करके हमारे लिए साधन जुटाते हैं ,लेकिन फिर भी जिनकी मेहनत को सहराया नहीं जाता बल्कि हमेशा उनके लिए गलत उपमा ही दी जाती है !
जवाब देंहटाएंकम से कम मजदूर दिवस पर इनके उत्थान के बारे में सोचना चाहिए !
मजदूर दिवस की बधाई..मजदूर एकता जिंदाबाद....बहुत बढ़िया रचना...बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया...
जवाब देंहटाएंबहुत खूब अविनाश भाई एकदम सही पटका है
जवाब देंहटाएंहम सभी मजदूर हैं भाई, बस श्रेणी अलग अलग है, कोई बोझा उठाता है सिर पर, कोई उठाता है दिमाग पर . अपने मन को समझाने के लिए हम बाबु है, अफसर है , इंजीनियर , डाक्टर है लेकिन क्या हम उनसे अलग है,पेट पालने के लिए कमाने के तरीके अलग अलग हैं. पर काम सभी करते हैं. हम मालिक है किसी के तो कोई हमारा भी मालिक है. चाहे वही हो ऊपरवाला !
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया रचना...बधाई
जवाब देंहटाएंbahut badhiya maine akhabar me hi padh liya tha. darasal haribhoomi sa juda hoon.
जवाब देंहटाएंbhart me sabse pahle majdoor divas 1925 me madras ke beluchettiyar ke netratva me manaya gaya tha. 1911 me kam 11 hour ki jagah 8 hours kiya gaya. lekin is samay majdoor apni takat nahi juta pa rahe hain.
bahut saarthak pahal...
जवाब देंहटाएंSabhi log agar majdoron ke prati samvedansheel aur chintansheel ho jay to majdor majboor kahan rahega...
Bahut umda saarthak soch bhari prasuti ke liye bahut dhanyavaad