मीडिया के कल, आज और कल की पड़ताल - वेब पत्रकारिता पर पुस्‍तक प्रकाशित हो गई है


नब्बे के दशक की शुरुआत में यह कल्पना भी करना मुश्किल था कि आपका कंप्यूटर आपको सूचना और ज्ञान के अथाह भंडार तक पहुंचा सकता है। लेकिन आज इंटरनेट की उपयोगिता और इसके प्रभाव को लेकर दुनियाभर में अध्ययन किए जा रहे हैं और ज्यादातर मीडिया विशेषज्ञ इस बात को लेकर सहमत हैं कि नई सदी का यह माध्यम आम लोगों के जीवन में बदलाव की दिशा में एक प्रेरक की भूमिका अदा कर रहा है। जीवन के हर पहलू को छूने के साथ मीडिया जगत में भी ऑनलाइन जर्नलिज्म के रूप में यह एक नया आयाम साबित हुआ है। मीडिया जगत में इंटरनेट के साथ आए बदलाव और इसकी बुनियाद पर आने वाले कल की तस्वीर देखनी हो, तो इस दिशा में एक सार्थक कदम साबित हो सकती है जयपुर के वरिष्ठ पत्रकार श्याम माथुर की नई किताब- ‘वेब पत्रकारिता’।

वेब जर्नलिज्म जैसे जटिल विषय को लेखक ने साइबर स्पेस, वल्र्ड वाइड वेब, ब्लॉग, प्रिंट मीडिया और ऑनलाइन मीडिया का परिदृश्य, साइबर अपराध जैसे अध्यायों में बड़े ही दिलचस्प अंदाज में पेश किया है। वेब जर्नलिज्म पर गंभीर लेखन यदा-कदा ही पढऩे को मिलता है और हिंदी में तो ऐसी कोई कोशिश ही नहीं की गई है। इन अर्थों में कहा जा सकता है कि इस विषय पर हिंदी में यह पहली पुस्तक है। इस विषय पर अंग्रेजी में कुछ किताबें जरूर हैं, पर वे भी पश्चिमी परिदृश्य को आधार बनाकर लिखी गई हैं। लेकिन ‘वेब पत्रकारिता’ भारतीय संदर्भों की पृष्ठभूमि में पूरी गंभीरता और गहराई के साथ विषय की पड़ताल करती है।

किताब में कंप्यूटर के आविष्कार से लेकर इंटरनेट के लोकप्रिय होने तक की स्थितियों का दिलचस्प तरीके से वर्णन किया गया है। ‘वल्र्ड वाइड वेब’ शीर्षक वाले अध्याय में माइक्रोसॉफ्ट, नेटस्केप और दूसरी कंपनियों के आपसी संघर्ष को रोचक उद्धरणों के साथ दर्शाया गया है। इंटरनेट का इस्तेमाल करने वाले शायद जानते होंगे कि सन् 1993 तक वेब को ना कोई जानता था और ना यह लोकप्रिय था। बस कंप्यूटर हैकर्स और वैज्ञानिकों के बीच ही इसकी पहचान थी। लेकिन सन् 1995 तक स्थिति बदल चुकी थी। सिलिकॉन वैली के कुछ इंजीनियरों की ताकत और करिश्माई हुनर की बदौलत इंटरनेट एक संपूर्ण व्यापार का रूप ले रहा था और इस टैक्नोलॉजी की तुलना टेलीविजन और प्रिंटिंग प्रेस से होने लगी थी। नेटस्केप का नंबर सबसे पहला था। इसके ब्राउजर लाखों लोगों के लिए वेब तक पहुंचने का प्रवेश द्वार बन गए थे। भविष्य काफी सुनहरा दिख रहा था। और आज हम देखते हैं कि इंटरनेट को लेकर लगाए गए तमाम अनुमान करीब-करीब सही साबित हुए हैं। किताब में इस पूरे परिदृश्य की विस्तार से चर्चा की गई है। ऑनलाइन जर्नलिज्म की संभावनाओं और सीमाओं के साथ वेब के लिए संपादन, लेआउट और डिजाइनिंग जैसे विषयों की भी गहराई से चर्चा की गई है। वर्तमान समय में जनसंचार के क्षेत्र में ब्लॉग की अहमियत को रेखांकित करते हुए लेखक ने ब्लॉग के विभिन्न प्रकारों का उल्लेख किया है। इसी क्रम में वे लिखते हैं, ‘वर्ष 2003 से ब्लॉग्स के चलन में तेजी आई है और ईराक युद्ध के समय ब्लॉग्स मीडिया के सबसे प्रभावी माध्यम बनकर उभरे। दरअसल, ईराक युद्ध कई मायने में पहला ‘ब्लॉग युद्ध’ था। पिछले खाड़ी युद्ध की तुलना में इस बार ईराकी ब्लॉगर्स ने ब्लॉग के जरिए पहली बार पूरी दुनिया तक अपनी आवाज पहुंचाई। सलाम पाक्स नाम के एक ब्लॉगर ने तो अपने ब्लॉग पर ईराक युद्ध पर आधारित पूरी किताब प्रकाशित की थी। यही नहीं इस दौरान ईराक युद्ध में शामिल सैनिकों ने भी अपने ब्लॉग बनाए।’

प्रिंट मीडिया और ऑनलाइन मीडिया के परिदृश्य विषयक अध्याय में आधुनिक संचार-साधनों की भीड़ में भी परंपरागत पत्रकारिता (अखबार और पत्र-पत्रिका) का उज्ज्वल भविष्य देखते हुए लेखक लिखते हैं, ‘जैसे हर सुबह सूरज रोशनी और गर्मी लेकर आता है, वैसे ही अखबार सूचनाओं का भंडार लाकर मुझे देश, दुनिया, समाज और अक्सर खुद अपनी खबर से समृद्ध करता है। दैनिक अखबार की नश्वरता को जानते-बूझते भी मैं बिना अखबार के सुबह की चाय की कल्पना भी नहीं कर सकता।’

साइबर अपराध और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 पर भी विस्तार से चर्चा की गई है। देश के पहले हिंदी वेब पोर्टल ‘वेब दुनिया’ पर भी पर्याप्त सामग्री दी गई है और इस पोर्टल के कई अनछुए पहलुओं से वाकिफ करवाया है।

किताब में तकनीकी शब्दावली का इस्तेमाल बहुत कम किया गया है और इस तरह इसे आम पाठकों के लिए भी उपयोगी बनाने की सार्थक कोशिश की गई है। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि पिछले साल हिंदी सिनेमा पर आधारित अपनी पुस्तक ‘सिने पत्रकारिता’ के लिए भारतेन्दु हरिश्चंद्र पुरस्कार से सम्मानित लेखक श्याम माथुर ने वेब पत्रकारिता जैसे विषय को भी पूरी शिद्दत के साथ पेश किया है। किताब का प्रकाशन राजस्थान हिंदी ग्रंथ अकादमी ने किया है।

"वेब पत्रकारिता". इसे राजस्थान हिंदी ग्रन्थ अकादेमी ने प्रकाशित किया है. 130 पेज की इस किताब की कीमत है सिर्फ 75 रुपये. डिस्काउंट काट कर करीब 55 या 60 रुपये में आम पाठक को मिल जायेगी.
जहाँ तक मेरी जानकारी है, हिंदी में इस विषय पर यह पहली पुस्तक है..

वेब पत्रकारिता
लेखक श्याम माथुर
पेज 130 सचित्र
कीमत 75 रुपये

प्रकाशक
राजस्थान हिंदी ग्रन्थ अकादमी
प्लाट नंबर 1
झालाना इंस्टीट्यूशनल एरिया
जयपुर - 302004
फोन नंबर - 0141 - 2711129, 2710341

12 टिप्‍पणियां:

  1. इस प्रकार की पहल स्वागत योग्य है। लेखक ने नया मानदंड कायम किया है।

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  2. बधाई हो साहिब जी बधाई हो। लेकिन इन फिल्म जगत वाली किताब मुझे अब तक नहीं मिली। अविनाश जी। इंतजार कर रहा हूँ, पिछले साल से। शायद इस साल इच्छा पूर्ण हो जाए।

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  3. naye patrakaaron ko madad milegi... bloggers ko bhi fayda hago.. blogging ne web-patrakarita ko naya aayaam to diya hi hai

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  4. ऐसी किताब का तो कब से इंतजार था। आभार

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  5. Badhai.....Naye ubharte bloggers aur patrakaaron ke liye aapki yaha pustak ek encyclopedia/ Academic journal ka kaam karegi... Once again Congrats

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  6. बहुत बहुत बधाई श्याम जी। बड़ा ज़रूरी काम पूरा किया है आपने। पढ़ने की बहुत उत्सुकता है। पुस्तक मंगवाने के लिये क्या प्रक्रिया है? क्या वीपीपी सं मंगवाई जा सकती है?

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  7. यह जानकारी देने के लिए शुक्रिया, किताब तो मैं आज ही खरीद लूंगा, 'सिने पत्रकारिताÓ पढ़ चुका हूं और श्यामजी को लेखों की शक्ल में तो लंबे अरसे से पढ़ता ही आया हूं। पत्रकारिता के अपने सुदीर्घ अनुभव के चलते या उसके बावजूद, उनके लेखन में तकनीक ना तमाशा बन कर सामने आती है, ना तामझाम बन कर। उनके पास तकनीक जैसे एक कतली है, जिस पर वे बड़े आराम से शब्दों के महीन सूत कातते चलते हैं, कहीं कोई उलझाव नहीं। वे आपको नई से नई बात बताएंगे लेकिन अंदाज कुछ ऐसा होगा कि आपको लगेगा, यह बात तो मैं पहले से ही जानता था। मतलब वे आपको कुछ जताते नहीं, आहिस्ता से आपमें कुछ जोड़ते हैं।
    मैं उनकी इस किताब को पढ़े बिना ही पूरी ठसक के साथ कह सकता हूं कि छपे हुए शब्दों से वेब पत्रकारिता के बारे में जानने की इच्छा रखने वाले पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए ही नहीं बल्कि पढऩे में रूचि रखने वाले सामान्य पाठकों के लिए भी यह किताब उतनी ही कारगर साबित होगी।

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  8. Sabse pahle Is Pustak ke liye aapko Bahut Bahut shubhkamnayen.
    Vishay kaafi rochak hai aur jankari padhkar is pustak ko padhne ki ichchha aur tivr ho gai hai so Shesh baaten pustak ko padhkar karungi.

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  9. सर नमस्कार, ये तो बस आपकी ही वश की बात है। सचमुच आपकी ऊर्जा को दाद देने की इच्छा होती है...लेकिन कमउम्री आड़े आ रही है। हम जैसे निखट्टू मसिजीवियों के लिए आपकी ये जीवटता और जिजीविषा वाकई प्रेरणास्त्रोत है। आपको प्रणाम।
    संजीव कुमार झा
    सीनियर प्रोड्यूसर
    पी7न्यूज, दिल्ली

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