दंतेवाड़ा का अपराधी कौन?

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  • पुष्कर पुष्प
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  • छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में नक्सलियों के हमले में सीआरपीएफ के 76 जवानों के मारे जाने के बाद देश भर में गम और गुस्से का माहौल है। देश के असफल गृह मंत्री और कॉरपोरेट जगत के अच्छे वकील पी चिदंबरम भी काफी गुस्से में बताए जाते हैं। यहां तक कि चिदंबरम अपने इस्तीफे की भी पेशकश कर चुके हैं। लेकिन, जैसा कि तय था, प्रधानमंत्री ने उनका इस्तीफा नामंजूर कर दिया है और उन्हें खून की होली खेलने की मौन स्वीकृति दे दी है। जाहिर है एक सभ्य समाज में ऐसे नृशंस हमले की इजाजत किसी भी आधार पर नहीं दी जा सकती है।

    लेकिन इस हमले की पृष्ठभूमि और उसके मूल कारण पर भी सम्यक विचार की जरूरत है। कई रक्षा विशेषज्ञ और पुलिस के बड़े अफसरों समेत प्रधानमंत्री और यहां तक कि लोकतंत्र के तथाकथित चौथे स्तंभ मीडिया के कई बड़े पत्रकार भी नक्सलवाद को देश के लिए सबसे गंभीर चुनौती बता चुके हैं। इसके बावजूद सर्वाधिक गंभीर चुनौती से निपटने के लिए सरकार के पास कोई कारगर योजना नहीं है बल्कि सरकार गृह मंत्री के नेतृत्व में स्वयं खून की होली खेल रही है। अब आवाजें उठ रही हैं कि नक्सलियों के खिलाफ वायुसेना को उतारा जाया जाना चाहिए। इस तर्क के समर्थन में बहुत निर्लज्जता के साथ देश के कई बड़े पत्रकार और राजनेता उतर आए हैं। पुलिस के रिटायर्ड अफसर तो खैर हैं ही चिदंबरम के समर्थन में। पूर्व डीजीपी प्रकाश सिंह का कहना है- ‘छत्तीसगढ़ में नक्सलियों ने जिस प्रकार से जवानों का खून बहाया है वह देश के लिए गंभीर चुनौती है। ऐसी चुनौती जिसका जवाब उन्हीं की भाषा में देना होगा’।
    लेकिन सवाल यह है कि क्या हवाई हमले से नक्सलवाद खत्म हो जाएगा? अगर इस बात की गारंटी दी जाए तो क्या बुराई है? नक्सलवाद के इतिहास पर नजर डालें तो यह बात सामने आती है कि अतीत में जितनी बार भी दमन और हत्याओं और फर्जी एन्काउन्टरों की झड़ी लगाई गई, नक्सलवाद उतनी ही तेजी से फैला क्योंकि हमारी सरकारों की नीयत नहीं बदली। READ MORE .......

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