कब तक क्षमा करोगे शिशुपाल को - - -(2)
हमसे पंगा न लेना मोदी साहेब
इनकम टेक्स और सीबीआई बन चुकी है केन्द्र सरकार की लौण्डी
मतलब के लिए हो रहा सरकारी संस्थाओं का इस्तेमाल
सरकारी महकमों को इशारों पर नचा रहे निजाम
विवाद न होता तो इण्डियन पैसा लीग की न खुलती कलई
(लिमटी खरे)
``इण्डियन पैसा लीग`` की परतें अब उधडने लगी हैं। पहली बार ही जब आईपीएल की शुरूआत हुई थी, तब से ही मीडिया चीख चीख कर इसमें पैसों के हेरफेर की बातें कहता आ रहा है, पर केन्द्र सरकार धृतराष्ट्र की भूमिका में ही नज़र आ रहा था। आयकर विभाग की आंख खुलते खुलते सूरज आसमान पर बीचों बीच ही आ गया है। अगर आईपीएल के चेयरमेन ललित मोदी और भारत गणराज्य के विदेश राज्यमन्त्री के बीच सोशल नेटविर्कंग वेव साईट टि्वटर पर टि्वट टि्वट की 20 - 20 न हुई होती तो प्रधानमन्त्री कार्यालय हरकत में न आया होता, और वह आयकर विभाग को निर्देश भी जारी न करता कि आईपीएल में हो रहे गोरखधंधे की जांच करे। यह है आजाद भारत के गणराज्य के हालात। विवाद के बाद की परिस्थितियों को देखकर यही कहा जा सकता है कि शशि थुरूर अब मुंह चिढाते हुए ललित मोदी से कह रहे हों कि हमसे पंगा मत लेना ललित मोदी साहेब, हम सरकार हैं, इस देश को चलाते हैं, और आपको अब एसा उलझाएंगे कि आपकी सात पीिढयां भी याद रखेंगी। वैसे अभी इस मामले में और भी बहुत सारे पहलुओं की परतें समय के साथ उधडती जाएंगी।
आयकर विभाग यह जांच करने में लगा हुआ है कि कहीं टीम की खरीद फरोख्त में अण्डरवल्र्ड का पैसा तो नहीं लगा है। इसके अलावा आयकर विभाग ने खातों की जांच के लिए विशेष दल बना लिया है। इसी बीच कोिच्च टीम के प्रवक्ता और प्रबंधन में बदलाव कर दिया गया है। अब इसके सीईओ दुबई के व्यवसायी हर्षद मेहता होंगे। जांच पूरी तरह से ललित मोदी के इर्दगिर्द केन्द्रित होना शंका को जन्म दे रहा है। मामला चूंकि विदेश राज्य मन्त्री की महिला मित्र सुनन्दा पुष्कर के कारण आरम्भ हुआ था, अत: आयकर विभाग को सुनन्दा को भी जांच के घेरे में लिया जाना चाहिए, वस्तुत: एसा हो नही रहा है। सुनन्दा पुष्कर के मामले में आयकर विभाग पूरी तरह खामोश है। इसी से लगने लगा है कि सरकारी महकामों को देश को चलाने वाले निजाम अपने इशारों पर नचाते हैं। चाहे आयकर विभाग हो या सीबीआई हर बार इनकी कार्यप्रणाली पर उंगलियां उठती आईं हैं। बिहार में चारा घोटाले की जांच हो या जय ललिता के खिलाफ मामलों की हर बार केन्द्र सरकार द्वारा अपने मतलब के लिए नेताओं पर दबाव बनाने की गरज से इन संस्थाओं का इस्तेमाल किया जाता रहा है। हमें यह कहने में कोई संकोच नहीं कि केन्द्र सरकार की संस्थाएं स्वतन्त्र तौर पर काम करने की बजाए देश के शासकों की लौण्डी बनकर रह गईं है।
कोिच्च फ्रेंचाईजी के प्रवक्ता सत्यजीत गायकवाड के इस कथन का हम स्वागत करते हैं, जिसमें उन्होंने कहा है कि अब सभी टीम की फ्रेंचाईजी के नाम उजागर किए जाने चाहिए। जनता को पता तो चले कि कौन कौन से धनकुबेर किस किस टीम के लिए पैसा लगा रहे हैं और उनके धन के स्त्रोत क्या हैं। एक तरफ देश की दो तिहाई आबादी के पास एक जून खाने को रोटी के लाले पडे हैं, वहीं दूसरी ओर देश के धनकुबरे करोडों अरबों रूपए में टीम खरीद रहे हैं, इन परिस्थितियों में पैदा होने वाली विसंगतियों, पारदर्शिताविहीन, असंयमित, शासन प्रणाली के लिए कौन जिम्मेदार है।
अब आईपीएल में केवल दो ही टीम नज़र आ रही हैं एक है ललित मोदी की तो दूसरी शशि थुरूर की। दोनों ही टीमों में खिलाडियों ने अपनी अपनी आमद देना आरम्भ कर दिया है। अब सियासत बहुत तेज हो गई है। मोदी की टीम में गुजरात के मुख्यमन्त्री नरेन्द्र मोदी साईलेंट रोल अदा करते दिख रहे हैं तो भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) के पूर्व अध्यक्ष एवं भारत सरकार के कृषि मन्त्री शरद पवार उनके समर्थन में सामने आ गए हैं। शरद पवार का मानना है कि ललित मोदी ने टीम के प्रायोजकों का नाम सार्वजनिक कर कोई गलत काम नहीं किया है। आईपीएल में पारदर्शिता बहुत जरूरी है। कम से कम यह पता तो लगना चाहिए कि इसमें अण्डरवल्र्ड सिण्डीकेट का धन तो नहीं लगा है। वहीं दूसरी तरह बीसीसीआई के वर्तमान अध्यक्ष शशांक मनोहर मोदी से खफा हैं। कोिच्च की टीम के प्रायोजकों के नाम सार्वजनिक करने पर वे ललित मोदी को तल्ख भाषा में एक खत लिख चुके हैं। मनोहर अब आईपीएल कमिश्नर पर से मोदी की रूखसती चाहते हैं, पर आईपीएल के संविधान के अनुसार मोदी को इस पद से 2012 तक पदच्युत नहीं किया जा सकता है।
अब चूंकि शशि थुरूर के उपर उछलने वाले कीचड के चलते कांग्रेस और केन्द्र सरकार दोनों ही की बुरी तरह भद्द पिट रही है इसलिए आयकर का डण्डा चलाया गया है। मोदी को इतना उलझा दिया जाएगा कि वे सपने में भी शशि थुरूर का नाम सुनकर सहम जाएंगे। थुरूर ने अपने पद का उपयोग अपनी कथित प्रेयसी को निशुल्क 70 करोड की हिस्सेदारी दिलाने में किया या नहीं, आयकर अधिकारियों को सजग करने के लिए किया या नहीं यह तो वक्त ही बताएगा, किन्तु जाने अनजाने उन्होंने सांप की पूंछ पर पैर रख ही दिया है। मोदी के समर्थकों ने अगर थुरूर की पित्न क्रिस्टी गिलिज के कान भरने आरम्भ कर दिए और गिलिज ने इस मामले में सुनन्दा पुष्कर और थुरूर के सम्बंधों के बारे में कुछ भी अरूचिकर कह दिया तो थुरूर को लेने के देने पड जाएंगे। वैसे थुरूर इस वक्त कनाडा के भारतीय दूतावास के सतत संपर्क में हैं ताकि गिलिज पर नज़र रखी जा सके। बताते हैं कि थुरूर ने दूतावास के अधिकारियों को निर्देशित भी किया है कि वे गिलिज को गढी हुई कहानी सुनाकर शान्त रहने के लिए बाद्य करें। वैसे भी किस्मत से उनके पास विदेश मन्त्रालय है, जिसके अधीन ही सारे दूतावास आते हैं।
मामला चूंकि खेल से जुडा है, इसलिए इस मामले में देश के खेल मन्त्री की चुप्पी आश्चर्यजनक है। आईपीएल में मोदी थुरूर विवाद ने समूची दुनिया में भारत का सिर शर्म से नीचा कर दिया है। आजादी के बाद हिन्दुस्तान पर आधी सदी से अधिक राज करने वाली कांग्रेस का नैतिक स्तर कितना गिर गया है, कि आज भी वह उस मन्त्री को गले लगाकर रखी है, जिसके कारण देश ही नहीं दुनिया भर में गली मोहल्लों में चर्चे आम हो गए हैं। भ्रष्टाचार पर कटाक्ष करने वाली कांग्रेस की राजमाता सोनिया गांधी और कांग्रेस के भविष्य के प्रधानन्त्री ओर युवराज राहुल गांधी भी इस मामले में मौन हैं। एसा लगने लगा है कि इन दोनों के नेतृत्व में कांग्रेस का चेहरा बहुत ज्यादा बदसूरत हो गया है। नैतिकता दम तोड चुकी है। विदेशों में पली बढी सोनिया और राहुल गांधी को शायद शुचिता और पवित्रता के मायने नहीं पता हैं। जिन कांग्रेसियों को इसके मायने मालूम भी हैं, वे इन दोनों से इतनी दूर बैठे हैं कि वे इन्हें समझाने का साहस भी नहीं जुटा सकते। ``उनका विवाद है मेडम हमें क्या करना है`` की नीति छोडनी होगी। यह विवाद किसी और का नहीं एक मन्त्री के पद के दुरूपयोग का है। देशवासियों की स्मृति से अभी वह बात विस्मृत नहीं हुई होगी जब शशि थुरूर ने कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण की थी। केरल के कोिच्च में इसी लोकसभा चुनाव के पहले देश के सम्मान के प्रतीक राष्ट्रीय गान को गाने के वक्त हिन्दुस्तान की परंपरा के अनुसार थुरूर सावधान की मुद्रा में खडे होने के बजाए न केवल खुद ने दुनिया के चौधरी अमेरिका की परंपरा के मुताबिक सीने पर हाथ रखकर जनगणमन गाया वरन् दूसरों को भी एसा करने को कहा।
मामला चूंकि खेल से जुडा है, इसलिए इस मामले में देश के खेल मन्त्री की चुप्पी आश्चर्यजनक है। आईपीएल में मोदी थुरूर विवाद ने समूची दुनिया में भारत का सिर शर्म से नीचा कर दिया है। आजादी के बाद हिन्दुस्तान पर आधी सदी से अधिक राज करने वाली कांग्रेस का नैतिक स्तर कितना गिर गया है, कि आज भी वह उस मन्त्री को गले लगाकर रखी है, जिसके कारण देश ही नहीं दुनिया भर में गली मोहल्लों में चर्चे आम हो गए हैं। भ्रष्टाचार पर कटाक्ष करने वाली कांग्रेस की राजमाता सोनिया गांधी और कांग्रेस के भविष्य के प्रधानन्त्री ओर युवराज राहुल गांधी भी इस मामले में मौन हैं। एसा लगने लगा है कि इन दोनों के नेतृत्व में कांग्रेस का चेहरा बहुत ज्यादा बदसूरत हो गया है। नैतिकता दम तोड चुकी है। विदेशों में पली बढी सोनिया और राहुल गांधी को शायद शुचिता और पवित्रता के मायने नहीं पता हैं। जिन कांग्रेसियों को इसके मायने मालूम भी हैं, वे इन दोनों से इतनी दूर बैठे हैं कि वे इन्हें समझाने का साहस भी नहीं जुटा सकते। ``उनका विवाद है मेडम हमें क्या करना है`` की नीति छोडनी होगी। यह विवाद किसी और का नहीं एक मन्त्री के पद के दुरूपयोग का है। देशवासियों की स्मृति से अभी वह बात विस्मृत नहीं हुई होगी जब शशि थुरूर ने कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण की थी। केरल के कोिच्च में इसी लोकसभा चुनाव के पहले देश के सम्मान के प्रतीक राष्ट्रीय गान को गाने के वक्त हिन्दुस्तान की परंपरा के अनुसार थुरूर सावधान की मुद्रा में खडे होने के बजाए न केवल खुद ने दुनिया के चौधरी अमेरिका की परंपरा के मुताबिक सीने पर हाथ रखकर जनगणमन गाया वरन् दूसरों को भी एसा करने को कहा।
क्या शशि थुरूर जैसे मन्त्रियों के अनगिनत अपराधों को क्षमा करते हुए इन्हीं की अगुआई में इक्कसवीं सदी में भारत के नवनिर्माण का सपना देखा जा रहा है। अगर एसा है तो बन्द कीजिए सोनिया और राहुल जी भारत का नवनिर्माण। देश की जनता को क्या आप सभी ने बेवकूफ समझ रखा है। जब लालू यादव आंखें दिखाते हैं तो सीबीआई नकेल कसती है, जब वे हथियार डाल देते हैं तो सीबीआई खामोश हो जाती है। देश की संस्थाएं जिन उद्देश्यों को लेकर बनाई गईं थीं, उन्हें स्वतन्त्र कीजिए ताकि वे अपना काम मुस्तैदी से कर सकें। इन संस्थाओं को चाबी से चलने वाला खिलौना मत बनाईए कि जितनी चाबी आप भरें उतना ही चले यह खिलौना। क्या यही है हमारे आदर्श राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की कांग्रेस। आज शासक, धनाड्य वर्ग अर्थात महलों और गरीब जनता यानी झोपडी के बीच फासला बहुत ज्यादा बढ गया है, जो दिल्ली में बैठे शासकों को दिखाई नहीं दे रहा है। समय रहते अगर इस खाई नहीं पाटा गया तो वह दिन दूर नहीं जब अपने अधिकारों के लिए जनता सडकों पर उतर आएगी।
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