हमारा आज बहुत ही भयावह है : प्रेम जनमेजय
जम्मू के अज्ञेय प्रेमी हिन्दी साहित्यकारों की संस्था शाश्वती ने पहला अज्ञेय स्मारक व्याख्यान 7 मार्च 1998 को आयोजित किया था। उसी सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए शाश्वती ने 7 मार्च 2010 को के.एल. सहगल हॉल जम्मू में अज्ञेय स्मारक व्याख्यान 2010 का आयोजन किया जिसमें हिन्दी के प्रतिष्ठित व्यंग्यकार और व्यंग्य-यात्रा के सम्पादक प्रेम जनमेजय ने 'बदलते सामाजिक परिवेश में व्यंग्य की भूमिका' विषय पर अपना व्याख्यान दिया।
व्यंग्य समाज की बुराइयों पर चोट करता है। साहित्यकार विद्रूपताओं और विसंगतियों से समाज को मुक्ति दिलाने के लिए उसका इस्तेमाल ठीक वैसे ही करता है, जैसे डॉक्टर नश्तर लगा कर फोड़े के मवाद की सफाई करता है। बदलते सामाजिक मूल्यों की पड़ताल करते हुए प्रेम जनमेजय ने कहा कि मैं उस पीढ़ी का हूँ, जिसने स्वतंत्रता शिशु की गोद में अपनी आँखें खोली है और जिसने लालटेन से कंप्यूटर तक की यात्रा की है। मेरी पीढ़ी ने युद्ध और शांति के अध्याय पढ़े हैं, राशन की पंक्तियों में डालडा पीढ़ी को देखा है तो चमचमाते मॉल में विदशी ब्रांड के मोहपाश में फँसी पागल नौजवान भीड़ को भी देख रहा हूँ। मैंने विश्व में छायी मंदी के बावजूद अपनी अर्थव्यवस्था की मजबूती देखी है, पर साथ ही ईमानदारी, नैतिकता, करुणा आदि जीवन मूल्यों की मंदी के कारण गरीब की जी. डी. पी. को निरंतर गिरते देखा है। हमारा आज बहुत ही भयावह है। हमारे शहरों का ही नहीं आदमी के अंदर का चेहरा भी बदल रहा है। पूंजीवाद हमारा मसीहा बन गया है। उसने हमारा मोहल्ला, हमारा परिवार सब कुछ जैसे हमसे छीनकर हमें संवादहीनता की स्थिति में ला दिया है। एक अवसाद हमें चारों ओर से घेर रहा है।
हमारी अस्मिता, संस्कृति और भाषा पर निरंतर अप्रत्यक्ष आक्रमण हो रहे हैं। हर वस्तु एक उत्पाद बनकर रह गई है। सामयिक परिवश विसंगतिपूर्ण है तथा विसंगतियों के विरुद्ध लड़ने का एक मात्र हथियार व्यंग्य है। सार्थक व्यंग्य ही सत्य की पहचान करा सकता है, असत्य पर प्रहार कर सकता है और उपजे अवसाद से हमें बाहर ला सकता है। व्यंग्य एक विवशताजन्य हथियार है। व्यंग्य का इतिहास बताता है कि विसंगतियों के विरुद्ध जब और विधाएँ अशक्त हो जाती हैं तो कबीर, भारतेंदु, परसाई जैसे रचनाकार व्यंग्यकार की भूमिका निभाते हैं। निरंकुश व्यंग्य लेखन समाज के लिए खतरा होता है, अतः आवश्यक है कि दिशायुक्त सार्थक व्यंग्य का सृजन हो जो वंचितों को अपना लक्ष्य न बनाए। व्यंग्य के नाम पर जो हास्य का प्रदूषण फैलाया जा रहा है उससे बचा जाए और बेहतर मानव समाज के लिए व्यंग्य की रचनात्मक भूमिका उपस्थित की जाए।
वरिष्ठ साहित्यकार डॉ.ओम प्रकाश गुप्त ने अपने अध्यक्षीय भाषण में हिन्दी साहित्य को अज्ञेय के अवदान पर चर्चा करते हुए उनको एक महान व्यंग्यकार बताया। डॉ. गुप्त ने प्रेम जनमेजय को धन्यवाद दिया कि उन्होंने एक बहुत ही महत्वपूर्ण विषय को उठाकर आने वाले खतरों के प्रति सावधान किया है।
कार्यक्रम के आरम्भ में अज्ञेय की आवाज़ में उनकी दो कविताओं का पाठ भी सुनाया गया। कार्यक्रम का संचालन करते हुए रमेश मेहता ने कहा कि अज्ञेय के सौवें जन्म दिन को लेकर जम्मू में खासा उत्साह देखा जा रहा है और वर्ष 2011 में इस संदर्भ में बड़े पैमाने पर कार्यक्रमों का आयोजन किया जायेगा। डॉ. चंचल डोगरा ने अज्ञेय का और डॉ. आदर्श ने प्रेम जनमेजय का परिचय प्रस्तुत किया। धन्यवाद ज्ञापन डॉ. निर्मल विनोद ने किया ।
प्रस्तुति : बृजमोहिनी, जम्मू
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# भारतीय नववर्ष 2067 , युगाब्द 5112 व पावन नवरात्रि की शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएं# रत्नेश त्रिपाठी
आभार इस रिपोर्ट को यहाँ लाने का.
जवाब देंहटाएंनव संवत्सर 2067 व नवरात्रों की हार्दिक शुभकामनाएं
बहुत सुन्दर रपट रही!
जवाब देंहटाएंभारतीय नव-वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ!
bahut khub.narayan narayan
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