यह पत्र आज दिनांक 16 मार्च 2010 के दैनिक जनसत्ता में चौपाल स्तंभ में प्रकाशित हुआ है। इमेज पर क्लिक करें और पूरा पढ़ जाएं
कल्पना जी नाम तो बतला दीजिए
हम कल्पना के घोड़े ही दौड़ाते रहें
आप यूं ही हमारी जानकारी को आजमाते रहें
शोलों को हवा पहले ही खूब मिल रही है
आप नाम बतलायें तो सब असलियत जान पायें
पता लगे कि चिंगारी के मूल में कौन हैं ?
nice
जवाब देंहटाएंKalpanajee ne bahut khoobsurat baanagee dee hai lokatantra me bhrasht aachaar kee..... shukr hai ki saahityakar baagee nahee banate warnaa ye sab bhee sasatra aandolan ke raah chal padate........../
जवाब देंहटाएंकल्पनाजी ने बहुत खूब्सूरत बानगी प्रस्तुत की है लोकतंत्र मे भ्रष्ट्र आचार की / शुक्र है की साहित्यकार बागी नही बनते वर्ना ये सब भी सशस्त्र आन्दोलन की राह चल पडते /
जवाब देंहटाएंअगर कल्पना रावत के पास कोई प्रामाणिक जानकारी है और वह उसे किसी डर से छुपा रही हैं तो वे भी बराबर की दोषी हैं। बताना चाहिए कि आखिर यह बुज़ुर्ग महिला कौन हैं और इस सारे बवाल के पीछे उस बुज़ुर्ग महिला की क्या भूमिका है?
जवाब देंहटाएंजहाँ तक कृष्ण बलदेव वैद को शलाका सम्मान दिए जाने को निरस्त करने का प्रश्न है और वह भी अश्लीलता जैसे अपरिभाषित प्रश्न पर तो यह सरासर ग़लत है और जो लेखक अपने सम्मान लौटा रहे हैं, वे
बिल्कुल सही हैं। अकादमी का पक्ष सामने आना चाहिए।
ये साहित्यकार अपने लेखन का पुरस्कार पाठकों से पाना अधिक महत्वपूर्ण समझते हैं या की कुछ राशि , शाल या ताम्रपत्र की सौगात. मेरी दृष्टि से जो पाठकों के द्वारा सराहा जाय वही सबसे बड़ा पुरस्कार है. बाकी तो तस्वीर खिंचवा कर टांग लेंगे और धुंधलीपड़ जायेगी.
जवाब देंहटाएंकृति ही तो वह है जो हमेशा को अमर कर जायेगी.
कलम किसी के पुरस्कार की मुहताज नहीं होती.
निराला, प्रेमचंद जैसों की कलम ही याद की जायेगी.
रेखा जी से सहमत
जवाब देंहटाएंअरे !बहुत खूब .
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