जनसत्ता के संपादक ओम थानवी जी ने आज जनसत्ता में लिखा है कि ...... (अविनाश वाचस्पति)
Posted on by अविनाश वाचस्पति in
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अशोक चक्रधर,
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कृष्ण बलदेव वैद,
हिन्दी अकादमी
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पढा नही जा रहा जी
जवाब देंहटाएंहर पंक्ती से सहमत!!
जवाब देंहटाएं@ राज भाटिया
जवाब देंहटाएंइमेज पर क्लिक करने के बाद जब पेज खुले तो उस पर दोबारा से माऊस क्लिक करेंगे तो पढ़ने में अवश्य आएगा। बिना पढ़वाए कैसे जाएगा ?
यह लेख पढ़वाने के लिए आपका तहेदिल से शुक्रिया...
जवाब देंहटाएंथानवी जी ने साहित्य के क्षेत्र में
जवाब देंहटाएंपुरस्कारों की गिरती साख पर
सोचने विवश कर दिया है...किन्तु
अब भी उनकी अस्मिता पर भरोसा किया
जा सके, इसकी उम्मीद भी ऐसे प्रकरणों की
वज़ह से धूमिल नज़र आती है....बहरहाल
इस लेख में शलाका के शक के दायरों का
गज़ब का उदघाटन रोमांचित तो करता ही है
पर दुखी भी...! आखिर क्या करें ?
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आपका शुक्रिया इसे पढवाने के लिए.
डॉ.चन्द्रकुमार जैन
यह एक संतोष की बात है की जनसत्ता यदि यूँ कहूँ की राम नाथ गोयनका जी और प्रभाष जी की परंपरा के अनुरूप ओम थानवी जी लिख रहे हैं - वही बेबाक, बेख़ौफ़ और बेलाग तेवर | मैं जनसत्ता का पाठक इस के प्रकाशन के पहले दिन से ही हूँ और इसका पाठक वर्ग एक अलग ही किस्म का होता है . इस पूरे प्रकरण में कुछ बातें गले में अटकती सी लगती हैं : (१) चक्रधर जी को भरे पूरे मंच पर मुख्य मन्त्री जी ने हिंद स्वराज का लेखक बता दिया और बंधुवर मुस्करा दिए .जब की जनसत्ता इस पुस्तक पर , बाकलम प्रभाष जी, विशद व्याख्या कर चुका था | मजे की बात यह की प्रभाष जी भी उसी मंच पर मौजूद थे और खून का घूँट पी कर रह गए | . गाँधी जी ने इस पर मुख्य मंत्री तथा 'लेखक' महोदय को अपने आशीर्वचन अवश्य दिए होंगे (२) गाँधी जी या प० नेहरु को यदि नोबल शांति पुरस्कार नहीं मिला तो इस से उन की महत्ता में कोई कमी नहीं आयी |. गाँधी का सम्मान भारत से अधिक
जवाब देंहटाएंअन्य देशो में जिस श्रद्धा भाव से होता है वह एक बहुत बड़ा पुरस्कार है | (३) राजनीति और साहित्य - आवश्यक नहीं की इन दोनों में कोई मिलन बिंदु हो - हो जाये तो सोने पे सुहागा | इस सन्दर्भ में दो दृश्य याद आते हैं - एक जब जगन्नाथ पहाड़िया जी राजस्थान के मुख्य मंत्री थे और उन्होंने महादेवी वर्मा जी के प्रति कुछ अशोभनीय टिपण्णी कर दी थी | दूसरा दृश्य - मोरारजी भाई के प्रधान मंत्री समय का है - कुछ साहित्यकारों का सम्मान किया जा रहा था | उन में आदरणीय किशोरी दास वाजपेयी जी भी थे | वाजपेयी जी का नाम जब आया तो वे अपनी कुर्सी से उठने लगे | वृद्ध तो थे ही - मोरारजी भाई ने मंच से देखा और एक दम कह उठे "पंडित जी आप वहीँ रहिये, मैं आप के पास आता हूँ |" मोरार जी मंच से उतर कर वाजपेयी जी के पास गए, पुष्प माला पहनाई, शाल ओढाया और पुरस्कार दिया और चरण स्पर्श किये | प्रधान मंत्री का पद किशोरी दास वाजपेयी जैसे साहित्यकार से बड़ा नहीं हो सकता |
(४) अंतिम बात - आज कल चक्रधर जी अपने नाम के साथ प्रोफेसर लिखते हैं - इस बारे में मेरे जैसे कुछ पाठक अनजान हैं |
हकीकत से रु -ब-रु हुए .
जवाब देंहटाएंजब ' चरण चाटक भांड ' और निक्रिस्टतम सत्ता का गठजोड़ होगा तो यह तो होगा ही.
जवाब देंहटाएंथानवी जी का नमन उनके साहस के लिए.