प्रातः आँख खुली तो साढे चार बजे थे.
स्वभावतः ही स्वयं को देखा. शरीर में थकावट और आलस्य लगा. यदि गाय ना होती तो मैं फ़िरसे सो गया होता. अब और देरी हुईतो मेरी अनुराधा भूखी रह जायेगी.( गाय का नाम राधा, बाछी का नाम अनुराधा है. जब मेरे पास ५-७ गायें हों जायेंगी, तब शायद माँ-बेटी का एक ही नाम रह जाये. अभी तो दोनों अपने-अपने नाम सुनकर खुश होकर कान खङे करती हैं)
उठा. अपनी लार दोनों आँखों में लगाई. अपने सोराईसिस के दाग पर लगाई. निवाये जलके साथ एक चम्मच अजवाईन ली. शौच-मंजन से निवृत्त होकर गोशाला की तरफ़ गया. राधा..... नाम सुनकर ही राधा खङी हो गई. अनुराधा दूध के लिये मचल ही रही है. अपनी रस्सी खुलते ही चौकङी भरते हुये सीधी थनों से मुँह लगा लिया. राधा भी तृप्त होने लगी. माँ-बेटी को कुछ देर अकेला छोङकर मैं गोबर उठाने लगा. ऊपर-ऊपर का गोबर (जिसमें धूल ना मिली हो) अलग से घोल बनाने वाली टब में डाला. शेष सारा गोबर अलग रखा, इसकी थेपङी बनेगी- आजकल रूपये की तीन बिकती है.
हाथ धोकर गायका दलिया लाया. इसमें अजवाईन मिली है. गाय इसकी खूशबू से ही मस्त हो गई. वह खाने में मगन, और मैंने उसके दोनों पाँव पूँछ सहित नाणे से बाँधे. अनुराधा से थन छोङाकर उसे राधा के पास बाँधा. तभी राधा ने मूत्र किया, जिसे मैंने पहले से धोकर रक्खे बरतन में ले लिया. मूत्र की दो बूँद सिर पर, दो आँखों में और लगभग आधा गिलास पेट में लेकर बरतन को अलग रक्खा. हा्थ धोकर दूहने बैठा. गो-दूहासन में बाल्टी को दोनों घुटनों के बीच पकङकर दोनों हाथों से दूध दूहना अद्भुत सुख देता है. बाल्टी में धारकी आवाज ही मुझे बहुत आकर्षक लगती रही है, गत सप्ताह भरसे प्रत्यक्ष कर पा रहा हूँ....सौभाग्य की क्या सीमा! पाँच-सात मिनट में ही लगभग दो सेर दूध लेकर बाकी दूध अनुराधा के लिये छोङ देता हूँ. थन में चिपटी तीन जोंक खींच कर अलग करता हूँ, किन्तु राधा का एक थन कटा हुआ है. उसे देखकर फ़िरसे विचार आता है कि इसे कैसे बन्द किया जाये. दिनभर इस कटे थन से दूध झरता रहता है. देखने वाले सभी कहते हैं कि दो-तीन सेर दूध बेकार जा रहा है. मुझे इसका अलग सुख है.दूधकी नदियों वाली कहावत कमसेकम मेरे घरमें तो चरितार्थ ही है, पर फ़िरभी इसका ईलाज हो जाये, यह उपाय तो करना ही है. टाली की पत्तियां घिस कर ५ बार लगाई, पर झरते दूध में वह कब तक टिके? फ़िर पास ही अनुराधा भी तो है, जब-तब मौका मिलते ही मुँह मार देती है. और डाक्टर का कहना है कि अभी इस थन पर टांका भी नहीं लगाया जा सकता. ८-९ महीनों में जब थनसे दूध आना बन्द होगा, तब कुछ सोचा जा सकता है. ब्लागपर कोई जानकार बन्धु इसका ईलाज बता सके तो मजा आ जाये!
दूध निकालकर नाणा खोला, अनुराधा को भी. उसे दूध पीता देखना अलग सुख है. मगर मुझे तो अभी और भी आनन्द लेने हैं. दूध को ढक कर रसोई में रखा. गोमूत्र को छानकर बाहर दरवाजे पर रक्खा, और सूचना पट्ट पर लिख दिया-" जो मानते हैं, उसे जान लें. जो जानते हैं, उसे जी लें- तो सुख ही सुख है. .... कुछ जानते हैं, ज्यादा मानते हैं. जो जानते भी हैं, उसे मानते नहीं. जो मानते हैं, उसे जानते नहीं, तो सारी देह-यात्रा प्रश्न-समस्या और दुःख बन जाती है. जानना मानव का अधिकार है. जान लो तो सुख ही सुख." प्रातः ६ से ८ बजे तक गोमूत्र-पान करने वालों की सेवा का सुख मिल जाता है. पीपल की नीचे गोमूत्र का बर्तन और चार गिलास रख दिये, बस! और क्या करना है? अब लौटकर थोङा झाङू-पौंछा और स्नान करके गरम दूध का सेवन. आठ बजते बजते ब्लाग पर आकर आप सबसे बतियाने का सुख!.... बाकी कल. साधक उम्मेदसिंह बैद
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nice
जवाब देंहटाएंgau mutra ke naam se kitne munh bichke honge lekin gale ke cancer ki yah eka achook aushdhi hai. shesh shareer ke vikar ke liye bhi ye aushdhi bahut upayogi hai.
जवाब देंहटाएंbahut acchi kahani hai.
जवाब देंहटाएंगौमूत्र सचमुच कैंसर में अच्छी औषध है। आपके सवेरे-सवेरे कि दिनचर्या के बारे में जानकर पता नही क्यों खुशी सी हो रही है जी।
जवाब देंहटाएं15-16 साल पहले इसी से मिलती-जुलती दिनचर्या मेरी भी होती थी। लेकिन अब इस सुख से वंचित हूं।
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cow ko hamane vaise hee bhula diya jaise apne mata pita ko. narayan narayan
जवाब देंहटाएंआपके comment के लिए आभार....
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ........लिखा हैं.....गो माता को और आपको हमारा प्रणाम......डिम्पल